अंचल में धान कटाई में आई तेजी, मजदूरों का टोटा, किसान धान की सुरक्षा एवं भंडारण में कर रहे अतिरिक्त खर्च



फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। जैसे ही दीपावली पर्व हुआ है, दुसरे दिन से ही इस पूरे अंचल में धान कटाई के कार्य ने एकदम से रफ्तार पकड़ ली है। लगभग सभी गांवो में धान की कटाई की जा रही है। गांवो में खोजो तो मजदूर नहीं मिल रहे है। लेकिन समर्थन मूल्य पर धान खरीदी में अभी 8 दिन शेश है। 14 नवंबर से किसानों से समर्थन मूल्य पर धान खरीदी किये जाने का प्रस्ताव है। 31 जनवरी तक धान खरीदी चलेगी। इधर धान कटाई व मिंजाई के पैसे देने के लिए औने-पौने दाम में किसान धान बेचने में मजबूर हो रहे है। आजकल हार्वेस्टर में ही ज्यादातर कटाई होती है। जिसके नकद पैसे देने होते है। अब किसानों को धान खरीदी का बेसब्री से इंतजार है। समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के लिए प्रशासनिक तैयारियां जोरों पर है। मगर समितियों के कर्मचारियों 4 नवंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए है। धान खरीदी की तैयारियां में जुटे प्रशासन के लिए यह बड़ी चुनौती है। सहकारी समिति के प्रबंधकों ने बताया कि प्रदेश भर की 2058 सहकारी समिति में कार्यरत तकरीबन 13 हजार कर्मचारियों ने अपने 3 सूत्रीय मांगों को लेकर 4 नवंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान किया है। उनके मुताबिक मध्यप्रदेश की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी प्रत्येक समिति को प्रति वर्श 3-3 लाख रूपए प्रबंधकीय वेतन अनुदान राशि प्रदान करने, सेवानियम 2018 में आंशिक संशोधन करते हुए पुनरीक्षित वेतनमान लागू करने और समर्थन मूल्य पर धान खरीदी वर्श 2023-24 में धान संग्रहण के बाद हुई संपूर्ण सूखत को मान्य करते आगामी वर्श के लिए धान खरीदी नीति में 16.9 में 3 फीसदी सूखत मान्य प्रावधान करने की मांग की गई है। वहीं दूसरी ओर विडंबना ये है कि पिछले साल की धान खरीदी का कमीशन अब तक नहीं मिला है। बारदाना की राशि, ब्याज अनुदान की राशि अभी तक समितियों को प्राप्त नहीं हुई है। इसके कारण समितियों के कर्मचारियों को वेतन की लाले पड़े है। 14 नवंबर के पहले खरीदी ना होने के कारण किसानों को अपनी फसल को खेत, खलिहान, घर में भंडारण करना पड़ रहा है। इसके चलते न सिर्फ उनका श्रम और समय बर्बाद हो रहा है बल्कि रखवाली के लिए अतिरिक्त खर्च भी बढ़ गया है। किसानों को कहना है कि अगर खरीदी की प्रक्रिया कटाई के साथ ही शुरू होती तो उन्हें इस तरह का आर्थिक संकट नहीं झेलना पड़ता। खरीदी में देरी से उनकी आर्थिक स्थिति और भी जटिल हो रही है। बाजार में 2000-2100 में धान बेचकर खर्चा चलाना पड़ रहा है।

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