CG : छुरा की जर्जर सड़कों पर शासन की खामोशी – मरम्मत के लाखों-करोड़ों कहाँ गए?
छुरा (गंगा प्रकाश)। छुरा की जर्जर सड़कों पर शासन की खामोशी – गरियाबंद जिले का छुरा ब्लॉक मुख्यालय और उसके आस-पास के गांवों की सड़कें इन दिनों अपनी बदहाली की दर्दनाक कहानी खुद कह रही हैं। बारिश की हल्की बूंदों ने ही शासन-प्रशासन की सड़कों की मरम्मत व्यवस्था की पोल खोल दी है।
छुरा से कोसमबूढ़ा मार्ग, खड़मा रोड, रसेला रोड – हर सड़क की हालत बद से बदतर हो चुकी है।
नगर पंचायत छुरा से कोसमबूढ़ा तक महज 2 किलोमीटर के इस मार्ग पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं। बरसात में इनमें पानी भर जाता है, जिससे राहगीरों का निकलना मुश्किल हो जाता है। यह मार्ग इतना महत्वपूर्ण है कि यहां से रोजाना हजारों लोग गुजरते हैं।
शराब दुकानें बनीं राहगीरों की जान की दुश्मन
इस सड़क पर अंग्रेजी और देशी शराब की दुकानें भी लगी हुई हैं। प्रतिदिन हजारों की संख्या में शराब प्रेमी यहां आते हैं। पार्किंग की व्यवस्था नहीं होने से शराबी अपनी गाड़ियाँ सड़क पर ही खड़ी कर देते हैं। स्कूली बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग इस रास्ते से गुजरते हैं तो उन्हें हर कदम डर बना रहता है कि कहीं नशे में धुत कोई वाहन चालक उन्हें घायल न कर दे।
कोसमबूढ़ा निवासी स्कूली छात्रा ने बताया, –“शराब दुकान के पास से गुजरते डर लगता है। सड़क पर वाहन खड़े रहते हैं, जगह नहीं होती। बारिश में तो और भी फिसलन हो जाती है।”
खड़मा रोड और रसेला मार्ग भी जर्जर
छुरा से खड़मा जाने वाला 15 किलो मीटर मार्ग भी जगह-जगह से उखड़ा हुआ है। राहगीरों और स्कूली छात्रा छात्राओं को रोजाना जान हथेली पर लेकर चलना पड़ता है।
इसी तरह छुरा से रसेला जाने वाला 17 किलोमीटर लंबा मार्ग पिछले कई वर्षों से बदहाल है। गांव के किसान, स्कूली बच्चे, मजदूर, महिलाएं सभी इस रास्ते से गुजरते हैं। बरसात के दिनों में हालात और भी खतरनाक हो जाते हैं।
रसेला निवासी किसान ने कहा, –“सड़क में इतने गड्ढे हैं कि बाइक लेकर निकलना मुश्किल हो गया है। कोई सुध लेने वाला नहीं। बरसात में सड़क दिखाई ही नहीं देती, पानी ही पानी रहता है।”
शासन से आती करोड़ों की राशि, लेकिन सड़कें फिर भी जर्जर क्यों?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि हर साल सड़क मरम्मत और रखरखाव के लिए शासन-प्रशासन से करोड़ों रुपये आते हैं। आखिर ये पैसा कहाँ जा रहा है?
ग्रामीणों का आरोप है कि कागजों में मरम्मत कार्य दिखा दिया जाता है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता।
कोसमबूढ़ा के बुजुर्ग ने कहा, – “हर साल बजट आता है। रोड बनाने का बोर्ड तो लगता है, पर सड़क तो वैसी की वैसी रहती है। कहीं ये पैसा बही-खातों से ही बहा तो नहीं दिया जा रहा?”
छुरा नगर पंचायत के ही एक दुकानदार का कहना है, – “चुनाव के समय नेता लोग आते हैं, सड़क बनाने का वादा करते हैं। फिर पांच साल कोई नहीं पूछता। अधिकारी भी सर्वे करके चले जाते हैं, मरम्मत नहीं होती।”
स्कूली बच्चों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल
कोसमबूढ़ा, सारागांव, खड़मा, रसेला जैसे गांवों के बच्चे पढ़ाई के लिए रोजाना छुरा आते हैं। इनकी सबसे बड़ी चिंता सड़क और शराब दुकानों की वजह से है। अभिभावक बताते हैं कि रोज बच्चे डर के माहौल में स्कूल आते-जाते हैं।
क्या होगी जवाबदेही?
लोगों का कहना है कि शासन से हर साल सड़क मरम्मत, सीसी सड़क निर्माण, डामरीकरण और रखरखाव के लिए लाखों-करोड़ों रुपये स्वीकृत होते हैं। लेकिन काम नहीं होता।
ग्रामीणों की मांग –
- पिछले 5 वर्षों का सामाजिक अंकेक्षण हो।
- शराब दुकानों के लिए वाहन पार्किंग की व्यवस्था की जाए।
- सड़क मरम्मत का स्थायी समाधान निकाला जाए।
कभी भी हो सकता बड़ा हादसा
इस क्षेत्र में बारिश के मौसम में पहले भी कई हादसे हो चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि क्या प्रशासन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है?
आखिर इन उखड़ी सड़कों की जिम्मेदारी कौन लेगा?
प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर सवाल
लोग पूछ रहे हैं –
- क्या सड़क निर्माण की राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है?
- क्या मरम्मत कार्य सिर्फ कागजों में ही पूरा होता रहेगा?
- स्कूली बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?
जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलता, तब तक छुरा और उसके गांवों की सड़कें इसी तरह जानलेवा बनी रहेंगी।
