CG: ईमानदार पत्रकार को बदनाम करने की साज़िश बेनकाब – अपराधियों और भ्रष्ट पटवारी के गठजोड़ से घबराया सच

 

लैलूंगा/रायगढ़ (गंगा प्रकाश)। ईमानदार पत्रकार को बदनाम करने की साज़िश बेनकाब – लैलूंगा क्षेत्र में पत्रकारिता का पर्याय बन चुके वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर जायसवाल एक बार फिर असामाजिक तत्वों और भ्रष्ट अधिकारियों के निशाने पर हैं। उनकी बेखौफ लेखनी और सच्चाई को उजागर करने की आदत अब अपराधियों और भ्रष्ट अफसरों को इतनी चुभने लगी है कि उनके खिलाफ षड्यंत्रों का ताना-बाना बुना जाने लगा है। यह साजिश केवल एक पत्रकार को निशाना बनाने की नहीं, बल्कि पूरे लोकतंत्र और समाज को भयभीत करने की कोशिश है।

धमकी, माफीनामा और पलटवार – साजिश का खेल

प्राप्त जानकारी के अनुसार, 26 जून को पत्रकार चंद्रशेखर जायसवाल ने लैलूंगा थाना में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें उन्होंने स्पष्ट आरोप लगाया था कि कुछ असामाजिक तत्व उन्हें लगातार जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। आमतौर पर ऐसी शिकायत के बाद पुलिस द्वारा तत्काल सुरक्षा व्यवस्था और कानूनी कार्रवाई की उम्मीद की जाती है, लेकिन यहां स्थिति उल्टी हो गई। धमकी देने वालों में से चार व्यक्ति खुद पत्रकार को फोन कर माफी मांगने और राजीनामा करने का दबाव बनाने लगे। जब जायसवाल अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटे, तो इन्हीं असामाजिक तत्वों ने पलटवार करते हुए उनके खिलाफ ही झूठे आवेदन दे डाले।

इन फर्जी आवेदनों में जायसवाल के खिलाफ निराधार आरोप लगाए गए, जैसे कि वह खुद ही इन लोगों को धमका रहे हैं। पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि धमकी के आरोपी माफी मांग चुके हैं, यह स्वयं घटना की सच्चाई को प्रमाणित करता है। बावजूद इसके, अब उन्हीं अपराधियों की तहरीर पर जांच की जा रही है। पत्रकार समाज और आमजन इसे ‘पीड़ित को आरोपी बनाने की सुनियोजित साजिश’ बता रहे हैं।

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अपराधियों और भ्रष्ट अधिकारियों की साठगांठ

सूत्रों के अनुसार, इस षड्यंत्र में कुछ कुख्यात अपराधी और भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी शामिल हैं। सबसे प्रमुख नाम राजेश कुमार शर्मा का सामने आ रहा है, जिसे क्षेत्र में “रेगड़ी वाला” कहा जाता है। यह व्यक्ति लूट, मारपीट, धमकी और रंगदारी जैसे मामलों में जेल जा चुका है और फिलहाल जमानत पर बाहर है। उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि और स्थानीय दहशत को देखते हुए, उसके किसी भी आरोप की विश्वसनीयता स्वतः ही संदिग्ध हो जाती है।

दूसरा नाम पटवारी संजय भगत का है, जिन पर पहले से ही रिश्वतखोरी, गैरहाजिरी, और शराब सेवन के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार, भगत महीनों तक कार्यालय से गायब रहते हैं और जब आते हैं तो “सेवा शुल्क” यानी रिश्वत के बिना कोई भी दस्तावेज़ी काम नहीं करते। जायसवाल की रिपोर्टिंग से इनके भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो रहा था, जिससे बचने के लिए उन्होंने अपराधियों के साथ मिलकर यह खेल रचा है।

जनता और पत्रकार समाज का आक्रोश

इस प्रकरण के बाद लैलूंगा क्षेत्र में पत्रकार समुदाय और आम जनता का आक्रोश चरम पर है। लोग स्पष्ट कह रहे हैं कि “चंद्रशेखर जायसवाल जैसे निर्भीक और ईमानदार पत्रकार ही हैं, जो वर्षों से इस क्षेत्र के भ्रष्टाचार, सरकारी लापरवाही और असामाजिक तत्वों की पोल खोलते आए हैं। यदि ऐसे व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाकर चुप करा दिया जाए, तो सच बोलने का साहस कौन करेगा?”

स्थानीय पत्रकार संघ, प्रेस क्लब और सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि झूठे आवेदन देने वाले अपराधियों और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो। इसके साथ ही पत्रकार सुरक्षा कानून की प्रभावी कार्यवाही भी सुनिश्चित की जाए।

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प्रशासन की चुप्पी – सवालों के घेरे में

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पत्रकार की शिकायत को गंभीरता से लेने के बजाय, पुलिस अब उन्हीं अपराधियों के फर्जी आवेदनों की जांच कर रही है। इस रवैये से यह सवाल उठने लगे हैं –

क्या पुलिस प्रशासन अपराधियों के दबाव में है?*क्या भ्रष्ट पटवारी को बचाने के लिए यह पूरा तंत्र काम कर रहा है?*क्या एक ईमानदार पत्रकार को चुप कराने की यह साज़िश प्रशासन की सहमति के बिना संभव है?

यदि प्रशासन ने शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो यह मामला सिर्फ पत्रकार बनाम अपराधी नहीं रहेगा, बल्कि जनता बनाम व्यवस्था का रूप ले लेगा।

सड़क पर उतरने की चेतावनी

जनता और पत्रकारों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि जल्द न्यायोचित कार्रवाई नहीं की गई, तो वे सड़क पर उतरकर आंदोलन करेंगे। उनका कहना है कि यह लड़ाई सिर्फ चंद्रशेखर जायसवाल की गरिमा की नहीं, बल्कि उन सभी पत्रकारों के लिए है जो अपनी जान जोखिम में डालकर सच सामने लाने का काम कर रहे हैं।

लोकतंत्र पर हमला

यह मामला केवल एक व्यक्ति विशेष का नहीं है। यह पत्रकारिता की स्वतंत्रता, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की सुरक्षा और समाज के न्यायप्रिय तानेबाने की रक्षा से जुड़ा हुआ है। यदि ऐसी साजिशें सफल होने लगेंगी, तो ईमानदार पत्रकारों का मनोबल टूट जाएगा और समाज को सच बताने वाली आवाजें धीरे-धीरे खामोश कर दी जाएंगी।

आज सवाल सिर्फ इतना है –

क्या प्रशासन और पुलिस सच्चाई के साथ खड़ी होंगी, या साजिशकर्ताओं के साथ?

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