Anil Mishra Controversy , ग्वालियर। बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेकर विवादास्पद बयान देने वाले ग्वालियर के एडवोकेट अनिल मिश्रा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर वीडियो जारी करते हुए कहा कि “भीमराव अंबेडकर न तो दलित थे, न महापुरुष और न ही संविधान के निर्माता।”उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, वहीं कानूनी कार्रवाई की मांग भी जोर पकड़ रही है।

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क्या कहा एडवोकेट अनिल मिश्रा ने?

वायरल वीडियो में अनिल मिश्रा ने कई विवादित दावे किए—

  • “अंबेडकर एक साधारण इंसान थे, उन्हें महिमामंडित किया गया है।”

  • “संविधान उन्होंने नहीं बनाया, यह ब्रिटिश मॉडल की नकल है।”

  • “अंबेडकर दलित नहीं थे, क्योंकि उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था, इसलिए उन पर टिप्पणी करने से SC/ST एक्ट नहीं लगता।”

उनके इन बयानों ने विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में आक्रोश पैदा कर दिया है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

वीडियो सामने आते ही हजारों लोगों ने उनकी आलोचना करते हुए इसे बाबा साहेब का अपमान बताया।
कई यूजर्स ने कहा कि डॉ. अंबेडकर की पहचान और योगदान पर सवाल उठाना इतिहास से खिलवाड़ है।
वहीं, कुछ लोगों ने मिश्रा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की है।

संगठनों ने जताई आपत्ति

दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि डॉ. अंबेडकर केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व इतिहास में समानता और सामाजिक न्याय के प्रतीक रहे हैं।उनके सम्मान पर ऐसी टिप्पणी असंवेदनशील और भड़काऊ है।

कानूनी कार्रवाई पर सवाल

जबकि कई वकीलों और विशेषज्ञों का कहना है कि धार्मिक पहचान बदलने से जातिगत पहचान समाप्त नहीं होती, इसलिए मिश्रा का SC/ST एक्ट से बचने का तर्क सही नहीं माना जा सकता।कुछ संगठनों ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए स्थानीय प्रशासन से संपर्क किया है।

मिश्रा ने दोहराए अपने बयान

बढ़ते विवाद के बावजूद अनिल मिश्रा अपने बयान पर कायम हैं। उनका दावा है कि वे “इतिहास का सच” बता रहे हैं और उन पर किसी तरह का दबाव नहीं है। उन्होंने एक और वीडियो जारी कर कहा कि वे आने वाले दिनों में और “तथ्यों” को सामने लाएंगे।

मामला क्यों गंभीर माना जा रहा है?

डॉ. भीमराव अंबेडकर भारत में सामाजिक न्याय, संविधान निर्माण और मानवाधिकारों के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक हैं।
उन पर टिप्पणी करना न केवल संवेदनशील मुद्दा बन जाता है, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों की भावनाओं को प्रभावित करता है।यही वजह है कि यह विवाद तेजी से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है।यह विवाद अब केवल ग्वालियर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे देश में बहस छेड़ चुका है कि क्या सार्वजनिक मंच पर इस तरह के बयान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है या सामाजिक सौहार्द को तोड़ने की कोशिश?

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