गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। जिले में शासकीय भूमि पर अवैध कब्ज़े का सबसे बड़ा और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। ग्राम पंचायत डोंगरीगांव के आश्रित ग्राम केशोडार के दर्रापारा में वन विभाग का एक कर्मचारी सरकारी ज़मीन पर पक्का मकान बनाता पकड़ा गया है।
जिस विभाग को जंगल, जमीन और सरकारी संपत्ति की रक्षा का जिम्मा सौंपा गया है, उसी विभाग का कर्मचारी स्वयं अतिक्रमण में शामिल पाया जाना विभाग की साख पर करारा प्रहार करता है।
ग्रामीणों ने इस कृत्य को तीखे शब्दों में सरकारी वर्दी में लिपटा अतिक्रमणकारी और “रक्षक बना भक्षक” कहा है।वन विभाग का कर्मचारी—सबसे आगे अवैध कब्ज़े में, निर्माण बेखौफ जारी
स्थानीय लोगों के मुताबिक वन परिक्षेत्र में पदस्थ यह कर्मचारी बिना किसी अनुमति के सरकारी जमीन पर पक्का मकान खड़ा कर रहा है।
न पंचायत ने रोका,न राजस्व विभाग ने कार्रवाई की और वन विभाग तो पूरी तरह चुप
सबसे बड़ी बात—राजस्व विभाग की ओर से नोटिस जारी होने के बाद भी निर्माण जारी है।
मामला जितना गंभीर दिखता है, उससे कहीं अधिक गहरा है… क्योंकि अवैध निर्माण करने वाला कोई आम व्यक्ति नहीं, सरकारी तंत्र का हिस्सा है।
वन विभाग की चुप्पी—क्या कर्मचारी को संरक्षण मिल रहा है?
वन विभाग का मौन पूरे जिले में चर्चा का विषय है। वह विभाग जो ग्रामीणों से सूखी लकड़ी उठाने पर भी सख्ती दिखाता है, अपने कर्मचारी पर कार्रवाई से बचता दिख रहा है।
ग्रामीणों में सवाल— क्या वन विभाग के नियम सिर्फ जनता के लिए हैं? अपने कर्मचारी पर क्यों नहीं लागू होते? यह चुप्पी विभाग को कटघरे में खड़ा कर रही है।
राजस्व विभाग भी खानापूर्ति में लगा—नोटिस जारी, बाकी फाइलों में दफन
शिकायत के बाद राजस्व अमला पहुंचा, प्रकरण दर्ज हुआ, नोटिस जारी हुआ… लेकिन जमीन पर न तो निर्माण रुका, न कब्ज़ा हटा।
सबकुछ कागज़ों में सिमट कर रह गया।
ग्रामीणों का आरोप है कि— नोटिस देना दिखावा है। कार्रवाई तब होगी जब बुलडोज़र चलेगा।
दलाल-पैसा-सरकारी कर्मचारी की तिकड़ी?
स्थानीय लोगों का कहना है कि शासकीय भूमि पर कब्ज़ा करने का यह काम किसी एक व्यक्ति की हिम्मत नहीं हो सकती।
कुछ दलालों और पैसों के खेल की मिलीभगत से ही सरकारी कर्मचारी यह दुस्साहस कर पाया है।
यदि सरकारी तंत्र के भीतर घुसकर कर्मचारी ही अवैध कब्ज़ा करेंगे, तो विभागीय ईमानदारी पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
पंचायत की चुप्पी—सवालों से भरी, लेकिन जवाब कोई नहीं
पंचायत प्रतिनिधि पूरे मामले में मौन हैं। किसी भी तरह का विरोध, नोटिस, बैठक—कुछ नहीं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पंचायत की निष्क्रियता ने अतिक्रमणकारियों को खुली हरी झंडी दे दी है।
ग्रामीणों का अल्टीमेटम: कर्मचारी को सस्पेंड करो, कब्ज़ा हटाओ!
ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा है—
* वन विभाग आरोपी कर्मचारी को तत्काल निलंबित करे
* विभागीय जांच शुरू हो
* राजस्व विभाग अवैध निर्माण पर बुलडोज़र चलाए
* सरकारी जमीन तुरंत अतिक्रमणमुक्त की जाए
इस मामले में ग्रामीणों का आक्रोश चरम पर है। उनका कहना है कि यह मामला सिर्फ एक निर्माण का नहीं, बल्कि सरकारी विभाग के भरोसे और विश्वसनीयता का है।
तहसीलदार चितेश देवांगन बोले—नोटिस जारी, कब्ज़ा हटाया जाएगा
तहसीलदार ने बताया— पूर्व तहसीलदार द्वारा नोटिस जारी किया गया था। मैंने भी संबंधित अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी किया है। नियमों के अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी और शासकीय भूमि से कब्ज़ा हटाया जाएगा।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि यह कार्रवाई शब्दों में रहेगी या जमीन पर उतरकर दिखेगी।
क्या वन विभाग जागेगा? या फिर विभागीय कर्मचारी को बचाने में लगा रहेगा?
दर्रापारा का यह मामला वन विभाग की कार्यशैली और ईमानदारी की सबसे बड़ी परीक्षा है।
यदि विभाग अपने ही कर्मचारी पर कठोर कार्रवाई नहीं करता, तो यह संदेश जाएगा कि सरकारी विभागों के अंदर बैठे लोग ही सरकारी संपत्ति के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं।
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