
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। रविवार 28 जुलाई सावन माह के प्रथम रविवार से अंचल के गांव गांव में सवनाही त्यौहार की शुरूआत की धूम रही। अब लगातार 4 रविवार सवनाही मनाया जावेगा। छत्तीसगढ़ में अपनी संस्कृति के अनुरूप पूरे साल विभिन्न त्यौहार मनाए जाते है। ग्रामीण अंचलों में इसी आस्था के आधार पर परंपरागत रूप से सवनाही त्यौहार मनाया जा रहा है। इसका सीधा संबंध कृषि कार्यो से होता है। सावन महीने में ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार के रोगों और जहरीले जीव-जंतुओं से बचने के लिए घर के मुख्य द्वार पर सवनाही दवाइयों को जमीन में गाड़ा जाता है। साथ ही गांव की सीमा को बैगा बुलाकर नकारात्मक चीजों से बचाने के लिए पूजापाठ करवाया जाता है। वातावरण को शुद्ध करने के लिए पूजा होती है। ग्रामीणों ने बताया कि यह त्यौहार पूर्वजों के समय से मनाया जा रहा है। इस त्यौहार में ग्रामीण अच्छी बारिश और फसल के लिए ग्राम के देवी-देवताओं से प्रार्थना करते है। सवनाही त्यौहार को सावन महीने के प्रथम रविवार को सुबह गांव की रोग दोस को दूर करने के लिए यह उपाय ग्रामीण अंचल के गांवों में निकाली गई है। जिसमें नवा झेंझरी में 21 नींबू, 21 धजा, 21 दसमत फूल के साथ कोड़हा भूसा का रोटी भोग के साथ सवनाही माता को भेल लकड़ी के रथ जिसमें 21 खंबा बांस के लगाया गया और उसी 21 खंबे में नीबू धजा को लगाकर निकाला गया। इस परंपरा को आज 28 जुलाई दिन रविवार को ग्रामीण क्षेत्रों में निकाला गया। और सवनाही को गांव सरहद से बाहर निकाली गई जिसमें मुर्गी का अण्डा और मुर्गी भी साथ में लेकर सरहद पार छोड़ दिया जाता है। साथ ही ऐसा प्रत्येक रविवार को भी मनाया जाता है। इस दिन कृषि कार्यो के साथ काम बुता पूरा बंद होता है। ग्रामीण मिलजुल कर त्यौहार को मनाते है साथ ही घरों में तरह तरह के व्यंजन भी बनाए जाते है। घरों की दीवार पर गाय के गोबर से लेपन कर विशेष प्रकार की आकृति और चित्रकला बनाई जाती है। इसे शगुन का परिचायक माना जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि इस गोबर से बनी चित्रकला घर का वातावरण शुद्ध करती है। घर में प्रवेश की दीवार पर गोबर से पुतली का चित्र बना रहे है। मान्यता है कि ऐसा करने से हम अनिष्ट से बचते है। ग्रामीण कहते है पूर्वजों की बनाई परंपरा है। पीढ़ी दर पीढ़ी हम इसका पालन कर रहे है। मान्यता है कि इससे घर-परिवार पर कोई आपदा-विपत्ति नहीं आती।