
भगवान परशुराम का जन्म भगवान विष्णु के दस पूर्ण अवतारों में से छठे अवतार के रूप में हुआ था। इस अवतार का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी से पाप का अंत करना, भगवान विष्णु के भविष्य के अवतारों के समय अपनी निर्धारित भूमिका को निभाना तथा अंतिम विष्णु अवतार कल्कि को शिक्षा प्रदान करना है। भगवान परशुराम की भूमिका को देखते हुए उनका जीवनकाल कलियुग के अंत तक निर्धारित है। भगवान परशुराम स्वयं नारायण के छठे अवतार थे जिन्हें आवेशावतार भी कहा जाता है। इसी क्रोधित स्वभाव तथा पितृ भक्ति के कारण एक दिन उन्होंने अपनी ही माता का वध कर दिया था।
भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता ब्राह्मण जमदग्नि तथा माता क्षत्रिय रेणुका थी। इसलिये उनके अंदर ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों के गुण थे। उनका बचपन में नाम राम रखा गया था किंतु भगवान शिव से प्राप्त अस्त्र परशु/कुल्हाड़ी के कारण उन्हें परशुराम के नाम से जाना जाने लगा।
माँ रेणुका का नदी में स्नान करने जाना एक बार परशुराम की माँ रेणुका आश्रम के पास नदी में स्नान करने गयी थी। वहां पर उन्होंने राजा चित्ररथ को अन्य अप्सराओं के साथ स्नान करते तथा क्रीड़ा करते हुए देखा। राजा चित्ररथ दिखने में बहुत आकर्षक तथा सुंदर शरीर वाले थे। अन्य अप्सराओं के साथ उनकी क्रीड़ा को देखकर रेणुका का मन भी प्रफुल्लित हो उठा तथा वह उसे देखती रही। इसी कारण उन्हें स्नान करके वापस आश्रम में आने में देरी हो गयी।
ऋषि जमदग्नि ने जाना रेणुका का मन जब रेणुका स्नान करके वापस आश्रम लौटी तो उसके हाव भाव बदले हुए थे तथा उसके मन में अभी भी वही दृश्य चल रहा था। चूँकि ऋषि जमदग्नि एक महान तपस्वी थे तो उन्होंने अपने तप के बल पर संपूर्ण बात का पता लगा लिया तथा रेणुका का मन भी पढ़ लिया। यह देखकर उन्हें इतना ज्यादा क्रोध आया कि उन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र को अपनी माँ का गला काट देने का आदेश दिया।
उनका सबसे बड़ा पुत्र अपनी माँ के प्रेम में ऐसा नही कर पाया। तब उन्होंने अपने दूसरे तथा तीसरे पुत्र को भी यही आदेश दिया लेकिन वे भी ऐसा कर पाने में असक्षम थे। एक ओर माँ की हत्या का पाप लगता तो दूसरी ओर पिता की आज्ञा की अवहेलना करने का पाप। यह एक धर्मसंकट था लेकिन उन्होंने मातृ हत्या करने से मना कर दिया।
अपने पुत्रों के द्वारा स्वयं की ऐसी अवहेलना किये जाने पर ऋषि जमदग्नि को अत्यधिक क्रोध आ गया और उन्होंने अपने तीनों पुत्रों को श्राप दिया कि वे अपना विवेक, बुद्धि तथा सारा ज्ञान खो देंगे।
परशुराम ने मानी अपने पिता की आज्ञा और काट दिया अपनी माँ का मस्तक इसके पश्चात ऋषि जमदग्नि ने अपने सबसे छोटे पुत्र परशुराम को अपनी माँ रेणुका का मस्तक धड़ से करने का आदेश दिया। पिता का आदेश मिलते ही परशुराम ने बिना देर किये एक पल में अपनी माँ का सिर धड़ से अलग कर दिया। देखते ही उनकी माँ निष्प्राण हो गयी तथा लहू की धारा फूट पड़ी। यह देखकर परशुराम के पिता जमदग्नि अत्यधिक प्रसन्न हुए तथा परशुराम को स्नेहपूर्वक कोई वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने समझदारी से काम लेते हुए अपने पिता से तीन वर मांगे। पहले वर में उन्होंने अपनी माँ को पुनः जीवित करने को कहा, दूसरे वर में उन्होंने माँगा कि उनकी माँ को इस चीज़ की स्मृति न रहे तथा तीसरे वर में उन्होंने अपने तीनो भाइयों का विवेक व बुद्धि मांग ली।
ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम की समझदारी से बहुत प्रसन्न हुए तथा उन्होंने उसे तीनों वर प्रदान कर दिए। इसके पश्चात सब कुछ फिर से सामान्य हो गया तथा परशुराम जी की माँ पुनः जीवित हो उठी।
परशुराम ने लिया अपने पिता के वध का एक बार राजा सहस्त्रबाहु अपने सैनिकों के साथ ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आये थे। तब उनका मन ऋषि जमदग्नि की गाय कामधेनु पर आ गया था लेकिन जमदग्नि ने उन्हें वह गाय देने से मना कर दिया। अहंकार में राजा सहस्त्रबाहु ने आश्रम को तहस-नहस कर दिया तथा वह गाय लेकर चले गए। जब परशुराम को इस बात का ज्ञान हुआ तो उन्होंने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया तथा कामधेनु को वापस ले आये। उसके पश्चात अपने पिता के कहने पर परशुराम तीर्थयात्रा पर चले गए। पीछे से सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि का वध कर दिया। जब परशुराम तीर्थयात्रा से वापस लौटे तब अपने पिता की हत्या से इतने क्रोधित हो उठे कि उन्होंने 21 बार राजा सहस्त्रबाहु के हैहय क्षत्रिय वंश का पृथ्वी से समूचा विनाश कर दिया। इसके पश्चात उन्होंने सन्यास ले लिया।
मातृ हत्या के पाप से परशुराम का मुक्ति पाना हालाँकि भगवान परशुराम ने अपनी माँ रेणुका को पुनः जीवित तो करवा लिया था लेकिन उनके ऊपर मातृ हत्या का पाप लग चुका था। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी तथा मातृ हत्या के पाप से मुक्ति पायी थी। यह कहानी आपको कैसा लगा। अपनी प्रतिक्रिया जरुर दें।