“बच्चों के हाथों में किताबें नहीं, कबाड़ में बिक रही शिक्षा” शिक्षक परेशान, स्कूल जर्जर, और सरकार शाला प्रवेश उत्सव मनाने में मस्त – कांग्रेस का तीखा हमला

 

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। बच्चों के हाथों में किताबें नहीं, कबाड़ में बिक रही शिक्षा” एक ओर जहां छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार “शाला प्रवेश उत्सव” जैसे सरकारी कार्यक्रमों को बड़े ही धूमधाम से मना रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत भयावह और शर्मनाक तस्वीर पेश कर रही है। गरियाबंद जिले के ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष हाफिज खान और कांग्रेस मीडिया प्रभारी टिकेश साहू ने सरकार पर शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि यह उत्सव केवल एक राजनीतिक इवेंट बनकर रह गया है, जिससे बच्चों का कोई वास्तविक भला नहीं होने वाला।

“शिक्षा के मंदिर बन गए हैं जर्जर खंडहर”

टिकेश साहू ने कहा कि गरियाबंद सहित पूरे प्रदेश में ऐसे सैकड़ों सरकारी स्कूल हैं जिनकी इमारतें खस्ताहाल और जर्जर हो चुकी हैं। कहीं छत टपक रही है, तो कहीं कक्षाएं खुले आसमान के नीचे चल रही हैं। बच्चों के लिए बैठने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, और शिक्षकों की भारी कमी से पढ़ाई नाम मात्र की हो रही है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “यह कैसा प्रवेश उत्सव है, जहां बच्चों का स्वागत जर्जर दीवारें और टूटी कुर्सियाँ कर रही हैं?”

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 “बस्ते में नहीं, कबाड़ में पहुंच रही किताबें”

मीडिया प्रभारी साहू ने खुलासा किया कि स्कूली किताबें छात्रों को समय पर नहीं मिल रही हैं। इस शिक्षण सत्र की किताबें स्कूलों तक पहुंचने से पहले ही कबाड़ी की दुकानों में बिकती देखी गईं। उन्होंने कहा, “पिछले साल भी शिकायतें आई थीं कि छपाई के बाद भी किताबें छात्रों को नहीं मिलीं, बल्कि रद्दी के भाव कबाड़ियों को बेच दी गईं। अब इस साल भी वही हाल है। कमीशनबाजी और भ्रष्ट तंत्र शिक्षा को कचरे में तब्दील कर रहे हैं।”

 “शिक्षकों में व्यापक असंतोष, व्यवस्था पटरी से उतर चुकी है”

प्रदेशभर में शिक्षकों के भीतर गहरा असंतोष व्याप्त है। उनका मानना है कि सरकार द्वारा लगातार किए जा रहे युक्तियुक्तकरण (school merger), पदों में कटौती और शिक्षा में संसाधनों की कमी जैसे फैसलों ने शिक्षण व्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष हाफिज खान ने कहा कि भाजपा सरकार शिक्षा के बुनियादी ढांचे को कमजोर कर निजी स्कूलों को संरक्षण देने में जुटी है। “ये सरकार न यूनिफॉर्म दे पा रही है, न सरस्वती साइकिल योजना के तहत साइकिलें। और ना ही शिक्षक पर्याप्त संख्या में तैनात हैं। फिर भी बड़ी बेशर्मी से ‘प्रवेश उत्सव’ मनाया जा रहा है।”

 “10 हजार से अधिक स्कूलों का विलोपन, बच्चों को 5-10 किमी दूर भेजने की मजबूरी”

हाफिज खान ने बताया कि सरकार ने बीते एक वर्ष में प्रदेश के 10,372 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया या फिर पास के अन्य विद्यालयों में विलीन कर दिया। इससे दूर-दराज़ के ग्रामीण इलाकों में पढ़ने वाले बच्चों को रोज़ाना 5-10 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ रहा है। खासकर आदिवासी और गरीब समुदाय के बच्चे इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।

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“इवेंटबाजी से नहीं, नीति और नीयत से सुधरेगी शिक्षा”

कांग्रेस नेताओं ने एक स्वर में कहा कि भाजपा सरकार केवल इवेंटबाजी में माहिर है। स्कूलों की स्थिति सुधारने, पाठ्यपुस्तक वितरण, पोषण आहार और शिक्षक नियुक्ति जैसे बुनियादी मुद्दों से उसका कोई सरोकार नहीं है। हाफिज खान ने कहा, “प्रदेश में शिक्षा की रीढ़ टूट रही है। जबकि सरकार फोटोग्राफरों और ड्रम बाजों के साथ एंट्री फंक्शन मना रही है। ये नहीं समझती कि शिक्षा बच्चों का अधिकार है, चुनावी गिमिक नहीं।”

“निजीकरण की साजिश?”

दोनों नेताओं ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थाओं को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्कूलों को जानबूझकर उपेक्षित कर रही है। ताकि सरकारी शिक्षा प्रणाली बदनाम होकर खुद ही दम तोड़ दे और गरीबों के बच्चों के पास कोई विकल्प न बचे।

अंतिम सवाल: यह कैसा प्रवेश उत्सव?

जब शिक्षक हताश हैं, स्कूलों की दीवारें दरक रही हैं, और बच्चों की किताबें कबाड़ में बिक रही हैं—ऐसे में सरकार का ‘शाला प्रवेश उत्सव’ कितना सार्थक है? कांग्रेस का सवाल स्पष्ट है—”यह उत्सव नहीं, एक ढोंग है, जो केवल सरकार की विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए रचा गया है।”

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