गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। अंचल में इस वर्ष 24 हजार हेक्टेयर रकबे में धान की खती का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में वर्षा की कमी के कारण बोनी का कार्य धीमी गति से चल रहा है। वर्तमान में लगभग आधे से भी कम रकबे में ही बोनी का कार्य पूर्ण हुआ है। मौसमी प्रतिकूलता के कारण वर्तमान में अल्पवर्षा या अवर्षा से वर्षा आधारित धान की खेती में किसानों को धान की रोपाई एवं बुवाई में पानी की कमी से समस्या हो रही है, इन विषम परिस्थितियों में धान की कतार बोनी लाभदायक सिद्ध होगी। क्षेत्र में लगभग 5 हजार हेक्टेयर में धान की कतार बोनी की जाती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा विगत 3-4 वर्षो से धान की कतार बोनी को प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है एवं धान की खेतों में ज्यादा संसाधन जैसे पानी, श्रम तथा ऊर्जा की आवश्यकता होती है एवं धान उत्पादन क्षेत्र में इन संसाधनों की कमी आती जा रही है। धान उत्पादन में जहां पानी खेतों में भर कर रखा जाता है। जिसके कारण मीथेल गैस उत्सर्जन भी बढ़ता है जो कि जलवायु परिवर्तन का एक मुख्य कारण है। रोपण पद्धति में खेतों में पानी भरकर उसे ट्रेक्टर े मचाया जाता है, जिससे मृदा के भौतिक गुण जैसे मृदा संरचना, मिटटी सघनता तथा अंदरूनी सतह में जल की परगम्यता आदि तक पहुंच जाती है जिससे आगामी फसलों की उत्पादकता में कमी आने लगती है। जलवायु परिवर्तन, मानसून की अनिश्चिता, भू-जल संकट, श्रमिकों की कमी और धान उत्पादन की बढ़ती लागत को देखते हुए हमे धान उपजाने की सीधी बुवाई उन्नत सस्य प्रौद्योगिकी को अपनाना होगा तभी हम आगामी समय में पर्याप्त धान पैदा करने में सक्षम हो सकते है। धान की सीधी बुवाई एक ऐसी तकनीकी जिसमें धान के बीज को बिना नर्सरी तैयार किए सीधे खेत में बोया जाता है। इस विधि में धान के रोपाई की आवश्यकता नहीं होती है। सबसे खास बात यह है कि धान के रोपाई में आने वाले खर्च एवं श्रम दोनों में बचत होती है। बीजों को बोने के लिए ट्रेक्टर से चलने वाली मशीन का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक से लागत में 6 हजार रूपए की कमी आती है। इस विधि में 30 प्रतिशत में कम पानी का उपयोग होता है। क्योंकि रोपाई के दौरान 4 से 5 सेंटीमीटर पानी की गहराई को बनाए रखने के लिए खेत को लगभग रोजाना सिंचित करना पड़ता है। सीधी बुवाई का धान रोपित धान की अपेक्षा 7-10 दिन पहले पक जाता है, जिससे रबी फसलों की समय पर बुवाई की जा सकती है।
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