छुरा (गंगा प्रकाश)। केंद्र और राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय आजीविका मिशन (एनआरएलएम) जिसे छत्तीसगढ़ में बिहान योजना के नाम से जाना जाता है, का मकसद था ग्रामीण कामकाजी महिलाओं को संगठित कर उन्हें स्वरोज़गार से जोड़ना, उनकी आर्थिक स्थिति सुधारना और गरीबी दूर करना। इसके लिए छुरा विकासखंड में महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन हुआ, ग्राम संगठनों और चार कलस्टर भवनों का निर्माण किया गया, महिलाओं को बैंक से लोन दिलवाकर गृह उद्योगों से जोड़ा गया। करोड़ों रुपये खर्च कर इन महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश हुई।

लेकिन हकीकत कागज़ी दावों से बिलकुल उलट है। आज यह योजना छुरा में फंड की कमी, अफसरशाही और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। महिलाओं तक पहुँचने और उनकी समस्याओं को समझने के बजाय अधिकारी ऑफिस में बैठकर ही रिपोर्ट तैयार कर जिला स्तर पर भेज रहे हैं।

आरटीआई से खुला चौंकाने वाला सच

आरटीआई के तहत छुरा जनपद पंचायत के प्रभारी मुख्य कार्यपालन अधिकारी सतीष चन्द्रवंशी ने लिखित जवाब में साफ कहा कि राष्ट्रीय आजीविका मिशन के कर्मचारियों और अधिकारियों के फील्ड भ्रमण के लिए न तो शासन ने वाहन उपलब्ध कराया है और न ही कोई बजट का प्रावधान है। चन्द्रवंशी ने यह भी कहा कि कर्मचारी कोई भ्रमण नहीं करते और कार्यालय में बैठकर ही मॉनिटरिंग कर जिला को जानकारी भेज देते हैं।

इस खुलासे ने योजना की जमीनी सच्चाई सामने रख दी। यानी करोड़ों खर्च होने के बावजूद महिलाएं योजनाओं से वास्तविक रूप से लाभान्वित नहीं हो पा रहीं क्योंकि अधिकारी गांव तक पहुँचते ही नहीं।

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बीपीएम का उल्टा बयान – “भ्रमण नियमित, वाहन किराए पर”

सीईओ के इस बयान के ठीक उलट ब्लॉक प्रोजेक्ट मैनेजर (बीपीएम) सुभाष निर्मलकर ने दावा किया कि अधिकारी-कर्मचारी नियमित फील्ड भ्रमण करते हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए किराये की चारपहिया गाड़ियाँ ली जाती हैं और भुगतान भी किया गया है, हालांकि कुछ भुगतान अब शेष है।

यानी एक ओर सीईओ लिखित रूप से कह रहे हैं कि कोई भ्रमण नहीं होता और कोई वाहन सुविधा नहीं है, वहीं बीपीएम कह रहे हैं कि भ्रमण होता है और गाड़ियों के बिल का भुगतान भी हो चुका है। दोनों अफसरों के विरोधाभासी बयान ने पूरे मिशन की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

जिला प्रोजेक्ट मैनेजर ने मानी गड़बड़ी

इस विरोधाभास पर जब मामला जिला स्तर पर पहुँचा तो जिला प्रोजेक्ट मैनेजर (डीपीएम) पंताजल मिश्रा ने स्वीकार किया कि ब्लॉक सीईओ, बीपीएम और कर्मचारी फील्ड भ्रमण करते हैं और वाहनों का बिल जिला पंचायत में आता है। बिल जिला मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पास होने के बाद भुगतान किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर आरटीआई में वाहन व्यय शून्य दर्शाया गया है तो यह गंभीर विरोधाभास है और वे इस मामले में खुद सीईओ और बीपीएम से बात करेंगे।

भ्रष्टाचार का शक और महिलाओं की मायूसी

अब बड़ा सवाल यह है कि सच्चाई क्या है। यदि सीईओ का बयान सही है तो भ्रमण और वाहन खर्च के नाम पर पेश किए गए बिल फर्जी हैं और यदि बीपीएम सही हैं तो आरटीआई में दी गई जानकारी झूठी और भ्रामक है। दोनों ही हालात में मामला भ्रष्टाचार की ओर साफ इशारा करता है।

इस बीच जिन महिलाओं को इस योजना से वास्तविक लाभ मिलना था, वे उपेक्षा और लापरवाही का शिकार हो रही हैं। एक महिला समूह की सदस्या ने कहा – “हमसे कोई मिलने नहीं आता, न कोई प्रशिक्षण मिलता है। कागज पर तो सब कुछ हो रहा है लेकिन हमें कोई फायदा नहीं दिखता।”

स्थानीय सामाजिक संगठनों का भी कहना है कि भ्रमण और वाहन खर्च के नाम पर फर्जीवाड़ा किया गया है और यदि निष्पक्ष जांच हो तो करोड़ों रुपये की हेराफेरी सामने आ सकती है।

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लकवाग्रस्त योजना और कार्रवाई की दरकार

राष्ट्रीय आजीविका मिशन का सपना था कि महिलाएं आत्मनिर्भर बनें, स्वरोज़गार करें और गरीबी की जंजीर तोड़ें। लेकिन छुरा में यह योजना अफसरशाही, फंड की कमी और कथित भ्रष्टाचार की वजह से लकवाग्रस्त हो चुकी है। आज महिलाएं वहीँ खड़ी हैं जहाँ योजना शुरू होने से पहले थीं।

अब सवाल यह है कि क्या शासन इस मामले में पारदर्शी जांच करेगा, क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी अन्य योजनाओं की तरह फाइलों और बैठकों में दबकर रह जाएगा।

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