छुरा में आदिवासी ज़मीन की गैरकानूनी रजिस्ट्री! प्रशासन की मिलीभगत से ओबीसी वर्ग को बेची गई जमीन, आदिवासी अधिकारों पर हमला

 

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र छुरा में एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने पूरे इलाके में हड़कंप मचा दिया है। ग्राम हीराबतर में एक आदिवासी नागरिक की जमीन को नियम-कानून को ताक पर रखकर पिछड़ा वर्ग (OBC) के लोगों के नाम पर रजिस्ट्री कर दिया गया। यह रजिस्ट्री न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है।

मामले की जड़: एक आदिवासी, दो रजिस्ट्री, दो OBC खरीदार!

गांव हीराबतर निवासी गणेशी पिता विसराम, जो कि अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग से हैं, ने अपनी निजी भूमि को किसी आवश्यक कार्य हेतु बेचा। लेकिन इस बिक्री में जो हुआ, वह चौंका देने वाला था — एक ही भूमि की रजिस्ट्री दो बार, और वह भी गैर-आदिवासी (OBC) वर्ग के दो लोगों के नाम!

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इस रजिस्ट्री में पटवारी से लेकर रजिस्ट्रार तक की मिलीभगत की आशंका है। मामला साफ तौर पर छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, पेसा कानून (PESA Act) और संविधान के आदिवासी सुरक्षा प्रावधानों का घोर उल्लंघन है।

आदिवासी अधिकारों की हत्या या सरकारी संरक्षण में ज़मीन लूट?

सवाल यह उठता है कि:

  • कैसे एक आदिवासी की जमीन गैर-आदिवासी को बेची जा सकती है, जबकि कानून साफ तौर पर कहता है कि बिना जिला कलेक्टर की अनुमति के आदिवासी ज़मीन की रजिस्ट्री गैर-आदिवासी को नहीं हो सकती?
  • रजिस्ट्रार और पटवारी ने कैसे दस्तावेज़ सत्यापित किए?
  • क्या इस प्रक्रिया में जानबूझकर आंखें मूंदी गईं?
  • क्या यह सुनियोजित ज़मीन घोटाला है, जिसके पीछे एक पूरा नेटवर्क काम कर रहा है?

स्थानीय लोगों का गुस्सा फूटा: “ये हमारी ज़मीनें हैं, कोई छीन नहीं सकता!”

ग्राम हीराबतर और आसपास के गाँवों में इस खुलासे के बाद भारी आक्रोश है। आदिवासी समुदाय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि “हम अपनी ज़मीन किसी गैर-आदिवासी को नहीं देंगे, चाहे कितने ही फर्जी रजिस्ट्रियाँ क्यों न हो जाएं। यह हमारे अधिकारों की लूट है।”

राजनीतिक भूचाल के आसार: जनप्रतिनिधियों की चुप्पी संदिग्ध

मामले की गंभीरता को देखते हुए सवाल उठने लगे हैं कि स्थानीय विधायक, जनपद सदस्य और प्रशासनिक अफसर क्यों चुप हैं?

क्या यह सब उनकी जानकारी में हुआ?

या फिर मिलीभगत इतनी गहरी है कि पूरा सिस्टम ही मौन साधे बैठा है?

जनता की मांग:

  1. तत्काल उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित की जाए।
  2. रजिस्ट्री रद्द की जाए और ज़मीन वापस आदिवासी को दी जाए।
  3. संबंधित पटवारी, तहसीलदार, रजिस्ट्रार को निलंबित कर उनके खिलाफ आपराधिक FIR दर्ज की जाए।
  4. इस तरह के मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए जिले में विशेष निगरानी समिति बनाई जाए।

अब बात करते हैं कानून की — ये है जमीन की बिक्री में तोड़े गए नियम और धाराएं:

1. छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 (Chhattisgarh Land Revenue Code, 1959):

  • धारा 170(B): यह धारा स्पष्ट करती है कि कोई भी आदिवासी अपनी जमीन को गैर-आदिवासी को नहीं बेच सकता, जब तक कि कलेक्टर से विशेष अनुमति न ली गई हो। यदि ऐसा किया गया है, तो वह सौदा “शून्य (Void ab initio)” माना जाएगा।
  • धारा 170(C): यदि भूमि का अतिक्रमण या अनुचित हस्तांतरण हुआ है, तो आदिवासी को उसकी जमीन वापस दिलाने का प्रावधान है।

2. पेसा अधिनियम, 1996 (PESA Act):

(Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act)

  • यह अधिनियम अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों को विशेष अधिकार देता है, जिनमें भूमि पर नियंत्रण प्रमुख है।
  • किसी भी प्रकार की जमीन बिक्री/हस्तांतरण ग्राम सभा की अनुमति के बिना अवैध मानी जाती है।
  • ग्राम सभा की अनुमति के अभाव में हुई यह रजिस्ट्री, सीधे पेसा अधिनियम की धारा 4(k) और 4(m)(i) का उल्लंघन है।

3. भारतीय संविधान के प्रावधान:

  • अनुच्छेद 244 और पांचवी अनुसूची: अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा हेतु विशेष प्रावधान किए गए हैं।
  • अनुच्छेद 46: राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अनुसूचित जातियों और जनजातियों की भूमि की रक्षा करे और उन्हें गैर-आदिवासियों द्वारा शोषण से बचाए।

क्या यह सिर्फ लापरवाही है या संगठित घोटाला?

रजिस्ट्री में:

  • बिना कलेक्टर की अनुमति,
  • बिना ग्रामसभा की बैठक,
  • बिना जमीन की जाति-पता पुष्टि,
  • और एक ही जमीन की दो अलग-अलग लोगों को बिक्री…

…यह संकेत करता है कि यह सिर्फ “गलती” नहीं बल्कि एक सुनियोजित षड्यंत्र हो सकता है।

इसमें पटवारी, तहसीलदार, रजिस्ट्री विभाग और स्थानीय दलालों की मिलीभगत की आशंका है।

जनता और जनसंस्थाओं की प्रतिक्रिया:

स्थानीय आदिवासी समाज, सामाजिक कार्यकर्ता और वकीलों ने इस मुद्दे को ज़बरदस्त तरीके से उठाया है।

उनका कहना है —

“यह ज़मीन सिर्फ मिट्टी नहीं, हमारी पहचान है! कानून ने हमें हक दिया है, कोई कागज का टुकड़ा हमसे हमारी धरती नहीं छीन सकता।”

मांग क्या उठ रही है?

  1. रजिस्ट्री को तत्काल निरस्त किया जाए।
  2. गणेशी पिता विसराम को उनकी ज़मीन वापस लौटाई जाए।
  3. पटवारी, तहसीलदार, रजिस्ट्रार पर FIR दर्ज कर सस्पेंड किया जाए।
  4. SDM/DM स्तर पर जांच कमेटी गठित हो।
  5. PESA कानून के उल्लंघन पर मामला हाईकोर्ट तक ले जाया जाए।

क्या सरकार जागेगी या फिर आदिवासी जमीनों की लूट यूं ही चलती रहेगी?

यह मामला सिर्फ एक ज़मीन की बिक्री नहीं, बल्कि एक समुदाय के अस्तित्व, उसकी पहचान और उसके संवैधानिक अधिकारों पर हमला है। यदि अब भी शासन-प्रशासन नहीं जागा, तो यह चुप्पी पूरे आदिवासी समाज में विद्रोह की चिंगारी बन सकती है।

मीडिया ऑपरेशन के दौरान तहसीलदार से सवाल, मिला हैरान करने वाला जवाब!

जब हमारे मीडिया संवाददाता ने इस गंभीर मामले पर छुरा के तहसीलदार श्री रमेश मेहता से सीधा सवाल किया, तो उन्होंने कहा:

“फिलहाल उक्त जमीन की प्रमाणीकरण (mutation) प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई है और इस पूरे मामले की जानकारी जिला कलेक्टर को भेज दी गई है। आगे की कार्रवाई कलेक्टर के दिशा-निर्देशों पर की जाएगी।”

लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि “एक आदिवासी की जमीन की रजिस्ट्री OBC को कैसे कर दी गई?”, तो उन्होंने बात को टालते हुए कहा:

“मैं कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर जा रहा हूँ, लौटकर देखेंगे।”

इस जवाब ने प्रशासन की संवेदनहीनता और गैर-जिम्मेदारी को उजागर कर दिया है।

निष्कर्ष — ये सिर्फ जमीन नहीं, आदिवासी अस्मिता का सवाल है

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की जमीनें धीरे-धीरे “कानूनी जालसाजी” के जरिए छीनी जा रही हैं। यह मामला सिर्फ हीराबतर या गरियाबंद का नहीं, पूरे प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में फैलते एक खतरनाक चलन का उदाहरण है।

अब देखना यह है कि शासन और प्रशासन इस पर क्या कार्रवाई करता है — या यह भी साइलेंट फाइल बनकर सरकारी दफ्तरों में धूल खाएगा?

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