Devi Annapurna , नई दिल्ली : हिंदू धर्म ग्रंथों में कई ऐसी कथाएं मिलती हैं जो हमें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों का ज्ञान कराती हैं। भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी एक ऐसी ही रोचक और महत्वपूर्ण कथा है, जिसमें स्वयं महादेव को भिक्षुक का रूप धारण करना पड़ा था और उनकी अर्धांगिनी, देवी पार्वती को समस्त संसार की अन्नदात्री ‘देवी अन्नपूर्णा’ का रूप लेना पड़ा था। यह कथा अन्न और भौतिक जीवन के महत्व को दर्शाती है।

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1. क्यों शुरू हुआ विवाद?

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के बीच संसार की नश्वरता (Imperfection) को लेकर चर्चा हो रही थी। बातचीत के दौरान, भगवान शिव ने वैराग्य और अध्यात्म का पक्ष लेते हुए कहा कि यह संपूर्ण संसार, जिसमें भोजन भी शामिल है, एक ‘माया’ है। उन्होंने कहा कि शरीर और अन्न का कोई विशेष या स्थायी महत्व नहीं है, सब क्षणभंगुर है।

2. माता पार्वती का क्रोध और अन्न का तिरोधान

भगवान शिव के मुख से अन्न को ‘माया’ और महत्वहीन बताने की बात सुनकर माता पार्वती को गहरा दुःख हुआ और वे अत्यंत क्रोधित हो गईं। चूँकि माता पार्वती ही समस्त संसार का भरण-पोषण करती हैं और अन्न की अधिष्ठात्री देवी हैं, उन्हें यह अन्न का अपमान लगा।

अपने पति को यह समझाने के लिए कि अन्न जीवन का आधार है और इसके बिना वैराग्य भी संभव नहीं, माता पार्वती ने एक कठोर निर्णय लिया। उन्होंने उसी क्षण पूरे संसार से अन्न को अदृश्य कर दिया।

3. पृथ्वी पर हाहाकार और शिव का भिक्षुक रूप

जैसे ही माता पार्वती ने संसार से अन्न को विलुप्त किया, पृथ्वी पर भयंकर अकाल (Famine) पड़ गया।

  • इंसान हों या जानवर, सभी भूख से व्याकुल होकर त्राहि-त्राहि करने लगे।

  • साधु-संतों को भी भिक्षा नहीं मिल रही थी।

  • समस्त जीव-जंतु अन्न के एक-एक दाने के लिए तरसने लगे।

यह स्थिति देखकर सभी देवताओं ने मिलकर माता पार्वती से क्षमा याचना की और पृथ्वी वासियों के कष्ट को दूर करने की प्रार्थना की। मानवता की इस पीड़ा को देखकर माता पार्वती का हृदय पिघल गया और उन्होंने ‘देवी अन्नपूर्णा’ के रूप में अवतार लिया।

माता अन्नपूर्णा, जिनका अर्थ है ‘अन्न से परिपूर्ण’, काशी (वाराणसी) में प्रकट हुईं और अपने हाथों में अक्षय पात्र (कभी न खाली होने वाला पात्र) लेकर सभी जीवों को भोजन वितरित करने लगीं।

4. महादेव ने मांगी भिक्षा

जब स्वयं भगवान शिव को भी भूख का कष्ट महसूस हुआ, तब उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ कि अन्न भी उतना ही आवश्यक है, जितना अध्यात्म।

भगवान शिव ने अपने अहंकार का त्याग किया और भिक्षुक (भिखारी) का रूप धारण किया। वे काशी में प्रकट हुईं देवी अन्नपूर्णा के पास पहुंचे और उनसे भिक्षा में अन्न मांगा।

माता अन्नपूर्णा ने हँसते हुए अपने अक्षय पात्र से भगवान शिव के भिक्षापात्र को स्वादिष्ट और पौष्टिक अन्न से भर दिया।

5. कथा का सार और संदेश

अन्न ग्रहण करने के बाद भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा के इस स्वरूप और अन्न के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने न केवल स्वयं अन्न ग्रहण किया, बल्कि वह अन्न पृथ्वी वासियों में भी बाँट दिया, जिससे पृथ्वी पर आया अकाल समाप्त हुआ और अन्न-जल का संकट दूर हो गया।

इस कथा का मूल संदेश यह है कि:

  • अन्न का सम्मान: अन्न ही जीवन का आधार है। हमें कभी भी अन्न का अनादर नहीं करना चाहिए।

  • संतुलन: भौतिक जीवन (अन्न) और आध्यात्मिक जीवन (वैराग्य) दोनों का ही संसार में अपना महत्व है।

  • विनम्रता: स्वयं महादेव को भी भूख मिटाने के लिए भिक्षुक बनना पड़ा, जो हमें विनम्रता और आवश्यकताओं को स्वीकार करने का पाठ पढ़ाता है।

आज भी मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन माँ अन्नपूर्णा की जयंती मनाई जाती है और मान्यता है कि उनकी पूजा से घरों में अन्न और धन की कमी कभी नहीं होती।

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