CHNEWS:1.02 करोड़ के वन घोटाले पर मौन क्यों है शासन? दोष सिद्ध होने के बाद भी बचा हुआ है ‘घोटालेबाज एसडीओ’!
कटघोरा/कोरबा (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले में वन विभाग के नाम पर हुआ 1.02 करोड़ रुपये का महाघोटाला आज भी न्याय और जवाबदेही के लिए तरस रहा है। सरकारी दस्तावेजों से लेकर विभागीय जांच तक सब कुछ स्पष्ट है — लेकिन शासन की कार्रवाई की फाइलें अभी भी धूल फांक रही हैं।
जिस अफसर को दोषी ठहराया गया, वह अब भी कुर्सी पर जमे बैठे हैं — और मजे से सरकारी योजनाओं में फिर ‘खेल’ कर रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
मरवाही वनमंडल के अंतर्गत दो समितियों — चिचगोहना रोपणी प्रबंधन समिति और नेचर कैंप जामवंत माड़ा गगनई में लाखों रुपये की योजनाओं को क्रियान्वित करने के नाम पर फर्जी समिति बनाकर, शासकीय राशि को उनके खातों में ट्रांसफर किया गया।
नियमों को ताक पर रखकर निविदा प्रक्रिया के बिना ही लाखों की खरीदी कर दी गई, और बाजार दर से अधिक मूल्य पर सामान खरीदकर शासन को ₹2.69 लाख की सीधी हानि पहुंचाई गई। कुल मिलाकर ₹1.02 करोड़ का अनियमित और अवैधानिक व्यय किया गया — जिसकी जांच में एसडीओ संजय त्रिपाठी दोषी पाए गए।
जांच में दोष सिद्ध, फिर भी कार्रवाई ठप!
6 मार्च 2023 को वन विभाग की प्रमुख जांच समिति, जिसकी अध्यक्षता डीएफओ कुमार निशांत कर रहे थे, ने त्रिपाठी को दोषी ठहराते हुए शासन को पत्र भेजा। इसमें सीधा निलंबन और अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई थी।
लेकिन, हैरानी की बात यह है कि अब तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। उल्टा, एसडीओ त्रिपाठी को कटघोरा वनमंडल में पदस्थापित कर दिया गया, जहाँ वे अपने पुराने अधिकारी कुमार निशांत के अधीन कार्यरत हैं — यानी वही जांचकर्ता, और वही अभियुक्त — साथ-साथ!
‘सुशासन तिहार’ में उठी आवाज, लेकिन सरकार अब भी मौन!
हाल ही में आयोजित सुशासन तिहार के दौरान इस मामले की फिर से शिकायत की गई, उम्मीद जगी कि नई सरकार कुछ सख्ती दिखाएगी। लेकिन स्थिति जस की तस है। न जांच आगे बढ़ी, न फाइलें खुलीं, न कोई बयान सामने आया।
क्या सरकार जानबूझकर घोटालेबाज अफसर को बचा रही है? क्या विभागीय मिलीभगत से इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश हो रही है?
तबादला रुका, सवाल गहरे!
डीएफओ कुमार निशांत का नाम हालिया ट्रांसफर लिस्ट में था, लेकिन अचानक उनका तबादला रुक गया। यह संयोग नहीं, साजिश की बू देता है। लोगों को लगा था कि कटघोरा वनमंडल में कुछ सुधार आएगा, लेकिन भ्रष्ट्राचार पर नकेल कसने के बजाय विभाग घोटालेबाज अफसरों का अड्डा बनता जा रहा है।
अब जनता पूछ रही है:
- क्या ₹1.02 करोड़ की शासकीय राशि की होगी वसूली?
- क्या दोषी अफसरों को सेवा से हटाया जाएगा?
- क्या यह भी एक और ‘राजनीतिक संरक्षण’ वाला केस है?
- या फिर सुशासन सिर्फ नारों तक सीमित रह गया है?
जनहित की मांगें:
- घोटालेबाज अफसरों को तत्काल सस्पेंड किया जाए
- ₹1.02 करोड़ की शासकीय राशि की वसूली सुनिश्चित की जाए
- डीएफओ कुमार निशांत की भूमिका की उच्च स्तरीय जांच हो
- पूरे मामले की CBI या लोकायुक्त से स्वतंत्र जांच कराई जाए
यदि अब भी कार्रवाई नहीं होती, तो यह छत्तीसगढ़ के वन विभाग के इतिहास में एक और काला अध्याय होगा — जहाँ प्रमाण और दोषी होने के बावजूद सरकार की कलम चलने का इंतजार करती रही।