CGNEWS: गरियाबंद के जंगलों में छुपा एक नया रहस्य खुला — पहली बार कैमरा ट्रैप में कैद हुआ यूरेशियन ऊदबिलाव!
उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व बना जैव विविधता का चमकता सितारा
गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ गरियाबंद जिले के उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व का घना जंगल, जो अब तक बाघों की गर्जना और हाथियों की चहलकदमी के लिए जाना जाता रहा है, अब एक और बेहद खास वन्यजीव की मौजूदगी का गवाह बना है। पहली बार, यूरेशियन ऊदबिलाव (Eurasian Otter) की तस्वीर कैमरा ट्रैप में कैद की गई है — और यह उपलब्धि मिली है उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में!
यह कोई मामूली खोज नहीं है। ऊदबिलाव (Otter) को पारिस्थितिकी तंत्र का “स्वास्थ्य संकेतक” माना जाता है। यह प्राणी जहां रहता है, वहां जल स्रोत स्वच्छ और जीवनदायिनी होते हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र में इस जीव की मौजूदगी अपने आप में एक सुखद संकेत है कि यहां की नदियाँ, नाले और पारिस्थितिकी संतुलित और समृद्ध हैं।
तीन साल की मेहनत का नतीजा
इस ऐतिहासिक खोज के पीछे है छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की तीन वर्षों की अथक मेहनत और समर्पण। संस्था ने छत्तीसगढ़ जैव विविधता बोर्ड के साथ मिलकर “ओटर अध्ययन परियोजना” चलाई, जिसका उद्देश्य ऊदबिलाव की संभावित उपस्थिति और उसके प्राकृतिक आवास का अध्ययन करना था।
इस परियोजना में एक नया मोड़ तब आया जब उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व गरियाबंद में विशेष गाइडेंस के तहत कैमरा ट्रैप लगाए गए। छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की टीम ने रिजर्व के डीएफओ वरुण जैन (आईएफएस) के निर्देशन में ये कैमरे लगाए। और नतीजा चौंकाने वाला था — कैमरे में ऊदबिलाव की स्पष्ट तस्वीरें दर्ज हो गईं!
वन विभाग का अहम योगदान
इस सफलता के पीछे छत्तीसगढ़ वन विभाग का सहयोग बेहद अहम रहा। पीसीसीएफ (वाइल्डलाइफ) सुधीर अग्रवाल, पीसीसीएफ (विकास एवं योजना) अरुण पांडेय और जैव विविधता बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी राजेश चंदेले का मार्गदर्शन इस परियोजना को दिशा देता रहा।
वन विभाग के जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे अधिकारियों — डीएफओ वरुण जैन, एसीएफ जगदीश दर्रो, राजेंद्र सोरी, रेंज ऑफिसर श्री ठाकुर और उप वन परिक्षेत्र अधिकारी श्री नाग — ने इस अभियान को तकनीकी और रणनीतिक सहयोग दिया।
देश के लिए गौरव की बात
डीएफओ वरुण जैन ने इस उपलब्धि को न सिर्फ छत्तीसगढ़ के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण बताया। उन्होंने कहा, “ऊदबिलाव की उपस्थिति यह दर्शाती है कि हमारे जंगल जैविक रूप से अत्यंत समृद्ध हैं। यह जीव जल स्रोतों की गुणवत्ता का प्रमाण है और उसकी उपस्थिति यह संकेत देती है कि हमारा पारिस्थितिक तंत्र अब भी संतुलन में है।”
उन्होंने यह भी बताया कि अब इस दिशा में और गहराई से सर्वेक्षण किया जाएगा, ताकि ऊदबिलाव की आबादी, प्रजनन क्षमता, खाद्य श्रृंखला में भूमिका और संरक्षण के उपायों को और बेहतर बनाया जा सके।
विशेषज्ञों की टीम ने किया बेहतरीन कार्य
इस परियोजना में शामिल वैज्ञानिकों की टीम वाकई काबिले तारीफ है। प्रमुख अन्वेषक (PI) और जूलॉजिस्ट निधि सिंह के नेतृत्व में कार्यरत टीम में बॉटनिस्ट दिनेश कुमार, जनविज्ञानी विश्वास मेश्राम, पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. वाय के सोना, पक्षी विज्ञानी सर्वज्ञा सिंह, शोधकर्ता सुमित सिंह और शिक्षाविद फ्रैंक अगस्टिन नंद शामिल रहे। इस टीम ने जंगल के कठिन भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों में रहकर यह अध्ययन किया।
जनजागरूकता भी बनी प्राथमिकता
गौरतलब है कि केवल अध्ययन ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा द्वारा ऊदबिलाव के संरक्षण के लिए जनजागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं। स्कूलों, गांवों और पंचायतों में ऊदबिलाव की उपयोगिता और महत्व पर आधारित कार्यशालाएं आयोजित की गई हैं ताकि ग्रामीण समुदाय भी इस जीव के संरक्षण में भागीदारी निभा सके।
क्या है यूरेशियन ऊदबिलाव?
यूरेशियन ऊदबिलाव (Lutra lutra) एक जल-आधारित स्तनधारी है, जो आमतौर पर साफ पानी वाले क्षेत्रों — जैसे नदियाँ, झीलें और दलदली इलाके — में पाया जाता है। यह मछलियाँ, केकड़े और छोटे जलजीव खाकर पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में मदद करता है। इसकी उपस्थिति उस क्षेत्र के “प्राकृतिक स्वास्थ्य प्रमाण पत्र” के समान मानी जाती है।
निष्कर्ष:
उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में यूरेशियन ऊदबिलाव की उपस्थिति दर्ज होना केवल एक जीव की खोज नहीं, बल्कि यह पूरे राज्य के लिए जैव विविधता के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक विजय है। यह खबर साबित करती है कि छत्तीसगढ़ का जंगल आज भी कई रहस्यों को समेटे हुए है — बस जरूरत है उन्हें समझने, सहेजने और संरक्षित करने की।