नई दिल्ली।  भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने शारीरिक संबंधों का ब्रेकअप होने पर इसे रेप का मामला नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि रिश्ता खराब होने या ब्रेकअप के बाद पुराने संबंधों को अपराध में बदलना कानून का दुरुपयोग है। यह फैसला उन मामलों पर सीधी मार है जहां बदले की भावना से झूठे आरोप लगाए जाते हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की बेंच ने यह टिप्पणी औरंगाबाद के एक वकील के खिलाफ दर्ज रेप केस को खारिज करते हुए की।
फैसले का पूरा विवरण
मामला क्या था? शिकायतकर्ता एक शादीशुदा महिला थी, जिसका चार साल का बच्चा था। वह अपने पति से अलग रह रही थी और मेंटेनेंस केस में आरोपी वकील की मदद ले रही थी। 2022 से दोनों के बीच करीब तीन साल तक सहमति से शारीरिक संबंध चले। महिला ने कई बार आरोपी के गांव में अचानक विजिट भी की। लेकिन जब वकील ने शादी से इनकार किया और महिला की 1.5 लाख रुपये की मांग ठुकराई, तो उसने रेप का केस दर्ज कराया। आरोपी ने कहा कि महिला ने तीन साल तक कभी रेप का आरोप नहीं लगाया।
•  कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां:
•  “सहमति से बने संबंधों को बाद में रेप में बदलना अस्वीकार्य। सहमति का मतलब बाद में बदल नहीं जाता।”
•  “ब्रेकअप या रिश्ते का खराब होना अपराध नहीं। दो वयस्कों के बीच सहमति से बने संबंधों को बाद में रेप का रूप देना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”
•  “शादी का झूठा वादा तभी रेप माना जाएगा जब शुरू से ही इरादा धोखे का हो। यहां ऐसा कोई सबूत नहीं।”
•  कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से FIR को बरकरार रखने के फैसले को गलत ठहराया और कहा कि FIR पढ़ने से ही सहमति साफ झलकती है।
•  कानूनी आधार: यह फैसला IPC की धारा 375 (रेप की परिभाषा) और 90 (सहमति की कमी) पर आधारित है। कोर्ट ने 2019 के प्रेमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य केस का हवाला दिया, जहां कहा गया कि सहमति सोच-समझकर ली गई होनी चाहिए।
यह फैसला पुरुषों के अधिकारों की रक्षा करता है और झूठे केसों से न्यायिक बोझ कम करने में मददगार साबित होगा। कोर्ट ने चेतावनी दी कि ऐसे केस आरोपी की पहचान को नुकसान पहुंचाते हैं और अदालतों पर अनावश्यक भार डालते हैं।
यह फैसला वायरल हो गया है। कई यूजर्स ने इसे “झूठे केसों का अंत” बताया। एक पोस्ट में लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल स्पष्ट कहा—सहमति से बने संबंध को बाद में रेप नहीं माना जाएगा। अब धंधा बंद!” एक अन्य यूजर ने कहा, “यह फैसला युवाओं के लिए राहत। सहमति ही आधार है।” लेकिन कुछ ने सवाल उठाए कि क्या इससे असली पीड़ितों को न्याय मिलेगा। #SupremeCourt और #Consent ट्रेंड कर रहे हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला लंबे समय से चली आ रही समस्या पर लगाम लगाएगा। “सहमति और धोखे में फर्क साफ हो गया। लेकिन असली रेप केसों में सख्ती जरूरी,” एक वकील ने कहा। कोर्ट ने जोर दिया कि शादी का वादा तोड़ना सिविल मामला हो सकता है, लेकिन रेप नहीं। यह फैसला भारतीय समाज में रिश्तों और कानून के बीच संतुलन लाने की दिशा में कदम है।
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