गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। नगर सहित पूरे अंचल में गुरूवार को वट सावित्री व्रत धूमधाम से मनाया गया। हिन्दू धर्मावलंबी महिलाओं ने व्रत रखकर सुहाग के कल्याण एवं रक्षा की कामना की। व्रत को लेकर प्रातः से ही महिलाओं का हुजूम नगर के विभिन्न बरगद पेड़ के नीचे दिखने लगा था वैदिक मंत्रोच्चार के बीच महिलाओं ने पंचोपचार विधि से वट वृक्ष का पूजन किया एवं वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर परिक्रमा की। लाल-पीली साड़ियों में सजी महिलाओं ने बताया कि वे इस पर्व को लेकर आज व्रत धारण करेंगी। उन्होंने पूजन के उपरांत सदा-सुहागिन रहने की मनौती मांगी है। सुबह से ही नव विवाहिता सहित अन्य महिलाएं नए-नए परिधान में सजक र फल, पकवान व पूजा सामग्री के साथ वट वृक्ष के पास पहुंची। प्रसाद चढ़ाकर वट वृक्ष की पूजा की और पेड़ में कच्चा धागा बांधी। नगर के कई स्थलों और मंदिरों में वट वृक्ष के नीचे वट सावित्री पूजा के लिए श्रद्धालु महिलाओं की भीड़ लगी रही। वट सावित्री के पर्व के लिए नगर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक महिलाओं में उत्साह रहा। नगर पुराने बरगद के पेड़ो के पास सुबह से महिलाओं ने पहुंचकर वट वृक्ष में कच्चे सूत को लपेटते हुए 12 बार परिक्रमा की अखंड सुहाग की कामना की। सुहागिनों के इस व्रत के संदर्भ संतोषी श्रीवास्तव ने बताया कि पुरातनकाल में सती सावित्री ने इस व्रत को किया था तथा सदा सुहागन रहने की मंगल कामना की थी। व्रत के परिणामस्वरूप उनके पति की उम्र पूरी हो जाने के बाद भी यमराज ने पुनः जीवनदान दिया था। तबसे यह व्रत पृथ्वीलोक पर प्रचलित है और सुहागिन महिलाएं इस व्रत को धारण करती रही है। व्रत को लेकर दिनभर सड़कों पर रंग-बिरंगे परिधानों में सजी महिलाओं की भीड़ देखी गई। विदित हो कि वट सावित्री का पर्व हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्यौहार है इस दिन परंपरा अनुसार सुहागिनें स्त्री पुराने वट (बरगद) वृक्ष की पूजा कर उसे पीले धाग से बांधकर उसका फेरा लगाती है। पुराणों के अनुसार वट सावित्री के ही दिन सती ने यमराज से अपने पति के प्राण बचाकर लाए थे। वट सावित्री का त्यौहार सुहागिन स्त्रीयों के द्वारा काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेने वाली देवी सावित्री भारतीय संस्कृति में संकल्प और साहस का प्रतीक है। यमराज के सामने खड़े होने का साहस करने वाली सावित्री की पौराणिक कथा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। सावित्री के दृढ़ संकल्प का ही उत्सव है वट सावित्री व्रत। इस व्रत की उत्तर भारत में बहुत मान्यता है। इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पतिप्रेम एवं पतिव्रत धर्म की कथा का स्मरण करती है। यह व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्यवर्धक, पापहारक, दुखप्रणाशक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है जो स्त्रियां सावित्री व्रत करती है वे पुत्र-पौत्र-धन आदि पदार्थो को प्राप्त कर चिरकाल तक पृथ्वी पर सब सुख भोग कर पति के साथ ब्रहमलोक को प्राप्त करती है। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रहमा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में त्रिनेत्रधारी शंकर का निवास होता है एवं इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती है जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है।
धूमधाम से की गई वट सावित्री की पूजा, पति की दीर्घायु के लिए सुहागिनों ने विधि-विधान के साथ मांगी मन्नतें
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