देवभोग(गंगा प्रकाश):- सोमवार को देवभोग नगर में अग्रवाल समाज द्वारा महाराजा अग्रसेन की जयंती धूमधाम से मनाया गया स्थानीय गायत्री मंदिर प्रांगण से महाराज अग्रसेन की शोभा यात्रा निकाली गई।अग्रसेन की जयकारे के साथ यह यात्रा पुरी नगर भ्रमण करती रही।शोभायात्रा के दरम्यान ही प्रसाद वितरण किया गया।आयोजन में अतिथि के रूप में पहुंचे थाना प्रभारी बीएल साहू, सुधीर भाई पटेल समेत अन्य सामाजिक वरिष्ठ के अलावा सामाजिक भवन हेतु भूमि दान करने वाले राजेश अग्रवाल का सम्मान किया गया।आयोजन को सफल बनाने अग्रवाल युवा मंच के दिनेश अग्रवाल,शिव अग्रवाल,राकेश अग्रवाल,सुभाष मित्तल,विष्णु अग्रवाल,अनिल अग्रवाल,आशीष अग्रवाल,दिलीप अग्रवाल समेत समस्त यूवा अग्रवाल का विशेष योगदान रहा।


विविध आयोजन कर पुरस्कार बांटे
एक दिन पहले ही स्थानीय सरस्वती शिशु मंदिर प्रांगण में खेल कूद व सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।समाज के महिलाएं बच्चो के साथ ही सभी वर्गों का ध्यान रखकर आयोजन रखा गया था।विविध आयोजनो में वर्षा अग्रवाल,नम्रता जैन,निशु अग्रवाल,बबीता अग्रवाल,सुहाना अग्रवाल,स्वास्तिक गर्ग,हेमा, हंशिका, स्नेहा,प्रिया,पूजा,सोम,व लीना को अतिथियों के द्वारा पुरस्कृत कर उत्साह वर्धन किया।
जानिए महाराजा अग्रसेन जी के बारे में
महाराजा अग्रसेन कितने बड़े समाज सुधारक थे, तथा उन्होंने लोगों के लिए क्या-क्या किया, उनको अपने जीवन में किस प्रकार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन सब बातों के बारे में आज हम आपको संक्षिप्त में बताने का प्रयास कर रहें हैं।महाराजा अग्रसेन क्षत्रिय समाज के राजा बल्लभ सेन के सबसे बड़े पुत्र थे। लोगों के द्वारा पशु पक्षियों की देवताओं को बलि दी जाती थी, वह इनको पसंद नहीं आती थी। क्षत्रिय धर्म में पशु पक्षियों की बलि देना बहुत आम बात है, इसी की वजह से उन्होंने अपने क्षत्रिय धर्म को छोड़कर वैश्य धर्म को अपना लिया था। उसके बाद इनको वैश्य धर्म का जनक भी माना और कहा जाने लगा। महाराजा अग्रसेन के जन्मदिन को अग्रसेन दिवस के रूप में भी मनाते हैं। इसको अग्रसेन जयंती भी कहा जाता है। जयंती में अग्रवाल समाज के लोग महाराजा अग्रसेन की बहुत बड़ी-बड़ी झांकियां निकालते हैं, शोभा यात्राएं निकलती है, और महाराजा अग्रसेन की पूजा पाठ आरती पूरे देश भर में की जाती है।महाराजा अग्रसेन ने हमेशा अग्रवाल और आगरा हारी समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व किया उत्तर भारत में जो व्यापारी वर्ग के लोग हैं उनको आगरोहा का कहा जाता है। ये लोग मंदिरों में जानवरों को मारने से भी इनकार करते हैं इसीलिए वह आगरोहा के नाम से जाने जाते हैं,इसी वजह से महाराजा अग्रसेन ने उनका प्रतिनिधित्व किया और इस वंश की परंपरा को आगे बढ़ा कर यह अग्रवाल समुदाय के जनक बन गए।उनका जन्म आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था इस वजह से इस दिन को अग्रसेन जयंती के रूप में मनाते हैं यह नवरात्रि के पहले दिन ही अधिकतर मनाई जाती है। अग्रवाल समुदाय के लोग इस दिन को बहुत अच्छे तरीके से मनाते हैं। महाराजा अग्रसेन की प्रतिमा को रखकर बहुत भव्य झांकियां निकाली जाती है और महाराजा अग्रसेन का पूजन पाठ यज्ञ आदि भी किया जाता है। महाराजा अग्रसेन क्षत्रिय धर्म में इनका जन्म होने के कारण इनको अपने धर्म से नफरत हो गई थी।उनका मानना था कि क्षत्रिय धर्म में बहुत हिंसक प्रवृत्तिया होती हैं।इसी वजह से इन्होंने क्षत्रिय धर्म छोड़कर वैश्य धर्म को अपना लिया था।उन्होंने अपने जीवन में बहुत से ऐसे कार्य किए जिनके लिए उनको जाना जाता है। इनका जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता क्षत्रिय समाज के राजा थे।

महाराजा अग्रसेन का जन्म
उनका जन्म द्वापर युग के आखिरी चरण में अश्विन प्रतिपदा नवरात्रि के पहले दिन हुआ था। महाराजा अग्रसेन सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल में पैदा हुए थे। महाराजा अग्रसेन बल्लभगढ़ के राजा बल्लभ सेन के सबसे बड़े पुत्र थे। राजा अग्रसेन की माता का नाम भगवती का जब महाराजा अग्रसेन का जन्म हुआ था। इनके पिता बल्लभ सेन को महर्षि गर्ग ऋषि ने इनकी ओर देखकर यह भविष्यवाणी की थी कि “यह भविष्य में एक बहुत बड़ा राजा बनेगा तथा इसका नाम युगों तक अमर रहेगा और इसके द्वारा एक नई शासन व्यवस्था का भी उदय होगा।
महाराजा अग्रसेन का विवाह
उनका विवाह नागराज की कन्या माधवी के साथ हुआ था। माधवी इतनी सुंदर थी कि उसकी सुंदरता पर राजा इंद्र भी मोहित हो गया था। माधुरी के पिता ने उसकी शादी के लिए स्वयंवर रचाया, जिसमें इंद्र भी आया था। माधवी ने अपने वर के रूप में महाराजा अग्रसेन को चुना इसको देखकर राजा इंद्र को बहुत बुरा लगा और अपमान सा महसूस हुआ और उन्होंने महाराजा अग्रसेन के नगर में अकाल की स्थिति पैदा कर दी। इस स्थिति को देखकर अग्रसेन ने इंद्र पर आक्रमण कर दिया और इंद्र की पूरी सेना को महाराजा अग्रसेन ने परास्त कर दिया और वह जीत गए इसके बाद में देवताओं के साथ नारद मुनि ने मिलकर इंद्र और अग्रसेन के बीच के दुश्मनी को हमेशा के लिए खत्म कर दिया।क्षत्रिय धर्म में एक या एक से अधिक विवाह करना कोई बड़ी बात नहीं है। इसके बाद महाराजा अग्रसेन ने एक और विवाह किया। दोनों विवाह दो अलग-अलग धर्मों की लड़कियों के साथ में महाराजा अग्रसेन ने किए थे। दूसरी रानी सुन्दरावती से विवाह अपने राज्य को बचाने के लिए किया था।
“अग्रोहा धाम”की स्थापना
एक बार महाराजा अग्रसेन अपनी ही रानी माधवी के साथ में भारत भ्रमण के लिए निकले थे। उन्होंने रास्ते में देखा कि एक शावक के बच्चे और भेड़ के बच्चे एक साथ मिलकर खेल रहे हैं। इसको उन्होंने दैवीय शुभ संकेत माना और वहीं पर एक नए राज्य स्थापित करने की योजना बनाई। और एक नया राज्य ‘अग्रोहा’ स्थापित कर दिया। आज यह राज्य हरियाणा के हिसार के पास में स्थित है। इस अग्रोहा धाम में महाराजा अग्रसेन और मां लक्ष्मी का बहुत बड़ा मंदिर है। महाराजा अग्रसेन को भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा से मां लक्ष्मी के दर्शन प्राप्त हुए थे।
महाराजा अग्रसेन के मरणोपरांत उनके राष्ट्रीय सम्मान
महाराजा अग्रसेन ने अपने जीवन में हमेशा अपने विचारों और कर्तव्यनिष्ठा के बल पर हमारे समाज को एक नई दिशा की तरफ लेकर गए हैं महाराजा अग्रसेन के कारण ही हमारे समाज में व्यापार के महत्व को भी व्यापारी वर्ग के लोगों ने समझा और इसी की वजह से भारत सरकार ने 24 सितंबर 1976 को महाराजा अग्रसेन के सम्मान के रूप में 25 पैसे के डाक टिकट पर महाराजा अग्रसेन की फोटो को छपवाया। इसके बाद में 1995 में एक जहाज का नाम अग्रसेन रखा गया। महाराजा अग्रसेन के नाम पर हमारी सरकार ने बहुत सी जगह पर अस्पताल, स्कूल, कॉलेज उनके नाम पर ही बनवाए गए हैं। सबसे प्रसिद्ध दिल्ली में अग्रसेन की बावड़ी है जिसमें महाराजा अग्रसेन से जुड़ी हुई संपूर्ण जानकारी और उनके तथ्य उसमें आपको देखने को मिलेंगे।
अग्रवाल समाज की उत्पत्ति
उनका जन्म तो क्षत्रिय परिवार में हुआ था लेकिन इन्होंने देश धर्म को अपना लिया था। महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्र थे उन सभी पुत्रों को 18 यज्ञों का संकल्प दिलाया गया। इस संकल्प को 18 ऋषियों के द्वारा पूरा गया गया। इन 18 ऋषियों के आधार पर ही अग्रवाल समाज के 18 गोत्र की उत्पत्ति हुई और अग्रवाल समाज का निर्माण हुआ।
महाराजा अग्रसेन समाजवाद के अग्रदूत
महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक तत्कालीन प्रचलन का सिक्का व एक ईंट देगा, जिससे आसानी से नवागन्तुक परिवार स्वयं के लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध कर सके। महाराजा अग्रसेन ने तंत्रीय शासन प्रणाली के प्रतिकार में एक नई व्यवस्था को जन्म दिया, उन्होंने पुनः वैदिक सनातन आर्य सस्कृंति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य की पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया।इस तरह महाराज अग्रसेन के राजकाल में अग्रोदय गणराज्य ने दिन दूनी- रात चौगुनी तरक्की की। कहते हैं कि इसकी चरम स्मृद्धि के समय वहां लाखों व्यापारी रहा करते थे। वहां आने वाले नवागत परिवार को राज्य में बसने वाले परिवार सहायता के तौर पर एक रुपया और एक ईंट भेंट करते थे, इस तरह उस नवागत को लाखों रुपये और ईंटें अपने को स्थापित करने हेतु प्राप्त हो जाती थीं जिससे वह चिंता रहित हो अपना व्यापार शुरू कर लेता था।
महाराजा अग्रसेन की अनमोल शिक्षाएं
महाराजा अग्रसेन के द्वारा दी गई सभी लोगों के लिए अनमोल शिक्षाएं निम्न प्रकार से हैं-मनुष्य को अपना जीवन इस तरह से बनाना चाहिए कि उसको अपनी मौत से पहले ही धरती पर स्वर्ग लगे ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि मौत के बाद ही स्वर्ग प्राप्त होगा।

महाराजा अग्रसेन किसी भी पक्षी को तीर का निशाना बनाने की बजाय उस को उड़ते हुए देखना पसंद करते थे।
–पशु पक्षियों से प्रेम करके उन्होंने पशुओं की बलि को रोककर नए समाज का निर्माण किया।
एक ईंट एक रुपया का सिद्धांत क्या है
-महाराजा अग्रसेन अपने राज्य में भेष बदलकर अपने राज्य की जनता का हाल-चाल जरूर देते थे। एक बार जब अकाल की स्थिति पड़ गई थी। उनके राज्य में तब उनको एक घटना ने इतना प्रभावित किया कि उसके बाद उन्होंने अपने संपूर्ण राज्य में सभी लोगों से कहां की एक ईट और एक रुपया देकर हम अपने राज्य में जो भी नए परिवार में लोग आते हैं, उनको खाने को तथा उनको व्यापार के लिए भी बढ़ावा दे सकते हैं। उनका यह सिद्धांत आज भी चल रहा है उनके इस सिद्धांत के द्वारा आज उनको एक बहुत बड़े समाजवाद के रूप में भी देखा जाता है। इसके अलावा महाराजा अग्रसेन को युगपुरुष, समाजवाद के प्रवर्तक,उनका करुणामय स्वभाव इन सभी कामों के लिए उनको युगो युगो तक याद किया जाएगा।
अपने अंतिम समय में महाराजा अग्रसेन
अग्रवाल समाज और अग्रोहा धाम का निर्माण कर महाराजा अग्रसेन में 100 सालों तक अपना राज्य किया। इसके बाद महाराजा अग्रसेन अपना सभी कार्यभार अपने बड़े पुत्र को सौंप कर वन में चले गए थे।महाराजा अग्रसेन ने अपने जीवन काल में बहुत अच्छे काम किये। अपने शासनकाल में सबसे ज्यादा पशु पक्षियों से प्रेम किया। इसके अलावा सभी हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाई अर्थात पशु बलि को बंद करके वैश्य धर्म को स्वीकार कर लिया। उनके सिद्धांतों और उनकी जीवन में दी गई सीखो के आधार पर आज भी सभी लोग चल रहे हैं।