Brekings:चाकाबुड़ा में हार से बौखलाया पूर्व सरपंच बना पानी का सौदागर! पंचायत के 21 हैंडपंपों से सबमर्सिबल और टंकियां उखड़वाकर ले गया घर, भीषण गर्मी में बूंद-बूंद को तरस रहे ग्रामीण,सचिव के साथ मिलीभगत के आरोप, प्रशासन मौन
कोरबा/कटघोरा (गंगा प्रकाश)।छत्तीसगढ़ के कटघोरा जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम पंचायत चाकाबुड़ा में एक चौंकाने वाली घटना ने प्रशासन और शासन की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा कर दिया है। पंचायत चुनाव में हार से तिलमिलाए पूर्व सरपंच पवन सिंह कमरों ने अपनी हठधर्मिता और दबंगई के चलते पूरे गांव को पेयजल संकट में धकेल दिया। आरोप है कि उन्होंने गांव के करीब 20 से अधिक हैंडपंपों पर पंचायत द्वारा स्थापित सबमर्सिबल पंप और पानी की स्टोरेज टंकियां (सिन्टेक्स) हटवाकर अपने घर भिजवा दीं। इसके चलते गांव में पानी की भारी किल्लत पैदा हो गई है और ग्रामीणों को गर्मी के इस भीषण दौर में बूंद-बूंद पानी के लिए भटकना पड़ रहा है।

भ्रष्टाचार की गंगा, जल जीवन मिशन अधर में
चाकाबुड़ा गांव की आबादी लगभग 2300 है। यहां के अधिकांश परिवार मजदूरी और खेती पर निर्भर हैं। गांव में जल जीवन मिशन के तहत नल कनेक्शन और पानी की टंकी तो बना दी गई है, लेकिन उसमें अब तक पानी नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में गांववासियों के लिए हैंडपंप ही एकमात्र भरोसेमंद स्रोत था। लेकिन अब जब पंचायत द्वारा लगाए गए सबमर्सिबल पंप और टंकियां ही गायब कर दी गई हैं, तो ग्रामीणों के लिए स्थिति भयावह हो चुकी है। महिलाओं को रोजाना घंटों लंबी लाइन में खड़े होकर या दूर-दराज के खेतों से पानी लाना पड़ रहा है।
राजनीतिक हार का बदला जनता से!
ग्रामीणों के अनुसार, पूर्व सरपंच पवन सिंह कमरों इस बार पुनः चुनाव में खड़े हुए थे, लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। इससे बौखलाकर उन्होंने जनता को सबक सिखाने की मानसिकता से पंचायत की जल व्यवस्था को ही तहस-नहस कर डाला। स्थानीय निवासियों ने बताया कि उन्होंने अपने कुछ समर्थकों के साथ मिलकर रातों-रात सबमर्सिबल पंप और पानी की टंकियों को उखड़वाया और ट्रैक्टर में लादकर अपने घर ले गए। जब किसी ने विरोध करने की कोशिश की, तो सरपंच समर्थकों ने उसे डराने-धमकाने का प्रयास किया।
सचिव की संदिग्ध भूमिका, प्रशासन मौन
इस पूरे प्रकरण में पंचायत सचिव रजनी सूर्यवंशी की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि यह सब कुछ उनकी जानकारी और अनुमति के बिना संभव नहीं था। गांव में पहले भी पंचायत फंड के दुरुपयोग को लेकर आरोप लगे हैं, लेकिन आज तक कोई ठोस जांच नहीं हुई। यह पूरा मामला प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्ट व्यवस्था की जीती-जागती मिसाल बन चुका है।
ग्रामीणों का फूटा आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी
पेयजल की इस भयावह समस्या ने ग्रामीणों के आक्रोश को फूटने पर मजबूर कर दिया है। गांव की महिलाओं ने बताया कि अब उन्हें बच्चों को छोड़कर घंटों पानी की तलाश में भटकना पड़ता है। बुजुर्गों और बीमारों के लिए यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है। ग्रामीणों ने जनपद और जिला प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप कर सबमर्सिबल पंप और टंकियों को पुनः स्थापित करवाने की मांग की है। यदि प्रशासन ने शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो ग्रामीणों ने सड़कों पर उतरकर आंदोलन की चेतावनी दी है।
पंचायत निधि का दुरुपयोग, FIR की मांग
यह मामला सिर्फ पानी की समस्या का नहीं, बल्कि पंचायत निधि के खुलेआम दुरुपयोग और सत्ता से उपजे अहंकार का भी है। ग्रामीणों ने पूर्व सरपंच और सचिव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और सरकारी संपत्ति की रिकवरी की मांग की है। उनका कहना है कि पंचायत की संपत्ति कोई निजी जागीर नहीं है जिसे हार-जीत के हिसाब से उठाकर घर ले जाया जाए।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
इस पूरे मामले में अब तक जनपद या जिला प्रशासन की ओर से कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया है। न तो किसी प्रकार की जांच कमेटी बनाई गई है, न ही पीड़ित ग्रामीणों की कोई सुनवाई हो रही है। प्रशासन की यह चुप्पी कहीं न कहीं इस बात का संकेत देती है कि रसूखदारों के खिलाफ कार्रवाई करने में व्यवस्था अब भी झिझक रही है।
निष्कर्ष:
चाकाबुड़ा गांव की यह घटना केवल एक गांव की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे तंत्र के खोखलेपन और सत्ता के दुरुपयोग का प्रतीक बन चुकी है। पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता को यदि राजनीतिक बदले का औजार बना दिया जाए, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर सीधा हमला है। देखना यह है कि क्या प्रशासन इस पर गंभीरता दिखाता है या फिर ग्रामीणों को एक बार फिर अपने हक के लिए लड़ाई लड़नी होगी।