छुरा (गंगा प्रकाश)। गरियाबंद जिला इस समय एक बड़े सवाल से जूझ रहा है। जिले के छुरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ डॉ. एस.पी. प्रजापति पिछले 20 साल से भी अधिक समय से एक ही जगह जमे हुए हैं। इस दौरान राज्य में तीन मुख्यमंत्री बदल गए, चार सांसद बदल गए, चार विधायक बदल गए, जिले में कई कलेक्टर और CMHO भी बदल गए — लेकिन आश्चर्यजनक रूप से डॉ. प्रजापति की कुर्सी नहीं बदली। यह स्थिति अब जनता और राजनीति दोनों में चर्चा का केंद्र बन चुकी है।

तबादला नीति और कानून का उल्लंघन

छत्तीसगढ़ शासन ने 2011 में “छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (स्थानांतरण) नियम, 2011” लागू किया था। इन नियमों के अनुसार:

  1. किसी भी सरकारी कर्मचारी/अधिकारी को 3 वर्ष से अधिक एक ही स्थान पर नहीं रखा जा सकता।
  2. संवेदनशील पदों पर यह अवधि अधिकतम 2 वर्ष तय है।
  3. स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत डॉक्टरों और चिकित्सकों के लिए भी सामान्यतः 5 वर्ष की सीमा निर्धारित है।
  4. नियम यह भी कहते हैं कि लंबे समय तक एक ही जगह पर पदस्थ रहना प्रशासनिक निष्पक्षता और पारदर्शिता के विपरीत है।

स्पष्ट है कि छुरा स्वास्थ्य केंद्र में 20 साल से टिके रहने वाले डॉ. प्रजापति ने इन नियमों को पूरी तरह धता बता दिया है, और विभागीय तंत्र ने आंख मूंद रखी है।

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अजगर की तरह कुंडली मारकर बैठे

स्थानीय लोगों का आरोप है कि डॉ. प्रजापति छुरा स्वास्थ्य केंद्र को अपनी निजी जागीर समझ चुके हैं।

लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने न सिर्फ़ राजनीतिक-सामाजिक पकड़ बना ली है बल्कि प्रैक्टिस और मेडिकल कारोबार से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।

ग्रामीणों के शब्दों में – ये डॉक्टर छुरा में ऐसे जमे हैं जैसे अजगर अपनी मांद में कुंडली मारकर बैठा हो। पूरे जिले में डॉक्टरों की भारी कमी है, लेकिन यहां एक ही डॉक्टर को स्थायी कर दिया गया है।

CMHO का बयान – जिम्मेदारी रायपुर की

इस मामले पर जब जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) गरियाबंद, यू.एस. नवरत्न से सवाल किया गया तो उनका जवाब था –  तबादला नीति हमारे स्तर पर नहीं होती। डॉक्टरों का स्थानांतरण विभागीय संचनालय से किया जाता है।

उनका यह बयान प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। आखिर जिला स्तर पर अधिकारी तबादला नीति के उल्लंघन पर चुप क्यों हैं? क्या यह चुप्पी भी किसी दबाव या संरक्षण का नतीजा है?

राजनीतिक संरक्षण का खेल?

  • सबसे बड़ा सवाल यही है कि डॉ. प्रजापति हर बार ट्रांसफर होकर भी फिर छुरा कैसे लौट आते हैं?
  • क्या स्वास्थ्य विभाग के संचालकालय की मिलीभगत है?
  • क्या राजनीतिक संरक्षण ने इस डॉक्टर को “अछूत” बना दिया है?
  • या फिर यह पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार और गुपचुप सौदों से संचालित है?

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जनता का आक्रोश और विपक्ष का हमला

ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों में गुस्सा है। विपक्षी दलों का कहना है – जब तीन मुख्यमंत्री, चार सांसद और विधायक बदल गए, कई कलेक्टर और CMHO बदल गए, तब भी अगर एक डॉक्टर अपनी कुर्सी से हिलता नहीं है तो यह सीधा-सीधा नियम कानून का मखौल है।

बड़ा सवाल जस का तस

  • जब 2011 की स्थानांतरण नीति स्पष्ट है, तो फिर इसका पालन क्यों नहीं हो रहा?
  • क्या स्वास्थ्य विभाग और संचालकालय खुद इस खेल में साझेदार हैं?
  • और क्या जनता की जिंदगी से खिलवाड़ करने का अधिकार किसी एक डॉक्टर को संरक्षण देकर दिया जा सकता है?

गरियाबंद जिले में आज यही गूंज रहा है: – आखिर किसके संरक्षण में डॉ. एस.पी. प्रजापति 20 साल से छुरा स्वास्थ्य केंद्र में अजगर की तरह कुंडली मारकर बैठे हैं? और तबादला नीति सिर्फ़ कागज़ों तक क्यों सीमित है?”

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