CG: बेमौसम बारिश, ईंट भट्ठों की लूट और प्रशासन की बेबसी — गरियाबंद के छुरा में जनता त्रस्त, अधिकारी ‘सुशासन तिहार’ में व्यस्त!

 

छुरा/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। बेमौसम बारिश, ईंट भट्ठों की लूट और प्रशासन की बेबसी — गरियाबंद जिले के छुरा तहसील में इन दिनों हालात अजीबो-गरीब हो चुके हैं। एक ओर बेमौसम बारिश और तेज आंधी से ग्रामीणों का जीवन अस्त-व्यस्त है, वहीं दूसरी ओर अवैध ईंट भट्ठों की बेलगाम बढ़ती संख्या से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है और आम जनता की जेब पर भारी असर पड़ रहा है।

ईंट, गिट्टी, बालू और सीमेंट जैसी निर्माण सामग्री के दाम लगातार आसमान छू रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि प्रशासन से जुड़े जिम्मेदार अधिकारी ‘कार्यवाही नहीं कर पाने’ की वजह “सुशासन तिहार” को बता रहे हैं।

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तहसीलदार तारेंद्र कुमार ठाकुर ने स्वीकार की लाचारी, खनिज विभाग ‘इंस्पेक्टर विहीन’

गंगा प्रकाश के संवाददाता ने जब छुरा तहसीलदार तारेंद्र कुमार ठाकुर से मोबाइल पर संपर्क कर इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया चाही, तो उन्होंने स्वीकार किया कि:

 “वर्तमान में हम सुशासन तिहार कार्यक्रम में व्यस्त रहे, इसीलिए हम समय पर कार्यवाही नहीं कर सके।”

उन्होंने यह भी कहा कि अवैध ईंट भट्ठों के संचालन की शिकायत मिलने के बाद उन्होंने खनिज विभाग से संपर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन:

“वहाँ फिलहाल कोई इंस्पेक्टर पदस्थ नहीं है, जिससे कोई औपचारिक कार्रवाई नहीं हो सकी। सुशासन तिहार खत्म होते ही कार्यवाही की जाएगी।”

इस बयान ने यह साफ कर दिया कि शासन द्वारा प्रचारित ‘सुशासन’ की हकीकत ज़मीनी स्तर पर कुछ और ही है।

जनता पर दोहरी मार — मौसम की मार और निर्माण महंगाई

इस समय छुरा क्षेत्र में चल रही दर्जनों अवैध ईंट भट्टियाँ न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही हैं, बल्कि स्थानीय नागरिकों की जेब पर भी डाका डाल रही हैं। घर बनाने का सपना देख रहे मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवार अब हताश हैं क्योंकि लाल ईंट की कीमतें 12-13 हजार रुपए प्रति ट्रैक्टर ट्राली तक जा पहुँची हैं। वहीं बालू की एक ट्रॉली की कीमत ₹3500 से बढ़कर ₹5000 तक पहुँच चुकी है।

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अधिकारी व्यस्त, व्यवस्था लापता

छुरा ब्लॉक के ग्रामों — खरखरा , पंडरीपानी, मडेली, नवगोई, करकरा और खड़मा — जैसे इलाकों में अवैध ईंट भट्ठों के कारण खेतों की उपजाऊ मिट्टी तक खोद ली गई है। न तो इनके पास पर्यावरणीय अनुमति है, न प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र, फिर भी दिन-रात भट्टियाँ धधक रही हैं।

स्थानीय किसान बताते हैं:

“हमारे खेत के बगल में भट्ठा चल रहा है। न धुआँ रुकता है, न ट्रैक्टरों की आवाज़। बच्चे बीमार हो रहे हैं। प्रशासन को कई बार बोले पर कोई असर नहीं।”

‘सुशासन तिहार’ और जनता की विडंबना

जहां एक ओर अधिकारी ‘सुशासन तिहार’ के नाम पर सरकारी बैनर और भाषणों में व्यस्त हैं, वहीं ज़मीनी हकीकत यह है कि किसान, मज़दूर और आम नागरिक अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। शासन का यह उत्सव उस वक्त खोखला प्रतीत होता है जब पर्यावरणीय कानूनों का खुलेआम उल्लंघन हो और कार्यवाही का आश्वासन “त्योहार समाप्त होने” पर टल जाए।

माँगें और सवाल

अब जनता यह सवाल पूछ रही है:

  • क्या पर्यावरणीय विनाश और आम जनता की समस्याएँ ‘सुशासन तिहार’ के बाद याद आती हैं?
  • जब विभागों में जरूरी पदों पर अधिकारी ही नहीं हैं, तो ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
  • क्या सरकार केवल रस्मअदायगी में व्यस्त रहकर जनता की बुनियादी ज़रूरतों से मुँह मोड़ लेगी?

निष्कर्ष

अवैध ईंट भट्ठों, प्रशासन की निष्क्रियता और बेकाबू महंगाई के इस तिहरे संकट में छत्तीसगढ़ की एक बड़ी आबादी बुरी तरह पिस रही है। शासन की “सुशासन” नीति तभी सार्थक मानी जाएगी जब वह केवल आयोजनों में नहीं, बल्कि जमीनी हकीकतों में दिखे।

अब वक्त आ गया है कि शासन और प्रशासन एक साथ इन ज्वलंत मुद्दों पर सक्रिय हो, वरना आने वाले समय में यह असंतोष एक जन आंदोलन का रूप भी ले सकता है।

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