नई दिल्ली । अखिल भारतीय किसान सभा ने छत्तीसगढ़ के महासमुंद-रायपुर सीमा पर महानदी पुल पर 7 जून 2024 को सुबह 2-3 बजे के बीच दो मवेशी परिवहन श्रमिकों की नृशंस हत्या और एक अन्य श्रमिक को गंभीर रूप से घायल करने की घटना का कड़ा विरोध किया है। 15-20 लोगों का एक अपराधिक समूह उड़ीसा की ओर जा रहे जानवरों से भरे ट्रक का पीछा कर रहा था, टायरों की हवा निकालने के लिए पुल पर कीलें लगा दीं गई थीं और ट्रक को रोकने के बाद ड्राइवरों पर हमला किया गया, उन्हें बुरी तरह पीटा गया और पुल से 30 फीट नीचे चट्टान पर फेंक दिया। तहसीन कुरैशी की मौके पर ही मौत हो गई और चांद खान को अस्पताल पहुंचने के बाद मृत घोषित कर दिया गया। एक अन्य श्रमिक सद्दाम कुरैशी को गंभीर चोटें आईं है और वह अस्पताल में है। यह स्पष्ट है कि यह पूर्व नियोजित हत्या और घृणा अपराध की घटना है और मॉब लिंचिंग नहीं है। हालांकि, राज्य पुलिस के अनुसार, हत्या के प्रयास और गैर इरादतन हत्या के लिए आईपीसी की धारा 304 और 307 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है, जिसके लिए दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। लेकिन हत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 नहीं लगाई गई है। पुलिस का यह रवैया गोरक्षा के नाम पर संदिग्ध भीड़ द्वारा हत्या को उचित ठहराना है।एआईकेएस ने दो परिवहन कर्मचारियों की नृशंस हत्या की भयावह घटना में आईपीसी की धारा 302 के बिना एफआईआर दर्ज करने की कड़ी निंदा की है और इसे छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस की घोर सांप्रदायिक पक्षपात की कार्यवाही माना है। एआईकेएस ने उपमुख्यमंत्री और गृह विभाग के प्रभारी विजय शर्मा से मांग की है कि वे छत्तीसगढ़ राज्य में कानून का शासन सुनिश्चित करें, हत्यारों को बचाने की साजिश में शामिल शीर्ष पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें, सभी अपराधियों को तत्काल गिरफ्तार करें और निष्पक्ष अभियोजन सुनिश्चित करें। एआईकेएस अपराधियों को बचाने में पुलिस की भूमिका सहित घटना की न्यायिक जांच की पुरजोर मांग करती है। हालांकि ये मजदूर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रहने वाले हैं, लेकिन भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार भी मारे गए मजदूरों के असहाय परिवारों को न्याय दिलाने के लिए कोई हस्तक्षेप किए बिना अभी तक चुप है। एआईकेएस दोनों राज्यों की भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के उदासीन रवैये की निंदा करती है और दोनों मृतक मजदूरों के परिवारों को 50-50 लाख रुपये और गंभीर रूप से घायल मजदूर को 20 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग करती है। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक दल इस नृशंस हत्या पर अब तक चुप हैं और राज्य सरकार का उदासीन रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। छत्तीसगढ़ किसान सभा और अन्य किसान संगठनों ने हत्या की कड़ी निंदा की है। मवेशी अर्थव्यवस्था कृषि का हिस्सा है, जो किसान परिवारों की आय का 27% योगदान देती है। भारत गोमांस निर्यात में दूसरा सबसे बड़ा देश है। मवेशी व्यापारियों और श्रमिकों के हमले से मवेशी व्यापार प्रभावित होता है और किसान अपने पशुओं को बेचकर लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। अखिल भारतीय किसान सभा ने एनडीए के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और नवनिर्वाचित संसद से मांग की है कि वह गोरक्षा के नाम पर भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या और घृणा अपराधों को रोकने के लिए कानून बनाए, पशुपालकों, व्यापारियों और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए मुकदमे और सजा में तेजी लाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करे।
छत्तीसगढ़ में दो पशु परिवहन कर्मियों की हत्या पूर्व नियोजित, लेकिन एफआईआर में आईपीसी की धारा 302 नहीं, किसान सभा ने लगाया पुलिस पर सांप्रदायिक पूर्वाग्रह का आरोप
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