प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से अगले 10 वर्षों में देश को गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्त करने का शनिवार को आग्रह किया और कई वर्षों की सुस्त आर्थिक विकास को हिंदू विकास दर बताकर पूरी सभ्यता को बदनाम करने की कोशिश करने वाले ‘‘तथाकथित बुद्धिजीवियों” पर निशाना साधा। मोदी ने यहां ‘हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट’ में कहा कि जब दुनिया अनिश्चितताओं से भरी हुई है, भारत आत्मविश्वास से लबरेज है और वैश्विक मंदी के दौर में विकास की कहानी लिख रहा है। उन्होंने कहा कि कोई भी देश आत्मविश्वास के बिना आगे नहीं बढ़ सकता है और आज हर क्षेत्र औपनिवेशिक मानसिकता को त्याग रहा है तथा गर्व के साथ नयी उपलब्धियों की ओर अग्रसर है।

मोदी ने कहा, ‘‘यह औपनिवेशिक मानसिकता विकसित भारत के लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी रूकावट बन गई है। इसीलिए आज का भारत इस मानसिकता से मुक्त होने के लिए काम कर रहा है।” उन्होंने कहा कि इस औपनिवेशिक मानसिकता का असर ऐसा है कि आज भी, जब दुनिया के कई लोग भारत को वैश्विक विकास का इंजन बताते हैं, बहुत कम लोग इस उपलब्धि के बारे में गर्व से बात करते हैं। उन्होंने पूछा, ‘‘क्या कभी किसी ने इसे हिंदू विकास दर कहा है?” उन्होंने लोगों को याद दिलाया कि यह संज्ञा उस समय इस्तेमाल की गई थी जब भारत दो से तीन प्रतिशत की विकास दर तक पहुंचने के लिए भी जूझ रहा था। मोदी ने कहा कि देश के आर्थिक प्रदर्शन को उसके लोगों के विश्वास से जोड़ा गया था और एक पूरे समाज को गरीबी का पर्याय बनाकर पेश किया गया।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘यह संदेश दिया जा रहा था कि भारत की धीमी विकास दर किसी न किसी तरह हिंदू सभ्यता का ही परिणाम है। और जो लोग आज हर मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देते हैं, उन्हें उस समय इस पर कोई आपत्ति नहीं थी। यह संज्ञा किताबों और शोध पत्रों का हिस्सा बन गई।” मोदी ने कहा, ‘‘भारत में मानसिक गुलामी के बीज बोने वाली मैकाले की नीति 2035 में 200 वर्ष पूरे कर लेगी। इसका मतलब है कि अभी 10 वर्ष बाकी हैं। इसलिए, इन्हीं 10 वर्षों में हम सभी को मिलकर अपने देश को गुलामी की मानसिकता से मुक्त कराना होगा।” उन्होंने कहा कि भारत उच्च विकास और निम्न मुद्रास्फीति का एक मॉडल है। उन्होंने कहा कि इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की 8.2 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर दर्शाती है कि वह वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास इंजन बन रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे समय में जब दुनिया अनिश्चितताओं से भरी है, भारत एक अलग ही लीग में नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में हो रहे बदलाव सिर्फ संभावनाओं के बारे में नहीं हैं, बल्कि बदलती सोच और दिशा की गाथा हैं। मोदी ने कहा, ‘‘हम ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां 21वीं सदी का एक-चौथाई हिस्सा बीत चुका है। दुनिया ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं: वित्तीय संकट, वैश्विक महामारी, प्रौद्योगिकी व्यवधान, हम युद्ध देख रहे हैं, ये स्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई हैं।” उन्होंने कहा कि विश्व अनिश्चितताओं से भरा है, लेकिन भारत को एक अलग ही लीग में देखा जा रहा है।

मोदी ने कहा, ‘‘भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब आर्थिक मंदी की बात होती है, तब भारत विकास की गाथा लिखता है। जब दुनिया में विश्वास की कमी होती है, तब भारत भरोसे का स्तंभ बनता है, जब दुनिया बिखराव की ओर बढ़ रही है, तो भारत सेतु बन रहा है।” दूसरी तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर के आठ प्रतिशत से अधिक के आंकड़े की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारी गति का प्रतीक है।”

मोदी ने कहा, ‘‘यह सिर्फ एक संख्या नहीं है, बल्कि एक मजबूत व्यापक आर्थिक संकेत है। यह संदेश है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास इंजन बन रहा है।” उन्होंने बताया कि वैश्विक वृद्धि दर लगभग तीन प्रतिशत है, जबकि जी-7 अर्थव्यवस्थाएं औसतन लगभग 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं। मोदी ने कहा, ‘‘ऐसे समय में भारत उच्च विकास और कम मुद्रास्फीति का एक मॉडल है।” उन्होंने अपने संबोधन में कहा, ‘‘एक समय था जब लोग, विशेषकर हमारे देश के अर्थशास्त्री, उच्च मुद्रास्फीति को लेकर चिंता व्यक्त करते थे, लेकिन वही लोग अब मुद्रास्फीति के कम होने की बात करते हैं।” मोदी ने कहा कि भारत की उपलब्धियां सामान्य बात नहीं हैं, यह आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि पिछले दशक में आए मूलभूत बदलावों की बात है।

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