अरविन्द तिवारी की कलम से

जगन्नाथपुरी (गंगा प्रकाश) – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज अध्यातनिष्ठों की महत्ता की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि अध्यात्म निष्ठ देश , काल , वस्तु के स्वरूप के पारखी होने के कारण देश , काल , वस्तु का सुखद उपयोग करने में समर्थ होते हैं। वे साधक – बाधक भाव के मर्मज्ञ होने के कारण अन्न – जलादि वस्तुओं का तथा प्रेम , मैत्री , कृपा , उपेक्षादि मनोभावों का यथा योग्य उपयोग करने में समर्थ होते हैं। परम तत्त्व सत्य , शिव और सुन्दर है। छान्दोग्योपनिषत् के अनुसार यह सब सच्चिदानन्द स्वरूप ब्रह्म की अभिव्यक्ति होने के कारण ब्रह्म है , श्वेताश्वतरोपनिषत् के अनुसार सच्चिदानन्द स्वरूप अमृत संज्ञक सर्वेश्वर से अभिव्यक्त पृथ्वी , पानी , प्रकाश , पवन , आकाश सहित समस्त स्थावर – जङ्गम हैं , महोपनिषत् के अनुसार पृथ्वी से उपलक्षित चतुर्दश भुवनात्मक ब्रह्माण्ड सहित सर्व प्राणी परमात्मा से अभिव्यक्त परमात्म परिवार के सदस्य सगे – सम्बन्धी हैं। पद्मपुराण के अनुसार दूसरों के द्वारा किये हुये जिस वर्ताव को अपने लिये नहीं चाहते , उसे दूसरों के प्रति भी नहीं करना चाहिये तथा श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार सब प्राणियों के हित में रत – यह सभी सनातन आदर्श श्रौत सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के मर्मज्ञ और पक्षधर सनातन मनीषियों की जीवन शैली भौतिक वादियों को भी मुग्ध करने वाली होती है। भगवदर्थ जीवन – यापन की विधा में अद्भुत दिव्यता अवश्य ही सन्निहित होती है। उदाहरणार्थ भगवत् भक्त भगवान् को भोग लगाने के लिये भोजन बनाते हैं और भगवान् को भोग लगाकर भोजन करते हैं। वे रसात्मक सोम के द्वार से भगवान् को ही अन्नप्रद समझते हैं तथा कोष्ठाग्नि के द्वार से भगवान् को ही अन्नाद समझते हैं। क्रिया – कारक – फल के रूप में भगवान् को ही समझने वाले अन्न दोष से अलिप्त रहते हैं। भोक्ता तथा भोग्य की भगवत् रूपता के रहस्य को हृदयङ्गम करने पर भोग की दिव्यता सुनिश्चित है। भोक्ता भोग्य का भोग्य ना बने , यह भोग की दिव्यता है। भूख की निवृत्ति पुष्टि तथा तृप्ति में अन्न का पर्यसान हो, साथ ही अन्नभोग भक्ति के रूप में परिणित हो – यह भोजन की सार्थकता है। गङ्गा , यमुना , सरस्वती , कृष्णा , कावेरी , गोदावरी , क्षिप्रा , नर्मदा , सिन्धु , चन्द्रवसा , ताम्रपर्णी , अवटोदा , कृतमाला , वैहायसी , श्रेणी , पयस्विनी , शर्करावर्ता , तुङ्गभद्रा , वेण्या , भीमरथी , निर्विन्ध्या , पयोष्णी , तापी , रेवा , सुरसा , चर्मण्वती , सिन्धु , महानदी , वेदस्मृति , ऋषिकुल्या , त्रिसामा , कौशिकी , मन्दाकिनी , दृषद्वती , गोमती , सरयू , रोधस्वती , सप्तवती, सुषोमा , शरद्रू , चन्द्रभागा , मरुद्वृधा , वितस्ता , असिक्नी और विश्वा आदि दिव्य नदियों का तथा अन्ध और शोणादि नदों का स्मरण पूर्वक इनमें स्नान करने पर भारतीय प्रजा पवित्रता तथा दिव्यता से सम्पन्न होती है।