राजेंद्र साहू
मगरलोड(गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ प्रदेश का पारंपरिक त्योहार कमरछठ मंगलवार को मनाया गया। इस मौके पर माताओं ने अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए दिनभर उपवास रखा। शाम को लाई, पसहर, महुआ, दूध-दही आदि का भोग लगाकर सगरी की पूजा की गई। माेहल्लों और मंदिराें में मां हलषष्ठी की कथा पढ़ी और सुनी गई।
मौके पर सगरी पूजा का आयोजन किया गया था।
बच्चों की लंबी उम्र के लिए माताओं द्वारा किया जाने वाला छत्तीसगढ़ी संस्कृति यह ऐसा पर्व है। महिलाएं इस व्रत को संतान प्राप्ति और संतान सुख समृद्धि के लिए करती है। जिसे हर जाति और वर्ग के लोग मनाते हैं। हलषष्ठी, हलछठ, कमरछठ नाम से भी जाना जाता है। मंगलवार को इस पर्व पर माताओं ने सुबह से महुआ पेड़ की डाली का दातून एवं स्नान कर व्रत धारण किया। दोपहर में गांव के मनोरंजन भवन चौक में सगरी बनाई गई। इसमें पानी भरा गया। मान्यता है कि पानी जीवन का प्रतीक है। बेर, पलाश, गूलर आदि पेड़ों की टहनियों और काशी के फूलों से सगरी की सजावट की गई। इसके सामने गौरी-गणेश, मिट्टी से बनी हलषष्ठी माता की प्रतिमा और कलश की स्थापना कर पूजा की गई। साड़ी समेत सुहाग के दूसरी चीजें भी माता को समर्पित की गई। इसके बाद हलषष्ठी माता की 6 कथाएं पढ़ी और सुनाई गईं।
पसहर चावल और दूध की मांग बढ़ी
पसहर चावल और दूध की मांग ज्यादा रही। दरअसल, इस दिन हल से जोता गया अनाज नहीं खाने का रिवाज है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन महिलाएं खेत आदि जगहों पर नहीं जातीं। इस त्योहार को मनाने के पीछे की कहानी है कि जब कंस ने देवकी के 7 बच्चों को मार दिया तब देवकी ने हलषष्ठी माता का व्रत रखा और भगवान श्रीकृष्ण जन्म लिया। माना जाता है कि उसी वक्त से कमरछठ मनाने का चलन शुरू हुआ। इस कार्यक्रम में उपस्थित गीतांजलि साहू, डामिन साहू, उर्वशी साहू, धनेश्वरी साहू कौशल्या साहू हर्ष हीरा संतोषी साहू, बेनुमति , कविता ,मोनिका ध्रुव, डीगेशश्वरी पटेल, अंजू देवदास रिमन देवदास, दुलेश्वरी ,लोकेश्वरी चंपा, रुक्मणी, पूर्णिमा निषाद, देवमती निषाद ,तिलोत्तमा साहू एवं बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं उपस्थित रही।