छुरा(गंगा प्रकाश)। छुरा जनपद पंचायत इन दिनों विकास नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, वसूली और प्रशासनिक संरक्षण के आरोपों को लेकर सुर्खियों में है। प्रभारी सीईओ सतीष चन्द्रवंशी एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। ताजा मामला एक वाहन मालिक से जुड़ा है, जिसने छह महीने से भुगतान नहीं होने, जबरन पैसे वापस लेने, कोरा बिल पर हस्ताक्षर कराने और शिकायत करने पर मोबाइल नंबर ब्लॉक करने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। यह मामला अब पूरे जिले में चर्चा का विषय बन चुका है।

वाहन मालिक शरीफ खान ने बताया कि उन्होंने अपना चार पहिया वाहन जनपद पंचायत छुरा में कार्यालयीय कार्यों के लिए लगाया था। तय नियमों के अनुसार वाहन का मासिक किराया मिलना था, लेकिन छह माह बीत जाने के बावजूद उन्हें 30 हजार रुपए से अधिक की राशि नहीं दी गई। भुगतान के लिए वे लगातार कार्यालय के चक्कर काटते रहे, सीईओ से मिलने की कोशिश करते रहे, लेकिन हर बार उन्हें टाल दिया गया।

शरीफ खान के अनुसार मजबूरी में उन्होंने प्रभारी सीईओ सतीष चन्द्रवंशी को व्हाट्सएप और मोबाइल मैसेज भेजकर भुगतान की गुहार लगाई। उन्होंने साफ लिखा कि यदि जल्द भुगतान नहीं हुआ तो वे मुख्यमंत्री, विधायक, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को शिकायत करेंगे। इसके बाद भी भुगतान तो नहीं हुआ, उल्टा उनका मोबाइल नंबर ही ब्लॉक कर दिया गया।

8 हजार रुपए वापस लेने का सनसनीखेज आरोप

इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाला आरोप यह है कि पहले उनके खाते में राशि डलवाई गई और बाद में हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के पास शाम करीब 7 बजे बुलाकर उसमें से 8 हजार रुपए नकद वापस ले लिए गए। वाहन मालिक का कहना है कि यह खुली वसूली है, जिसे कथित तौर पर नौकरी और ठेकों के खेल की तरह अंजाम दिया जा रहा है।

कोरा बिल का खेल, सिस्टम में जिच

शरीफ खान ने यह भी आरोप लगाया कि जनपद पंचायत में वाहन लगाने के बदले कोरा बिल पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं। जो व्यक्ति ऐसा करता है, उसी का वाहन चलता है। यदि कोई व्यक्ति नियम से सही बिल देना चाहता है तो उसका भुगतान रोक दिया जाता है। इससे स्पष्ट है कि बिल-वाउचर के जरिए बड़े स्तर पर गड़बड़ी की आशंका है।

आरटीआई से भागने का आरोप

सूत्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सूचना का अधिकार (RTI) के तहत मांगी जा रही जानकारियां जानबूझकर रोकी जा रही हैं। नियमों के तहत निर्धारित समय में जानकारी नहीं दी जा रही, जिससे यह आशंका और मजबूत हो गई है कि पंचायत के भीतर फर्जीवाड़ा और वित्तीय अनियमितताओं का बड़ा खेल चल रहा है।

राजनीतिक संरक्षण की छाया?

इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब तक कोई सख्त कार्रवाई क्यों नहीं हुई? सूत्र बताते हैं कि जिला पंचायत के सीईओ ने इस पूरे मामले में आयुक्त, आदिवासी विकास विभाग, रायपुर को दंडात्मक कार्रवाई के लिए पत्राचार किया था। इसके बावजूद अब तक कोई ठोस निर्णय सामने नहीं आया। चर्चा है कि प्रभारी सीईओ को पद पर बैठाने में एक प्रभावशाली मंत्री के निजी सचिव की भूमिका रही है, जिसके चलते जिला कलेक्टर से लेकर मंत्रालय स्तर तक अधिकारी खुलकर कार्रवाई करने से कतरा रहे हैं।

मोबाइल बंद, लंबी छुट्टी!

जब मीडिया ने इस पूरे मामले में प्रभारी सीईओ सतीष चन्द्रवंशी से उनका पक्ष जानने की कोशिश की, तो उनका मोबाइल लगातार बंद मिला। जनपद पंचायत कार्यालय से बताया गया कि वे “लंबी छुट्टी” पर हैं। सवाल यह है कि जब इतने गंभीर आरोप सामने हैं, तो जिम्मेदार अधिकारी सार्वजनिक रूप से सामने आकर अपना पक्ष क्यों नहीं रख रहे?

जनाक्रोश, आंदोलन की चेतावनी

स्थानीय नागरिकों, सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों में इस मामले को लेकर भारी आक्रोश देखा जा रहा है। लोगों का कहना है कि यदि शीघ्र निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो वे जनपद पंचायत का घेराव और उग्र आंदोलन करने को मजबूर होंगे। आम जनता पूछ रही है—क्या छुरा जनपद पंचायत अब भ्रष्टाचार का सुरक्षित अड्डा बन चुका है?

लोकतंत्र और प्रशासन की साख दांव पर

यह पूरा मामला अब केवल एक वाहन भुगतान का विवाद नहीं रह गया है, बल्कि यह प्रशासनिक पारदर्शिता, सत्ता संरक्षण और भ्रष्टाचार के गठजोड़ का प्रतीक बन चुका है। सवाल यह नहीं है कि आरोप लगे हैं—सवाल यह है कि इन आरोपों पर कार्रवाई कब होगी?

अब निगाहें मुख्यमंत्री कार्यालय, जिला प्रशासन और पंचायत विभाग पर टिकी हैं। यदि इस मामले में शीघ्र निष्पक्ष और सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो यह साफ संदेश जाएगा कि कानून से बड़ा सत्ता का संरक्षण है।

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