Brekings: बम की तरह फूटा किसानों का गुस्सा! “सुखत हमारी गलती नहीं, सिस्टम की साजिश है” – राजिम विधानसभा की 40 से अधिक सहकारी समितियों का प्रशासन पर सीधा हमला

 

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ की राजिम विधानसभा में किसानों और सहकारी समितियों का आक्रोश आखिरकार फूट पड़ा। धान खरीदी में “सुखत” (वजन में हानि) के मुद्दे पर प्रशासन की आंख मूंद नीतियों से नाराज़ सहकारी समिति प्रतिनिधियों ने बुधवार को गरियाबंद जिला कलेक्टर कार्यालय का घेराव करते हुए एक तीखा ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में स्पष्ट आरोप लगाए गए कि इस बार सुखत किसानों या समितियों की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की चूक और साजिश का परिणाम है।

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इस ज्ञापन में 40 से अधिक सहकारी समितियों के अध्यक्ष, सचिव और प्रतिनिधि शामिल थे, जिन्होंने प्रशासनिक लापरवाही, मिलर्स की मनमानी और भंडारण व्यवस्था की नाकामी को इस पूरे “सुखत प्रकरण” का असली जिम्मेदार बताया। सबसे खास बात यह रही कि समिति प्रतिनिधियों ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा – “अगर सुखत का भार हम पर डाला गया तो फिर यह अकेली जिम्मेदारी नहीं होगी, इस भ्रष्ट और असंवेदनशील व्यवस्था में शामिल हर अधिकारी को इसका बराबर का दोषी मानकर कार्रवाई होनी चाहिए।”

 

मूल वजह – सिस्टम की ढिलाई, किसानों की नहीं:

सोसायटी महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र सोनकर ने कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन में बताया कि धान खरीदी के बाद सबसे बड़ी समस्या समय पर उठाव की थी। मिलर्स ने धान समय से नहीं उठाया, जिससे वह महीनों तक खुले में पड़ा रहा। भंडारण केंद्रों में बफर लिमिट से अधिक धान जमा हो गया और मौसम की मार, दीमक–चूहे जैसे जीवों के हमले ने स्थिति और बदतर कर दी। नतीजतन, लाखों क्विंटल धान की गुणवत्ता और वजन प्रभावित हुआ।

“हमने बार-बार प्रशासन को लिखित और मौखिक रूप से अवगत कराया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, और अब जब नुकसान हुआ है, तो सारा दोष हम पर मढ़ा जा रहा है,” – सोनकर ने कहा।

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सुखत की वैज्ञानिक सच्चाई – धान की नमी का खेल:

ज्ञापन में यह भी बताया गया कि धान खरीदी के समय उसमें 17 प्रतिशत तक नमी होती है, जो समय बीतने के साथ 11-12 प्रतिशत पर आ जाती है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया है और हर वर्ष होती है। यह कोई अनियमितता नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सत्य है। इसके बावजूद जिला अधिकारियों ने इस बात को नजरअंदाज करते हुए सुखत के नाम पर सहकारी समितियों पर जुर्माना और आर्थिक दंड का दबाव बनाना शुरू कर दिया है।

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दोषियों की सूची में प्रशासन क्यों नहीं?

समितियों ने यह भी सवाल उठाया कि यदि सुखत की वजह से कोई दोषी है तो केवल समिति प्रबंधक क्यों? क्या इस प्रक्रिया में शामिल उच्चाधिकारी, जिला प्रबंधक, नोडल अधिकारी और खाद्य विभाग के अफसर पाक-साफ हैं? “जो अधिकारी खरीदी के समय निरीक्षण करते हैं, रिपोर्ट बनाते हैं, वे सब कहां थे जब धान खुले में सड़ रहा था?” – यह सवाल हर प्रतिनिधि की जुबान पर था।

बड़ी मांग – सुखत को किया जाए शून्य:

समितियों ने प्रशासन से मांग की है कि इस बार के सुखत को शून्य घोषित किया जाए, ताकि समितियों को आर्थिक संकट से बचाया जा सके। “हम किसानों की मेहनत के लिए खड़े होते हैं, लेकिन जब सिस्टम की गलती से नुकसान हो और हमें ही बलि का बकरा बनाया जाए – यह अन्याय अब बर्दाश्त नहीं होगा,” – महासंघ के उपाध्यक्ष ईश्वर साहू ने कहा।

कौन-कौन थे शामिल – एकजुटता की मिसाल:

इस ज्ञापन कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ नेता वेश नारायण ठाकुर, जनकराम श्रीवास, बल्ला सिंह मरकाम, ललित साहू, अमर सिंह ठाकुर, धनीराम साहू, अश्वनी विश्वकर्मा, कोमल ढीढ़ी, बंशीलाल रात्रे, ओमप्रकाश साहू, रोहित जगत, टीकम सोरी, परमेश्वर ध्रुव, उज्जव नागेश सहित 40 से अधिक समिति प्रतिनिधि और किसान नेता शामिल रहे।

क्या कहता है प्रशासन?

प्रशासन की ओर से अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, ज्ञापन पर विचार किया जा रहा है और जल्द ही उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जा सकती है।

विश्लेषण:

यह घटना सिर्फ एक ज्ञापन सौंपने की नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण छत्तीसगढ़ की उस खदबदाहट का संकेत है, जिसमें किसान और समितियाँ अब चुप बैठने को तैयार नहीं। यह सीधा हमला है उस “कागज़ी व्यवस्था” पर जो ज़मीनी सच्चाई से कोसों दूर है।

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