संस्कृत के गुरुजी अतिशेष, पर सांख्यिकी अफसर को मिला सामाजिक विज्ञान का वेतन
गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। जिला शिक्षा विभाग में पद विरुद्ध वेतन आहरण का एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने विभागीय नियमों और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ही विषय के दो शिक्षकों के साथ अलग-अलग व्यवहार ने शिक्षकों में आक्रोश और अविश्वास पैदा कर दिया है। आरोप है कि विभाग नियमों को आम शिक्षकों के लिए कठोर और विशेष अधिकारियों के लिए अत्यंत लचीला मानकर उनका मनचाहा उपयोग कर रहा है।
एक को अतिशेष घोषित कर हटाया, दूसरे के लिए बिछा दिया लाल कालीन
शासकीय हाईस्कूल जोबा में पदस्थ संस्कृत व्याख्याता लाला राम देवांगन को शिक्षा विभाग ने युक्तियुक्तकरण के तहत यह कहकर हटाया कि स्कूल में संस्कृत विषय का सेटअप उपलब्ध नहीं है। उन्हें तत्कालीन आदेश पर गोहरापदर भेज दिया गया।
लेकिन इसी दौरान एक चौंकाने वाला मोड़ आया—विभाग में पदस्थ सांख्यिकी अधिकारी श्याम चंद्राकर, जो मूल रूप से संस्कृत व्याख्याता हैं, का वेतन रिक्त पद के विरुद्ध इसी जोबा स्कूल से आहरित होने लगा।
अब बड़ा सवाल— जब लाला राम के लिए सेटअप नहीं था, तो उसी विषय के अधिकारी के लिए वेतन का पद अचानक कैसे उपलब्ध हो गया?
दस्तावेज़ों ने खोली विभागीय जुगाड़बाज़ी की परतें
जो दस्तावेज़ सामने आए हैं, वे बताते हैं कि विभाग ने आदेश बदलकर और स्कूलों के बीच फाइलें घुमाकर वेतन के लिए रास्ता तैयार किया।
पहला आदेश (07.05.2024): सांख्यिकी अधिकारी श्याम चंद्राकर का वेतन आहरण उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नागाबुड़ा से करने का आदेश जारी हुआ।
*नागाबुड़ा का इनकार (07.10.2025):* नागाबुड़ा स्कूल के प्राचार्य ने डीईओ कार्यालय को पत्र लिखकर स्पष्ट कहा कि— पदोन्नति के बाद पद पूर्ण है, अतः यहां से वेतन आहरण संभव नहीं।
यहाँ से शुरू हुई असली ‘व्यवस्था’।
नया आदेश (तुरंत बदलकर): जैसे ही नागाबुड़ा से इनकार आया, वेतन आहरण का आदेश बदलकर शासकीय हाईस्कूल जोबा कर दिया गया। आदेश में लिखा गया— रिक्त पद के विरुद्ध आगामी आदेश पर्यंत वेतन जोबा से आहरित किया जाए।
लेकिन शिक्षकों का कहना है— अगर जोबा में रिक्त पद था, तो फिर उसी स्कूल के संस्कृत व्याख्याता लाला राम देवांगन को अतिशेष बताकर क्यों हटाया गया?
इस विरोधाभास ने पूरा मामला संदिग्ध बना दिया है।
डीईओ का तर्क — संस्कृत अधिकारी का वेतन सामाजिक विज्ञान से!
जब इस विवाद पर जिला शिक्षा अधिकारी जगजीत सिंह से सवाल किया गया तो उनका जवाब और उलझाने वाला रहा। उन्होंने कहा—श्याम चंद्राकर का वेतन सामाजिक विज्ञान व्याख्याता के पद के विरुद्ध निकाला जा रहा है।यानी— नियुक्ति संस्कृत की,कार्य सांख्यिकी का,वेतन सामाजिक विज्ञान का,और पोस्टिंग कहीं भी संभव।यह तर्क शिक्षक समुदाय को हजम नहीं हुआ। उनका कहना है कि— यदि किसी भी विषय के पद से किसी भी विषय का वेतन दिया जा सकता है, तो फिर युक्तियुक्तकरण और विषय अनुसार सेटअप का पूरा तंत्र ही व्यर्थ है।
विवादों से पुराना नाता
सांख्यिकी अधिकारी श्याम चंद्राकर का अतीत भी विभागीय विवादों से जुड़ा रहा है।मुख्यमंत्री जतन योजना के प्रभारी रहते उन्होंने इतना विवाद खड़ा किया कि डीईओ को उनका प्रभार बदलकर पैकरा को देना पड़ा।डीएमसी पद पर रहते भी उनके कार्यों पर सवाल उठे और कई बार मीडिया रिपोर्टों में उनका नाम सामने आया।निलंबन के बाद भी उन्हें दंड देने के बजाय विभाग ने जिला शिक्षा कार्यालय में ‘सांख्यिकी’ की जिम्मेदारी दे दी, जो स्वयं में बड़ा सवाल है।
खिलाड़ी खुद निर्णायक बन गया?
शिक्षकों में चर्चा है कि श्याम चंद्राकर स्वयं युक्तियुक्तकरण समिति का हिस्सा रहे हैं। आरोप है कि— जिसे फायदा होना था, वही नियम बनाने वाली समिति में बैठा रहा।
यह स्थिति विभाग के भीतर ‘हितों के टकराव’ का एक बड़ा उदाहरण मानी जा रही है।
शिक्षक समुदाय में भारी आक्रोश
इस पूरे प्रकरण को शिक्षक खुलेआम ‘दोहरे मापदंड’ और ‘जुगाड़ तंत्र’ का उदाहरण बता रहे हैं। शिक्षक संगठनों का कहना है कि— एक संस्कृत शिक्षक को हटाना और उसी विषय के अधिकारी का वेतन दूसरे विषय के पद से निकालना
पूरी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।
क्या होगी कार्रवाई?
मामले के बढ़ने के बाद अब जिले में यह मुद्दा चर्चा का केंद्र बन गया है। सवाल यह है कि— क्या विभाग इस पूरे प्रकरण की जांच करेगा? क्या पद विरुद्ध वेतन आहरण जैसी प्रक्रिया पर रोक लगेगी? या फिर यह मामला भी मौजूदा व्यवस्था की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा?
फिलहाल इतना स्पष्ट है कि गरियाबंद शिक्षा विभाग में नियमों का नहीं, बल्कि जुगाड़ का राज चलता दिख रहा है।
