गरियाबंद (गंगा प्रकाश)/जिले में रंगों के त्योहार होली को स्वसहायता समूह की महिलाएं इस बार और खास बना रही है। होली के त्योहार को प्राकृतिक रंगों से मनाने के लिए महिलाएं हर्बल गुलाल बना रही है। ग्राम जोबा की संजीवनी संकुल संगठन की 20 से 25 सक्रिय महिलाएँ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान के तहत हर्बल गुलाल का निर्माण कर आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की मिसाल पेश कर रही हैं। समूह की महिलाएं पलाश से लाल, गुलाब से गुलाबी एवं पुदीने के पत्तों से हरा रंग निकालकर मक्के की सूखी डंठल से प्राप्त अरारोट पाउडर में मिलाकर प्राकृतिक गुलाल का निर्माण कर रही है। इसमें हानिकारक रसायनिक तत्वों का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया जाता। जिससे हर्बल गुलाल त्वचा एवं सेहत के लिए सुरक्षित रहता है। संजीवनी संकुल संगठन की ये महिलाएँ न केवल होली के त्योहार को प्राकृतिक और सुरक्षित बना रही हैं, बल्कि अपनी आजीविका को भी मजबूत कर रही हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाएँ आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की नई कहानी लिख रही हैं। यह पहल प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित हो रही है। कलेक्टर दीपक अग्रवाल ने भी इन महिलाओं के प्रयासों की सराहना करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दी है।
समूह की महिलाओं का मानना है कि पारंपरिक तरीकों से बनाए गए प्राकृतिक गुलाल से न केवल सेहत स्वस्थ रहेगा, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल रहेगा। साथ ही महिलाओं के लिए आमदनी का नया स्रोत भी बन रहा है। पिछले वर्ष हर्बल गुलाल की मांग अधिक रही, जिसे देखते हुए इस बार महिलाओं ने रंग बनाना शुरू कर दिया है। महिलाओं ने बताया कि गुलाल बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक है। इसे तैयार करने में फूलों और पत्तियों का उपयोग किया जाता है, जिससे यह त्वचा के लिए सुरक्षित होता है। विभिन्न रंग बनाने के लिए प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग किया जाता है गुलाबी रंग के लिए चुकंदर और गुलाब की पंखुड़ियां, पीला रंग के लिए हल्दी और गेंदे के फूल, हरा रंग के लिए पालक व मेंहदी के पत्ते, नीला रंग के लिए अपराजिता के फूल और लाल रंग के लिए टेसू के फूलों का इस्तेमाल कर रही है।
समूह में धनेश्वरी ध्रुव सीएलएफ अध्यक्ष, लालिमा चौधरी सचिव, मीना साहू पीआरपी, लिलेश्वरी नाग, नुमेश्वरी साहू, प्रमिला सोम, शैलेन्द्री ठाकुर, रचुला सिन्हा और अन्य महिलाएँ प्राकृतिक संसाधनों से हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं। जंगलों से पलाश के फूलों से पीला, गुलाब के फूलों से लाल और पुदीना के पत्तों से हरा रंग निकाला जाता है, जिसे मक्के के सूखे डंठल (अरारोट) में मिलाकर शुद्ध और सुरक्षित गुलाल बनाया जाता है। महिलाओं ने जिला प्रशासन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भविष्य में भी इसी तरह के आजीविका मूलक प्रशिक्षण से अधिक से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकेंगी। हर्बल गुलाल की बढ़ती मांग को देखते हुए महिलाएं अब बड़े पैमाने पर बनाने की योजना बना रही हैं। जिससे स्थानीय महिलाओं के लिए आजीविका का नया द्वार भी खुलेगा।
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