दसदिवसीय गणेशोत्सव का शुभारंभ आज से – अरविन्द तिवारी

रायपुर (गंगा प्रकाश)। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है जो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन यानि आज भारत के विभिन्न भागों में सनातन परंपरा के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष  गणेश चतुर्थी उत्सव की शुरुआत आज 07 सितंबर से होने जा रही है , दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव का समापन 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन होगा। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि पुराणों के अनुसार इसी चतुर्थी को मध्याह्न काल में गणेश का जन्म हुआ था इसलिये मध्याह्न काल में इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। बाल गंगाधर तिलक ने दस दिवसीय गणेशोत्सव सार्वजनिक रूप से मनाने की शुरुआत की थी। तब से आज भी कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। वैसे तो देश भर में लोग बड़ी धूमधाम से इस पर्व को मनाते हैं लेकिन यह पर्व महाराष्ट्र में खास तौर से मनाया जाता है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। वहीं घरों में भी लोग अपनी-अपनी श्रद्धानुसार एक दिन , तीन दिन , पांच दिन तो कहीं दस दिन तक विराजमान करते हैं। घर में गाय के गोबर से बनी गणेशजी की प्रतिमा रखना काफी शुभ माना जाता है। इसके अलावा घर में क्रिस्टल के गणेशजी रखने से वास्तु दोष खत्म हो जाता है। हल्दी से बने गणेश रखने से भाग्य चमकता है। कभी भी गणेशजी की प्रतिमा ऐसी जगह ना रखें जहां अंधकार रहता हो या उसके आस-पास गंदगी रहती हो। सीढ़ियों के नीचे भी गणेश जी की प्रतिमा नहीं रखनी चाहिये। ध्यान रखें कि जब भी गणेशजी मूर्ति लें तो उसमें उनका वाहन चूहा और मोदक लड्डू जरूर बना हो , क्योंकि इसके बिना गणेशजी की प्रतिमा अधूरी मानी जाती है।  गणेशजी को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। धर्म में जब कोई भी शुभ कार्य होता है तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा आराधना की जाती है। गणेश चतुर्थी पर लोग गणेशजी को अपने घर लाते हैं , गणेश चतुर्थी के ग्यारहवें दिन अनंतचतुर्दशी को धूमधाम के साथ उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है और अगले साल जल्दी आने की प्रार्थना भी की जाती है। गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है , इस दिन चंद्र दर्शन करना निषेध बताया जाता है। मान्यता है कि आज चंद्रमा के दर्शन करने से मिथ्या कलंक लग जाता है। विष्णु पुराण में एक कथा है कि श्रीकृष्ण ने एक बार चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लिया था तो उन पर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप भी लगा था। दरअसल इसके पीछे गणेशजी का चंद्रमा को दिया हुआ शाप बताया जाता है , यह शाप गणेशजी ने भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को दिया था। कथा के अनुसार एक बार गणेशजी कहीं से भोजन करके आ रहे थे तभी उनको रास्ते में चंद्रदेव मिले और उनके बड़े उदर को देखकर हंँसने लगे। इससे गणेशजी क्रोधित हो गये और उन्होंने शाप दे दिया कि तुमको अपने रूप पर इतना अंहकार है इसलिये मैं तुमको क्षय होने का शाप देता हूंँ। गणेशजी के शाप से चंद्रमा और उसका तेज हर दिन क्षय होने लगा और मृत्यु की ओर बढ़ने लगे। देवताओं ने चंद्रदेव को शिवजी की तपस्या करने को कहा।तब चंद्रदेव ने गुजरात के समुद्रतट पर शिवलिंग बनाकर तपस्या की। चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको अपने सिर पर बैठाकर मृत्यु से बचा लिया था। इसी जगह पर भगवान शिव चंद्रमा की प्रार्थना पर ज्योर्तिलिंग रूप में पहली बार प्रकट हुये थे और वे सोमनाथ कहलाये। चंद्रदेव ने अपने अंहकार की भगवान गणेश से क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने उनको क्षमा कर दिया और कहा कि मैं इस शाप को खत्म तो नहीं कर सकता है लेकिन आप हर दिन क्षय होंगे और पंद्रह दिन बाद फिर बढ़ने लगेंगे और पूर्ण हो जायेंगे। अब से आपको हर दिन लोग देख सकेंगे लेकिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन जो भी आपके दर्शन करेगा , उसको झूठा कलंक लगेगा। गृहस्थ जीवन को सुखी बनाने के लिये गणेशजी की आराधना करनी चाहिये वे सभी मनोकामनायें पूर्ण करते हैं। गृहस्थ जीवन के लिये गणेश जी एक आदर्श देवता माना जाता है। वैसे तो गणपति बप्पा को बहुत ही सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। गणेश पूजा में चाँवल, फूल, दूर्वा सहित कई चीजें चढ़ाई जाती हैं लेकिन इनकी पूजा में दूर्वा का काफी महत्व है। कहा जाता है कि इसके बिना गणेश पूजा पूरी नहीं होती है। गणेश जी ही ऐसे देवता है जिनकी पूजा में दूर्वा का प्रयोग होता है। इसके पीछे एक प्रचलित कथा के अनुसार अगलासुर नाम का राक्षस ऋषि मुनियों को जीवित निगल जाता था , इस राक्षका अंत गणेशजी ने कर दिया और फिर इसे निगल लिया जिसके बाद उनके पेट में जलन होने लगी। उनके पेट की जलन के शांत करने के लिये कश्यप ऋषि ने दूर्वा दी थी , तभी से ही गणेशजी को दूर्वा चढ़ायी जाती है। गणेशजी के दर्शन सदैव सामने की ओर से करने चाहिये। कहा जाता है कि गणेशजी के पीछे की तरफ दरिद्रता निवास करती है इसलिये पीठ की तरफ से गणेशजी के दर्शन नहीं करने चाहिये। वैसे तो गणेशजी का हर रूप मंगलकारी और विघ्ननाशक है लेकिन गृहस्थियों के लिये बैठे हुये गणेशजी ही सबसे शुभ फलदायी माने गये हैं। आप घर पर आराम करते हुये गणेशजी की मूर्ति घर लाते हैं तो इससे घर में सुख और आनंद बढ़ता है। इनकी पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और आपको मानसिक शांति प्राप्त होती है। वहीं सिंदूरी रंग वाले गणेशजी समृद्घि दायक माने गये हैं , सिंदूरी वाले गणेशजी की पूजा गृहस्थ और व्यवसायियों को करनी चाहिये। संतान प्राप्ति के लिये घर में बाल गणेश की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करना शुभ माना गया है। इनकी हर रोज पूजा करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और संतान की प्राप्ति होती है। वहीं नृत्य करते हुये गणेशजी की मूर्ति लाने से घर में लाने से आनंद और उत्साह के साथ उन्नति भी होती है। ऐसे गणेशीजी की छात्रों को हर रोज पूजा करना उत्तम माना गया है। गणेशजी की मिट्टी की बनी हुई प्रतिमा शुभ फलदायी मानी गई है लेकिन अगर बाजार यह उपलब्ध ना हो तो केमिकल वाली मूर्ति को ना लाकर धातु से बनी मूर्ति को घर लेकर आना चाहिये , धातु से बनी हुई मूर्ति भी फलदायी होती है। गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करने से पहले यह ध्यान रखें कि वहांँ आसपास उनकी दूसरी कोई मूर्ति ना हो। आमने-सामने मूर्ति होने पर नुकसान हो सकता है। वहीं गणेशजी की मूर्ति को घर के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र में स्थापित करना उत्तम माना गया है। साथ ही ध्यान रखें कि गणेशजी की सूंड उत्तर दिशा की ओर हो।

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