Vande Mataram 150th Anniversary : नई दिल्ली। भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के ऐतिहासिक अवसर पर आज संसद में विशेष बहस का आयोजन किया जा रहा है। लोकसभा में इस बहस की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे, जबकि राज्यसभा में चर्चा की शुरुआत गृह मंत्री अमित शाह करेंगे। केंद्र सरकार इसे स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा माने जाने वाले इस गीत के सम्मान में एक बड़ी पहल के रूप में देख रही है।संसदीय कार्यक्रम के अनुसार, ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा के लिए लोकसभा में कुल 10 घंटे निर्धारित किए गए हैं, जिसमें से एनडीए के सदस्यों को 3 घंटे दिए गए हैं। उम्मीद है कि इस विषय पर बहस सोमवार रात देर तक चलेगी।

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 आखिर ‘वंदे मातरम्’ पर संसद में चर्चा की जरूरत क्यों?

‘वंदे मातरम्’ सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का नारा था। इसे पहली बार 1875 में लिखा गया और 1905 के स्वदेशी आंदोलन के दौरान यह अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गया। लेकिन वर्षों से कुछ राजनीतिक दलों और धार्मिक समूहों की ओर से इस गीत पर आपत्तियाँ जताई जाती रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में संसद में यह बहस महत्वपूर्ण मानी जा रही है—
ताकि:

  • इसके ऐतिहासिक महत्व को सामने रखा जाए

  • धार्मिक विवादों को स्पष्ट किया जाए

  • राष्ट्रगीत को लेकर खड़ी की गई राजनीतिक गलतफहमियों को दूर किया जाए

 मुसलमानों को ‘वंदे मातरम्’ से आपत्ति क्यों होती है?

कुछ मुस्लिम संगठनों और धर्मगुरुओं की ओर से ऐतिहासिक रूप से दो मुख्य आपत्तियाँ उठाई गईं:

1. मूर्तिपूजा जैसा संदर्भ

गीत के कुछ हिस्सों में भारत माता को देवी की तरह वर्णित किया गया है।इस्लाम में अल्लाह के सिवा किसी अन्य के आगे झुकना या पूजन करना मान्य नहीं है।इसलिए उनका कहना है कि धार्मिक रूप से यह पंक्तियाँ स्वीकार्य नहीं हैं।

2. गीत का धार्मिक स्वरूप

‘वंदे मातरम्’ के मूल संस्करण में बंगाली-उर्दू मिश्रित भाषा में कई ऐसे शब्द हैं जो देवी की वंदना करते हैं, जिसे कुछ मुस्लिम विद्वान धार्मिक सिद्धांतों के विपरीत मानते हैं।

सरकार का स्पष्ट रुख:

सरकार और संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी नागरिक पर राष्ट्रीय गीत गाने का संवैधानिक दबाव नहीं है, लेकिन राष्ट्र के प्रति सम्मान सभी को दिखाना चाहिए।

 राष्ट्रीय गीत का इतिहास: क्यों इतना महत्वपूर्ण है ‘वंदे मातरम्’?

  • रचना: बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (1875)

  • प्रकाशन: उपन्यास आनंदमठ (1882)

  • स्वदेशी आंदोलन का युद्धघोष

  • अंग्रेज सरकार द्वारा प्रतिबंधित होने के बावजूद भारतीयों ने इसे बंद नहीं किया

  • 1947 में संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया

‘वंदे मातरम्’ कई क्रांतिकारियों—भगत सिंह, खुदीराम बोस, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय—की प्रेरणा रहा।

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