विकास कुमार ध्रुव

छुरा(गंगा प्रकाश)-राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा, किसानों की आय को बढ़ाने और शहरों की सडक़ों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को रोकने के उद्देश्य से रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी। लेकिन गरियाबंद जिला के ब्लॉक मुख्यालय छुरा नगर में यह अभियान पूरी तरह सुपर फ्लॉप होता नजर आ रहा है। शासन के निर्देशों के बावजूद छुरा नगर में मवेशी सडक़ों पर बैठे रहते हैं। साथ ही खेतों में पहुंचकर भी मवेशी फसलों को चर रहे हैं।

पशुओं की सुरक्षा और सडक़ दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए राज्य सरकार ने रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत मवेशियों को गोठानों में रखने की योजना है। शासन की महत्तवकांक्षी योजना का क्रियान्वयन सिर्फ दिखावे तक ही सीमित नजर आ रहा है।आज भी मवेशी सडक़ों पर बैठे नजर आ रहे है। ये मवेशी हादसों को आमंत्रित कर रहे हैं बारिश के बाद मवेशी अक्सर मुख्य सडक़ों पर बैठ जाते है, जिनकी चिंता न प्रशासन कर रहा है और न ही यातायात विभाग। अभी गांव गांव में यातायात विभाग द्वारा जन चौपाल लगाकर लोगों को यातायात के नियम और सावधानी बताया जा रहा अधिकारी जिन रास्तों से हो कर गांव जाते हैं, उन रास्तों पर भी मवेशी बैठे रहते हैं। बावजूद इसके इन पर अधिकारी भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।बता दें कि प्रदेश में रोका-छेका अभियान कहीं धीमा तो कहीं ठप है। राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए कृषि की परंपरा रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी। शहरों की सडक़ों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को रोकने के लिए भी यह कदम अहम माना गया। पकड़े गए मवेशियों को कांजी हाउस और गोठानों में रखने के आदेश दिए गए है। लेकिन ज्यादातर जगहों पर तस्वीर इसके विपरीत नजर आ रही है।

क्या है रोका-छेका

रोका- छेका पुराने समय से ग्रामीण जिंदगी का अभिन्न हिस्सा रहा है। खरीफ फसल की बोआई के बाद फसल की सुरक्षा के लिए पशुधन को गोशालाओं में रखने की प्रथा रही है, ताकि मवेश खेतों में न जा पाएं और फसल सुरक्षित रहे। मवेशियों को संरक्षित करना, फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है।गौरतलब हो कि 3 साल पहले प्रदेश सरकार ने बड़े धूमधाम से रोका छेका अभियान की शुरुआत की थी। शुरू में सड़कों से मवेशियों को पकड़कर कांजी हाउस ले जाया जाता था, लेकिन अब काउ कैचर गाड़ियां भी दूर दूर तक नजर नहीं आतीं।

छत्तीसगढ़ की इस महत्वकांक्षी योजना का छुरा सहित पूरे गरियाबंद जिला में में बुरा हाल हैं।बता दे कि ‘रोका छेका अभियान’ छुरा नगर में कागजों पर सिमट कर रहा गया है। सड़कों पर घूम रहे मवेशियों को पकड़कर कांजी हाउस पहुंचाने का नियम बनाया गया था।लेकिन अब बीते कुछ वर्षों से अभियान पूरी तरह ठप पड़ गया है।सड़को पर घूमते मवेशी छुरा नगर की मुख्य सड़कों के साथ ही कई स्वर्णजयंती चौक,बजरंग चौक नगर पंचायत छुरा कार्यालय और खासकर बाजारों में नजर आ रहे हैं।आलम ये है कि सड़कों पर मवेशियों के होने से आए दिन दुर्घटनाओं का अंदेशा बना हुआ हैं।और मवेशियों की भी जान खतरा बना हुआ हैं।

सड़कों पर नहीं दिखती काऊ केचर की गाड़ियां

3 साल पहले प्रदेश सरकार ने बड़े धूमधाम से रोका छेका अभियान की शुरुआत की थी नगरीय प्रशासन और विकास मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी किया था।शुरुआती दिनों में नगर निगम की काऊ केचर गाड़ियां सड़कों और बाजारों में भेजने की बात कही गई थी जो कि सड़कों से घूमते मवेशियों को पकड़कर कांजी हाउस ले जाने की भी बड़ी बड़ी बात कही गई थी लेकिन अब काउ कैचर क्षेत्र और नेशनल हाइवे में भी दूर दूर तक नजर नहीं आती हैं।मवेशियों को सड़क पर आने से रोकने के लिए मालिकों से जुर्माना वसूली का प्रावधान बनाया गया था।जानकरी के मुताबिक मवेशी मालिकों पर 350 का जुर्माना था। देखने में आया कि ज्यादातर दुधारु मवेशी मालिकों ने जुर्माना अदा करने के डर से मवेशी ले जाने में रुचि दिखाई थी बाकी मवेशी मालिक कांजी हाउस में झांकने भी नहीं आए, लेकिन अब सड़कों पर बड़ी संख्या में मवेशी घूम रहे हैं।मवेशी मालिकों के खिलाफ कोई जिम्मेदार कार्रवाई नहीं कर रहा है।

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