CG: सरकारी जमीन पर ‘शिक्षा का अड्डा’ या अवैध कब्जे का मंजर? – अब प्रशासनिक बुलडोज़र देगा अंतिम उत्तर

 

रायगढ़ (गंगा प्रकाश)। सरकारी जमीन पर ‘शिक्षा का अड्डा’ या अवैध कब्जे का मंजर? – छत्तीसगढ़ में एक ओर हजारों छात्र कॉलेजों की मान्यता, फीस और प्रवेश के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग बिना नामांकन और बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के ‘डिग्री का धंधा’ चलाने में लगे हैं।

ताजा मामला रायगढ़ जिले के लैलूंगा तहसील अंतर्गत ग्राम कुंजारा का है, जहां ईआईटी कॉलेज के संचालक ने सरकारी जंगल की जमीन पर न केवल कब्जा जमाया बल्कि वहां शिक्षा के नाम पर एक भव्य भवन भी खड़ा कर दिया।

अब प्रशासन ने इसे ‘अवैध कब्जे की पाठशाला’ करार देते हुए अंतिम अल्टीमेटम जारी कर दिया है: 6 जुलाई तक स्वयं निर्माण हटाओ, अन्यथा बुलडोज़र तैयार है।

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बड़े झाड़ का जंगल… और बड़े जुगाड़ का कॉलेज

प्रशासनिक दस्तावेज बताते हैं कि ग्राम कुंजारा के खसरा नंबर 243/1, रकबा 4.327 हेक्टेयर शासकीय भूमि, जो राजस्व रिकॉर्ड में “बड़े झाड़ का जंगल” मद में दर्ज है, वहां कॉलेज संचालक आशीष कुमार सिदार ने लगभग 1290 वर्गमीटर क्षेत्र में पक्का भवन तान दिया।

न कोई जमीन आवंटन, न किसी विभाग से अनुमति – सीधे सरकारी जमीन पर निर्माण।

स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्षों से यह निर्माण कार्य चल रहा था, लेकिन प्रशासन की नींद अब खुली है, जब मामला तूल पकड़ने लगा।

प्रशासन ने दी चेतावनी – कानून से ऊपर कोई नहीं

तहसीलदार लैलूंगा के न्यायालय द्वारा 25 जून 2025 को पारित आदेश में कहा गया है कि संचालक को बार-बार नोटिस भेजे गए, न्यायालय में पक्ष रखने का अवसर दिया गया, किंतु उन्होंने न केवल नोटिस लेने से इनकार किया बल्कि पेश होने से भी कतराते रहे।

आदेश में स्पष्ट लिखा गया है कि 6 जुलाई 2025 अंतिम तारीख है।

इसके बाद बलपूर्वक ध्वस्तीकरण की कार्रवाई होगी और पूरी लागत की वसूली भी संचालक से ही की जाएगी।

प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, बुलडोज़र और पुलिस बल की तैयारी पूरी कर ली गई है ताकि आदेश के दिन किसी भी विरोध को तुरंत नियंत्रित किया जा सके।

क्या यह केवल अतिक्रमण है या किसी ‘ऊपरी संरक्षण’ का परिणाम?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि “जंगल की जमीन पर कॉलेज जैसा बड़ा निर्माण कैसे हो गया?”

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि यह बिना किसी राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के संभव ही नहीं।

एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा –

“सालों से भवन बन रहा था, गांव के लोग जानते थे। लेकिन जब तक ऊपर से संरक्षण रहता है, नीचे कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता।”

लोगों का यह भी मानना है कि यदि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो, तो कई रसूखदार चेहरे बेनकाब होंगे, जिन्होंने कानून की आंख में धूल झोंककर सरकारी संपत्ति को निजी लाभ का माध्यम बना दिया।

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संचालक की चुप्पी – अपराधबोध या राजनीतिक गणित?

पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा हैरानी संचालक आशीष सिदार के रवैये पर हो रही है।

नोटिस न लेना, न्यायालय में उपस्थित न होना, कोई सार्वजनिक बयान न देना –

यह चुप्पी क्या किसी गहरे राजनीतिक समीकरण का हिस्सा है?

या फिर यह अपराध की अघोषित स्वीकृति है?

फिलहाल संचालक का पक्ष सामने नहीं आया है। उनके मोबाइल नंबर पर कॉल करने पर भी कोई जवाब नहीं मिला।

जनता की सीधी राय – ‘ऐसे कॉलेजों को डिग्री नहीं, JCB से प्रमाण-पत्र देना चाहिए’

जब प्रशासनिक टीम कॉलेज स्थल का निरीक्षण करने पहुंची तो बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां एकत्रित हो गए।

लोगों का कहना था –

“यदि पहले ही ऐसे अतिक्रमणों पर कार्रवाई होती, तो जंगल बचता और अवैध निर्माण की हिम्मत ही नहीं होती। अब ऐसे कॉलेजों को डिग्री नहीं, JCB से प्रमाण-पत्र देना चाहिए।”

प्रशासनिक कार्रवाई का व्यापक असर संभव

तहसीलदार कार्यालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि

 “यदि यह कार्रवाई पूरी तरह होती है, तो लैलूंगा, धरमजयगढ़ और रायगढ़ जिले के अन्य दर्जनों अतिक्रमणों पर भी प्रभाव पड़ेगा, जहां शासकीय भूमि पर निजी संस्थान कब्जा जमाए बैठे हैं।”

अब प्रश्न केवल यह नहीं है कि निर्माण हटेगा या नहीं…

प्रश्न यह भी है कि क्या शासन-प्रशासन इस मामले को ‘उदाहरणात्मक दंड’ के तौर पर लेगा, ताकि भविष्य में कोई भी ‘शिक्षा’ के नाम पर ‘अवैध कब्जा’ का धंधा शुरू करने से पहले कानून का पाठ पढ़े।

या फिर यह कार्रवाई भी रसूखदारों के राजनीतिक दबाव में अधूरी रह जाएगी?

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