हाँ , मैं दिव्याँग हूँ

हाँ , मैं दिव्याँग हूँ

औरों से अलग हूँ।

आखिर इंसान ही हूँ

हाँ, मैं दिव्याँग हूँ l।

चलने में कष्ट होता है ,

खून से लथपथ होती हूँ।

चाहे अनेको छाले पड़े

चाहे अनेको चोट खाये।

फिर भी रूकती कभी नहीं हूं

हाँ , मैं दिव्याँग हूँ।।

एक पैर नहीं है

तभी तो मेरे पास दो बैसाखी है।

तभी तो…

औरों से अलग चलती हूँ

हाँ मै दिव्यांग हूँ।।

हाँ , मैं दौड़ नहीं पाती हूँ

हाँ , मैं उछल भी नहीं पाती हूँ।

है मेरा पहनावा अलग

हाँ मै एक दिव्यांग हूँ।।

तभी तो बार बार गिरती

गिर कर उड़ना सिखती।

चलना नही आती

फिर भी चलने की कोशिश करती

हाँ मैं दिब्यांग हूँ।।

मुझमें सहनशीलता ज़्यादा है

जीवन में मिली अनेक कठिनाईयाँ

पर कभी रुकना नहीं सिखाता

जीवन को हँसकर जीना सिखाता

फिर भी

हाँ मैं दिव्याँग हूँ।।

 

दिव्यांग चंचला पटेल

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