CGNEWS: युवाओं को भी जकड़ रहा हाई बीपी और शुगर: बदलती जीवनशैली बन रही गंभीर बीमारियों की बड़ी वजह

 

फिंगेश्वर/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। एक समय था जब ‘ब्लड प्रेशर’ और ‘डायबिटीज़’ जैसे शब्द सुनते ही मन में बुजुर्गों की छवि उभरती थी। पर अब तस्वीर बदल गई है। बीमारियों का यह चेहरा न केवल उम्रदराज़ लोगों में बल्कि युवाओं में भी तेजी से फैलता जा रहा है। 20 से 35 वर्ष के युवा, जो देश का भविष्य माने जाते हैं, अब इस भविष्य पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। इसका कारण कोई वायरस या बाहरी हमला नहीं, बल्कि खुद उनकी जीवनशैली है।

लाइफस्टाइल बनी बीमारी की जड़

आज का युवा वर्ग लगातार ‘वर्क प्रेशर’, ‘सोशल मीडिया प्रेशर’, ‘कैरियर प्रेशर’ और ‘सक्सेस प्रेशर’ से जूझ रहा है। इन सबके बीच न व्यायाम के लिए समय है, न पर्याप्त नींद के लिए। जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक्स, शराब, धूम्रपान और मोबाइल की लत ने उन्हें बीमारियों की ओर ढकेल दिया है।

स्थानीय अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों से मिली जानकारी के अनुसार, फिंगेश्वर और आसपास के ग्रामीण अंचलों में प्रतिदिन लगभग 20 से 25 नए शुगर के मरीज सामने आ रहे हैं। इनमें से करीब 30% मरीज युवा वर्ग के हैं, जिनकी उम्र 18 से 35 के बीच है।

चौंकाने वाले आंकड़े

गांवों में पहले शुगर और बीपी जैसी बीमारियों को शहरी जीवन का नतीजा माना जाता था। लेकिन अब गांवों में भी मोटापा, तनाव और खानपान में बदलाव के चलते यह स्थिति तेजी से बदल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी युवा अब बीपी और शुगर की नियमित दवाइयां लेने को मजबूर हो रहे हैं।

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले छह महीनों में सिर्फ फिंगेश्वर ब्लॉक में ही 3,500 से अधिक नए डायबिटीज और हाई बीपी के मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें 1,100 से ज्यादा केस 40 साल से कम उम्र के हैं।

विशेषज्ञों की चेतावनी: समय रहते संभलें युवा

फिंगेश्वर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. रमेश पटेल कहते हैं, “युवाओं में शुगर और बीपी की समस्या पहले बहुत कम देखने को मिलती थी, लेकिन अब ओपीडी में हर दिन 8 से 10 युवा ऐसे आते हैं जिन्हें हाई बीपी या प्री-डायबिटिक की स्थिति होती है। ये बेहद चिंता की बात है।”

उनका कहना है कि अनियमित दिनचर्या, तनाव और पर्याप्त नींद की कमी इन बीमारियों की सबसे बड़ी वजह है। “आज के युवा रातभर मोबाइल चलाते हैं, दिन में लेट उठते हैं और नाश्ता छोड़कर सीधे दोपहर का फास्ट फूड खाते हैं। यह आदतें धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर रही हैं।”

लाइफस्टाइल बदलें, तो बीमारी से बचाव संभव

विशेषज्ञों के अनुसार, यह बीमारियाँ पूरी तरह से जीवनशैली से जुड़ी हैं और समय रहते सावधानी बरती जाए तो इनसे बचा जा सकता है। इसके लिए निम्न बातों पर ध्यान देना जरूरी है:

  • प्रतिदिन 30 से 45 मिनट का व्यायाम करें।
  • सात से आठ घंटे की नींद लें।
  • जंक फूड, तली-भुनी चीज़ें और अत्यधिक मीठे से दूरी बनाएं।
  • नशे की आदतें छोड़ें।
  • मानसिक तनाव को कम करने के लिए ध्यान, योग और खुलकर बात करें।
  • हर 2 से 5 साल में बीपी और शुगर की जांच कराएं। 40 की उम्र पार करने के बाद सालाना जांच अनिवार्य होनी चाहिए।

समाज और परिवार की जिम्मेदारी

केवल व्यक्तिगत स्तर पर बदलाव से ही यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती। इसके लिए समाज और परिवार को भी जागरूक होने की जरूरत है। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सिर्फ पढ़ाई और करियर के दबाव में न रखें, बल्कि उनके खानपान, नींद और मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दें।

सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि गांव-गांव जागरूकता अभियान चलाएं, स्कूलों और कॉलेजों में हेल्थ स्क्रीनिंग कैंप लगवाएं और युवाओं में हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए प्रेरणा पैदा करें।

निष्कर्ष:

बढ़ती बीपी और शुगर की समस्या एक खामोश खतरा बनकर युवाओं के जीवन को प्रभावित कर रही है। यह न सिर्फ स्वास्थ्य का सवाल है, बल्कि आने वाले समय में समाज की उत्पादकता और आर्थिक ढांचे को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसे में अब समय आ गया है कि युवा खुद जागरूक बनें और अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें, क्योंकि स्वस्थ युवा ही देश का सशक्त भविष्य है।

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