CG BREKINGS: चाकाबुड़ा पंचायत में भ्रष्टाचार का महासिंडिकेट! शासकीय जमीन, योजनाओं, बजट का खुला खेल – अफसरों की चुप्पी से ग्रामीणों का फूटा ग़ुस्सा

कोरबा चाकाबुड़ा पंचायत भ्रष्टाचार

CG BREKINGS: चाकाबुड़ा पंचायत में भ्रष्टाचार का महासिंडिकेट! शासकीय जमीन, योजनाओं, बजट का खुला खेल – अफसरों की चुप्पी से ग्रामीणों का फूटा ग़ुस्सा

 

कोरबा/कटघोरा (गंगा प्रकाश)। चाकाबुड़ा पंचायत में भ्रष्टाचार का महासिंडिकेट! कोरबा जिले की जनपद पंचायत कटघोरा के अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत चाकाबुड़ा इन दिनों भ्रष्टाचार, शासकीय जमीन की अफरा-तफरी और पंचायत की निष्क्रियता को लेकर सुर्खियों में है। ग्रामीणों की शिकायतों और आरोपों की परतें खुलती जा रही हैं, लेकिन जिम्मेदार अफसर और सत्ता से जुड़े प्रभावशाली जनप्रतिनिधि अब तक आंख मूंदे बैठे हैं। आलम यह है कि वर्षों से पद पर जमी पंचायत सचिव रजनी सूर्यवंशी के खिलाफ पंचायत स्तर से लेकर कलेक्टर कार्यालय तक शिकायतों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है, मगर कार्रवाई के नाम पर सन्नाटा पसरा है।

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गांव की सरकार को जकड़े बैठे हैं भ्रष्टाचार के दलाल!

ग्राम पंचायत चाकाबुड़ा की स्थिति इन दिनों इतनी विकट हो चुकी है कि नवनिर्वाचित सरपंच और पंचों की मांगें भी बेअसर साबित हो रही हैं। पंचायत सचिव रजनी सूर्यवंशी के खिलाफ सरपंच श्रीमती उमाबाई और उपसरपंच कृष्णकला सहित 10 से अधिक पंचों और 40 से ज्यादा ग्रामीणों ने मिलकर 23 अप्रैल 2025 को कलेक्टर को विस्तृत 16 बिंदुओं की शिकायत सौंपी थी। शिकायत में आरोप लगाए गए हैं कि सचिव ने पूर्व सरपंच पवन सिंह और रोजगार सहायिका अंजू सिदार के साथ मिलकर योजनाओं का पैसा डकारा, फर्जी निर्माण कार्यों के नाम पर लाखों रुपये का गबन किया, और शासकीय जमीन को अपात्र लोगों के नाम बेच दिया।

कोरबा चाकाबुड़ा पंचायत भ्रष्टाचार

शिकायतें दर्ज, बयान हुए – मगर कार्रवाई नदारद

ग्रामीणों की शिकायत पर प्रारंभिक जांच में पंचायत सचिव के खिलाफ बयान दर्ज किए गए, लेकिन कार्रवाई को लेकर अब तक प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इससे ग्रामीणों में जबरदस्त रोष है। लोगों का कहना है कि यह अफसरशाही की निष्क्रियता नहीं, बल्कि सत्ता-संरक्षित भ्रष्टाचारियों के प्रति “रहमत” का परिणाम है।

पंचायत भवन पर ताला, रिकॉर्ड गायब, योजनाएं ठप!

नवनिर्वाचित सरपंच उमाबाई ने बताया कि सचिव रजनी सूर्यवंशी न सिर्फ पंचायत कार्यालय में उपस्थित नहीं रहतीं, बल्कि पंचायत भवन में खुद ताला लगाकर चाबी अपने पास रखती हैं। आय-व्यय रजिस्टर, योजना फाइलें और विकास कार्यों का लेखा-जोखा तक सरपंच को नहीं सौंपा गया है। इससे पंचायत संचालन पूरी तरह बाधित है और ग्रामीणों को सरकार की मूलभूत योजनाओं से भी वंचित होना पड़ रहा है।

करोड़ों की योजनाओं में कागजी काम, धरातल पर शून्य!

शिकायतकर्ताओं के अनुसार ग्राम पंचायत में बीते वर्षों में फर्जी बिलिंग और अधूरे निर्माण कार्यों के जरिए करोड़ों रुपए का गोलमाल किया गया। कुछ मुख्य बिंदु:

  • स्ट्रीट लाइट — ₹3.21 लाख का खर्च, मगर गांव में मुश्किल से 10 लाइटें।
  • स्कूल, आंगनबाड़ी, नाला, शौचालय आदि के नाम पर — ₹9.28 लाख, लेकिन अधिकतर काम अधूरे या दिखावटी।
  • गली समतलीकरण, सोख्ता गड्ढा, सफाई, शौचालय निर्माण — ₹8.90 लाख, जबकि गांव की हालत बदहाल है।

 

यह पैसा किसे गया, कैसे गया – इसका कोई जवाब प्रशासन के पास नहीं।

पेयजल संकट – पूर्व सरपंच की करतूत ने और बढ़ाई मुसीबत

गांव के पेयजल संकट की कहानी और भी चौंकाने वाली है। हार से बौखलाए पूर्व सरपंच पवन सिंह ने पंचायत द्वारा हैंडपंपों में लगाए गए सबमर्सिबल पंप और सिंटेक्स टैंक ही उखाड़कर अपने घर ले गया। नतीजतन गांववाले पेयजल के लिए इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं।

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प्रभावशाली राजनेता का संरक्षण, इसलिए कार्रवाई नहीं?

ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत सचिव को कोरबा जिले के एक प्रभावशाली सत्ताधारी जनप्रतिनिधि का संरक्षण प्राप्त है। जनपद सीईओ यशपाल सिंह की चुप्पी, और कलेक्टर द्वारा की गई शिकायत पर अब तक कार्रवाई न होना, इसी “ऊपर से दबाव” की ओर इशारा करता है। ग्रामवासियों का कहना है कि सचिव की हिम्मत इतनी बढ़ चुकी है कि वह शिकायतों को भी चुनौती की तरह लेती हैं।

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ग्रामवासी अब आर-पार की लड़ाई को तैयार

अब चाकाबुड़ा के ग्रामीणों ने संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है। उनका कहना है कि अगर जिले स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वे राजधानी रायपुर तक आंदोलन छेड़ेंगे। “अगर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिलता रहा, तो हम गांव छोड़ राजधानी में डेरा डाल देंगे,” एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा।

न्याय की प्रतीक्षा में चाकाबुड़ा

यह पूरा मामला छत्तीसगढ़ शासन की “पंचायती राज व्यवस्था” और “जनकल्याणकारी योजनाओं” की साख पर सवाल खड़े करता है। ग्राम चाकाबुड़ा, जहां लोकतंत्र की सबसे बुनियादी इकाई यानी पंचायत को चलाने वाले लोग ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, वहां आम जनता को न्याय, विकास और भरोसा कब मिलेगा — यह सवाल अब सिर्फ गांव का नहीं, बल्कि पूरे जिले और शासन का है।

अगर अब भी आंखें बंद रहीं, तो चाकाबुड़ा जैसे सैकड़ों गांवों की आवाज़ सरकार और व्यवस्था के खिलाफ तूफान बनकर उठेगी।

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