Parliament Winter Session Day 6 : नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन लोकसभा में राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष चर्चा की शुरुआत हुई। यह पहला अवसर है जब संसद में वंदे मातरम की ऐतिहासिक विरासत, आज के भारत में उसकी प्रासंगिकता और स्वतंत्रता संग्राम में उसके योगदान पर व्यापक विमर्श हुआ।सुबह 11 बजे जैसे ही सत्र शुरू हुआ, लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम पर अपना विस्तृत संबोधन दिया। पीएम ने मातृभूमि के प्रति समर्पण, राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता संग्राम की भावनाओं को उजागर करते हुए इस गीत को “भारत की आत्मा” बताया।

Vande Mataram 150th Anniversary : संसद में ‘वंदे मातरम्’ पर विशेष बहस, जानें क्यों उठ रहा है विवाद और इसकी ऐतिहासिक अहमियत

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PM मोदी का लोकसभा में संबोधन

  • प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम ने आज़ादी के आंदोलन को ऊर्जा दी।

  • उन्होंने रचनाकार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को नमन किया।

  • पीएम मोदी ने कहा कि यह गीत केवल शब्द नहीं बल्कि “नौजवानों के मन में स्वतंत्रता की ज्वाला जगाने वाला मन्त्र” था।

  • उन्होंने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा कि राष्ट्रवाद की बात आते ही कुछ दल असहज हो जाते हैं।

राज्यसभा में 9 दिसंबर को होगी विशेष चर्चा

लोकसभा के बाद अब 9 दिसंबर को राज्यसभा में वंदे मातरम पर विस्तृत चर्चा होगी।

  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

  • सूचना प्रसारण मंत्री

  • संस्कृति मंत्री
    सहित कई वरिष्ठ नेता इस बहस में हिस्सा लेंगे।

सदन में गूंजे ‘वंदे मातरम’ के स्वर

चर्चा की शुरुआत के साथ ही सदन के अंदर “वंदे मातरम” के जयघोष गूंज उठे। सांसदों ने इस ऐतिहासिक मौके पर गीत के महत्व को रेखांकित किया।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

कई विपक्षी सांसदों ने कहा कि

  • सरकार को वंदे मातरम की आड़ में मुद्दों से ध्यान न हटाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

  • बेरोज़गारी, महंगाई और किसानों की स्थिति पर भी गंभीर चर्चा की जरूरत है।

सत्र में आज और क्या-क्या हुआ?

  • शीतकालीन सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा जारी है।

  • वित्त, रक्षा और सड़क परिवहन मंत्रालय से संबंधित प्रश्नोत्तर सत्र में नए आंकड़े और रिपोर्टें सदन में पेश की गईं।

  • कई सांसदों ने अपने क्षेत्रों के मुद्दों पर शून्यकाल में ध्यानाकर्षण किया।

वंदे मातरम के 150 साल: क्यों खास है यह अवसर?

  • 1875 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने इसकी रचना की थी।

  • स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारियों की प्रेरणा का केंद्र बना।

  • 1950 में इसे राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया।

  • आज भी यह राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

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