प्रकाश कुमार यादव 

कोरबा(गंगा प्रकाश):-छत्तीसगढ़ में जब से जिला खनिज न्यास का कानून बना है और इसके तहत करोड़ों रुपयों का फण्ड मिलना शुरू हुआ है, तब से जिलों में इस रकम का दोहन करने के लिए हर वर्ष नई-नई जुगत लगाई जा रही है। कायदे से सरकार की ओर से मिलने वाली किसी भी राशि को भंडार क्रय नियम के मुताबिक खर्च किया जाता है, मगर यही रकम जब डीएमएफ के मद से मिलती है, तब उसे खर्च करने के लिए नियम कायदों को ताक पर रख दिया जाता है। कोरबा जिले के सरकारी विभागों में बीते कुछ सालों से ऐसा ही हो रहा है, मगर उच्चाधिकारी भी सब कुछ जानकर अनजान बने हुए हैं।

हम बात कर रहे हैं कोरबा जिले के महिला एवं बाल विकास विकास विभाग की, जो इन दिनों काफी चर्चा में है। हाल ही में भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल द्वारा महिला एवं बाल विकास विकास विभाग कोरबा डीएमएफ से मिले करोड़ों रुपयों के खर्च का हिसाब मांगा गया तब यहां की गई अनाप-शनाप खरीदी उजागर हो गई। चूंकि विभाग की संचालक दिव्या उमेश मिश्रा ने ही मामले की प्रारंभिक जांच करके सारी गड़बड़ी बताई और सीधे इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्यवाही की अनुशंसा मंगाई मगर अब तक जांच के लिए केवल कमेटी का ही गठन हो सका है। इस बीच यहां मनमाने तरीके से किये गए खर्चों की जो जानकारी सामने आयी है,वह काफी चौंकाने वाली है। आज हम उसे बिंदुवार आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

खरीदी के लिए बना ली विभाग की ही समिति

भण्डार क्रय नियम के अनुसार विभागों में जिला स्तरीय क्रय समिति अनुमोदन उपरांत ही सामग्री का प्रदाय किया जाना आवश्यक है। इस नियम के मुताबिक जिला स्तरीय क्रय समिति में कलेक्टर अथवा कलेक्टर के प्रतिनधि, वित्तीय अधिकारी अर्थात जिला कोषालय अधिकारी, क्रय किये जाने वाली सामग्रियों के तकनीकी ज्ञान रखने वाले अधिकारी अर्थात महा प्रबंधक जिला उद्योग एवं व्यापार तथा विभाग के लेखा शाखा प्रभारी का होना आवश्यक है। मगर डीएमएफ की रकम से करोड़ों की खरीदी के लिए जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) द्वारा आतंरिक क्रय समिति का गठन कर उसमें वरिष्ठ परियोजना अधिकारी, लिपिक एवं पर्यवेक्षक को शामिल कर सामग्रियों का सत्यापन कराया गया। जिला क्रय समिति का गठन नहीं करके तत्कालीन डीपीओ ने पूरी खरीदी को ही संदेह के दायरे में ला दिया है।

कलेक्टर के अनुमोदन के बिना खुलवाया खाता

शासकीय विभागों में नियम है कि विभाग में कोई भी नया खाता खुलवाने के लिए कलेक्टर का अनुमोदन जरुरी होता है मगर जिला कार्यक्रम अधिकारी ने डीएमएफ से मिलने वाली रकम के लिए अलग से एचडीएफसी बैंक खाता खुलवाया और इसी के माध्यम से जिला खनिज न्यास से मिलने वाली रकम को खर्च किया गया। सवाल यह उठता है कि डीपीओ को अलग से खता खुलवाने की जरुरत क्यों पड़ी और इसके लिए कलेक्टर से अनुमोदन क्यों नहीं लिया गया?

वितरण व्यवस्था से परियोजनाओं को रखा गया अलग

जब घोटाले करने होते हैं तो कई नए तरीके अपना लिए जाते हैं। ऐसा ही एक अनूठा तरीका कोरबा के महिला एवं बाल विकास विभाग में देखने को मिला। नियमतः किसी भी सामग्री का आबंटन डीपीओ द्वारा परियोजना कार्यालयों के माध्यम से किया जाना था, मगर जिला मुख्यालय से सामग्रियां सीधे आंगनबाड़ी केंद्रों को भेजी गईं।

बता दें कि कोरबा जिले में इस विभाग के 10 परियोजना अधिकारी कार्यालय हैं, जिनके अधीन जिले भर के 91 सेक्टर सुपरवाइजर और 2314 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। आश्चर्य की बात यह है कि कोरबा जिले में डीएमएफ की रकम से करोड़ों की सामग्रियों और पोषक आहार का वितरण आंगनबाड़ी केंद्रों में बीते 3-4 सालों में हो गया मगर किसी भी परियोजना में इसका उल्लेख ही नहीं है।

कायदे से वितरण के लिए परियोजना कार्यालय में सामग्रियों के साथ ही क्रय आदेश आना चाहिए और इसकी इंट्री स्टॉक पंजी में होनी चाहिए। चूंकि जिला मुख्यालय से सीधे आंगनबाड़ी केंद्रों में सामग्रियां भेजी गईं इसलिए परियोजना कार्यालयों में इसकी इंट्री ही नहीं है। डीपीओ को आखिर ऐसा करने की जरुरत ही क्यों पड़ी ?

जहां बिजली नहीं वहां भी बांट दिया आरओ

कोरबा जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों को स्मार्ट बनाने के नाम पर जमकर खेल खेला गया। यह बात सभी को पता है कि इस दौरान सभी केंद्रों में निर्धारित मात्रा से कम सामग्रियां दी गईं और ज्यादा की पावती में हस्ताक्षर आगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से कराया गया, केंद्रों से सामग्रियों का सत्यापन कराया जा सकता है। मिली जानकारी के मुताबिक केंद्रों में विभिन्न सामग्री बर्तन, फर्नीचर, इलेक्ट्रानिक वजन मशीन, ए.एन.सी टेबल, स्टेथस्कोप, फिटल डपलर, वजन मशीन, बीपी इन्स्ट्रूमेंट, आंगनबाड़ी केन्दों के सृदरीकरण, नवजात शिशु एवं गर्भवती महिलाओं के उत्थान हेतु किट, सूखा राशन रखने हेतु माडयूलर रेक, स्मार्ट आंगनबाड़ी केन्द्र हेतु सामाग्री, इसी प्रकार बुक सेल्फ आलमारी पत्येक केन्द्र में 2 नग का क्रय किया गया है, जबकि आंगनबाड़ी केन्द्रों में एक-एक नग आलमारी प्रदाय किया गया।

आंगनबाड़ी केन्द्रों में शुद्ध पेयजल के लिए आरओ मशीन का आबंटन किया गया। यहां उल्लेखनीय है कि जहां बिजली नहीं है, उन आंगनबाड़ी केन्द्रों में भी आरओ लगा दिया गया। बता दें कि ग्राम रंजना में आयोजित मुख्य्मंत्री के भेंट-मुलाकात कार्यक्रम मे इस बात की शिकायत भी की गई थी। इसी प्रकार, एजुकेशन किट और अन्य विभिन्न प्रकार की सामग्री भी दी गई, जिनकी बाजार दर से काफी अधिक कीमत दर्शाई गई है।

महिला समूहों को बनाया कमाई का जरिया

कोरबा जिले के कुल 91 सेक्टर में 91 महिला समूहों को 2314 आंगनबाड़ी केन्द्रों में रेडी टू ईट बनाकर वितरण करने का काम दिया गया था। मगर जब डीएमएफ की रकम से अण्डा / केला / लड्डू खरीदकर बांटने की बारी आयी तब इसके लिए सभी समूहों की बजाय केवल 32 ठेकेदारनुमा महिला समूहों का चयन किया गया। ये ऐसे समूह हैं, जो हैं तो महिलाओं के नाम पर मगर इनका संचालन कतिपय ठेकेदारों द्वारा किया जाता है और इनकी विभाग के अधिकारियों से अच्छी सेटिंग है।

सैंकड़ों चेक की पावती नहीं, केश बुक का संधारण नहीं

डीएमएफ की रकम से पोषक आहार के वितरण के लिए जिन 32 समूहों को कथित तौर पर काम दिया गया, उनसे कमीशन की राशि हासिल करने के लिए सीधे उनके खाते में राशि जमा नही करते हुए सीधे चेक काटा गया। उक्त अवधि में लगभग 4200 चेक काटे गये। जानकारी मिली है कि काटे गए चेक का चेक पंजी में उल्लेख नहीं है और चेक की पावती भी कार्यालय में नहीं रखी गई है।बता दें कि किसी भी शासकीय राशि के लिए नियमानुसार रोकड़ बही का संधारण किया जाना आवश्यक होता है। जानकारी मिल रही है कि डीएमएफ की रकम के समूहों को लेनदेन के लिए रोकड़बही अर्थात केश बुक का संधारण डीपीओ कार्यालय में किया ही नहीं गया है। तथा काटे गए चेक के अनुसार समूहो से प्राप्त देयक का बिना परीक्षण किये ही चेक काटा गया है। बताया जा रहा है कि अगर जांच की गई तो कार्यालय में आधे-अधूरे देयक जांच दल को मिलेंगे।

एक हाथ से चेक दिया दूसरे हाथ से ले भी लिया

महिला एवं बाल विकास विभाग में परियोजना अधिकारी के पद पर मुख्यालय में पदस्थ एक अधिकारी इस पूरे घालमेल में शामिल रहे और डीपीओ चुपचाप उन्हें संरक्षण देते रहे। बता दें कि यह अधिकारी दूसरे जिले में तबादले के बाद फिर से यहां कटघोरा में आकर जम गए हैं। इस अधिकारी ने महिला समूहों को रात-रात को कार्यालय बुलाकर चेक बांटा। इस दौरान वहां कुछ व्यवसायी भी मौजूद रहते थे। अधिकारी द्वारा समूह को चेक देने के बाद उनसे संबंधित राशि का चेक समूह के कहते से लेकर व्यवसायी को दिया जाता था। ऐसा करने के एवज में समूह को मामूली कमीशन भी दिए जाने की बात सामने आयी है।इस प्रक्रिया से यह बात समझ में आयी कि अधिकारियों ने आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषक आहार बांटने का काम चुनिंदा महिला समूहों को देना बताया, और उनकी आड़ में किसी व्यवसायी के माध्यम से पोषक आहार बंटवाया। बाद में जब रकम देने की बारी आयी तो व्यवसायी के नाम से चेक महिला समूहों से दिलवाया दिया गया। इस तरह डीएमएफ से मिलने वाली रकम की बंदरबांट कर ली गयी।

महिला समूहों के खातों की जांच हो

जानकारों का दावे के साथ कहना है कि संबंधित 32 महिला समूहों के बैंक खातों से लेनदेन की जांच की जानी चाहिए जिन्हे डीएमएफ की रकम से पोषक आहार के नाम पर लाखों रूपये आबंटित किये गए। समूहों ने किनके नाम पर और क्यों चेक काटे, इसका खुलासा हो जायेगा।

चट टेंडर – पट सप्लाई और तत्काल भुगतान

कोरबा जिले के महिला एवं बाल विकास विभाग में भंडार क्रय नियम का पालन नहीं किये जाने की बात सामने आयी है। इसके अलावा जो टेंडर किये भी गए उनमे भरी घालमेल किया गया। कायदे से टेंडर की प्रक्रिया महीने भर में पूरी होनी चाहिए, मगर यहां दस्तावेजों को खंगाला जाये तो यह बात सामने आती है कि यहां कई सामग्रियों की टेंडर प्रक्रिया हफ्ते भर से भी कम समय में पूरी कर ली गई। इसके तत्काल बाद सामग्रियों की आपूर्ति फर्मों द्वारा कर ली गई और उन्हें जल्द से जल्द भुगतान भी कर दिया गया। ऐसा क्यों किया गया शायद यह बताने की जरुरत नहीं है। आखिर में ये भी बताते चलें कि जिस कार्यकाल में सारी गड़बड़ियां हुईं उस दौरान जिले में कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) के पद पर आनंद प्रकाश किस्पोट्टा, एमडी नायक और गजेंद्र देव सिंह पदस्थ रहे हैं। इसके अलावा मुख्यालय में बतौर परियोजना अधिकारी मनोज अग्रवाल की तैनाती रही। बहरहाल जरुरत है करोड़ों के इस घालमेल की निष्पक्षता से तत्काल जांच करने की मगर जिस तरह जिले के मुखिया ढुलमुल रवैया अपना रहे हैं उससे लगता नहीं है कि सरकार को चूना लगाने वालों के खिलाफ इतनी जल्दी कार्यवाही होगी।

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