CG NEWS:पाली जनपद में महिला सशक्तिकरण को झटका: सरपंच पतियों की दबंगई, सीईओ की निष्क्रियता ने खोली सरकारी दावों की पोल
महिलाएं बनीं रबर स्टैम्प, पंचायत संचालन की कमान थामे पति व रिश्तेदार, फर्जी हस्ताक्षरों का भी खुलासा
कोरबा/पाली (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पाली जनपद में महिला सशक्तिकरण की तस्वीर बेहद चिंताजनक है। सरकार भले ही पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्हें निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बना रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। पाली जनपद की ग्राम पंचायतों में निर्वाचित महिला सरपंचों की भूमिका सिर्फ नाम और हस्ताक्षर तक सीमित रह गई है। उनके स्थान पर उनके पति, भाई, देवर या अन्य रिश्तेदार पंचायत की बैठकों से लेकर योजनाओं के क्रियान्वयन तक हर कार्य में दखल दे रहे हैं। यह स्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस अपील को भी कमजोर करती है जिसमें उन्होंने “सरपंच पति संस्कृति” को खत्म करने की बात कही थी।
पाली जनपद में पंचायतों की असल संचालक पत्नियां नहीं, उनके पति हैं
पाली जनपद पंचायत के अंतर्गत आने वाली करीब 50 प्रतिशत ग्राम पंचायतों में महिलाएं निर्वाचित हुई हैं। यह आँकड़ा देखने में भले ही महिलाओं की भागीदारी को दर्शाता हो, लेकिन वास्तविक संचालन की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है। अधिकांश पंचायतों में महिलाओं के पति या अन्य रिश्तेदार न केवल बैठकों में शामिल होते हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं की रूपरेखा तय करने, स्वीकृति दिलाने, निर्माण कार्यों की निगरानी और भुगतान जैसे निर्णय भी खुद ही लेते हैं। कई मामलों में फर्जी हस्ताक्षरों के जरिए महिला सरपंच की ओर से दस्तावेजों को वैध बनाने की बात सामने आ रही है।
जनपद कार्यालय में भी सरपंच पतियों की चलती है तूती
यह स्थिति केवल ग्राम पंचायतों तक सीमित नहीं है। जनपद पंचायत कार्यालय में भी यही हालात हैं। महिला सरपंच की जगह उनके पति कार्यालयीन बैठकों में शामिल होते हैं, अधिकारियों से संवाद करते हैं और सभी प्रमुख निर्णय लेने में आगे रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का अधिकारिक स्वरूप केवल औपचारिकता भर बनकर रह गया है।
कानून का खुला उल्लंघन, लेकिन सीईओ खामोश
पंचायती राज अधिनियम, 1993 के तहत किसी भी निर्वाचित महिला प्रतिनिधि के स्थान पर उनके पति या रिश्तेदार का कार्यों में दखल देना अपराध की श्रेणी में आता है। साथ ही भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि महिला प्रतिनिधियों को पूर्ण अधिकार के साथ कार्य करना होगा और कोई भी उनका रिश्तेदार किसी स्तर पर हस्तक्षेप नहीं करेगा। राज्य सरकार द्वारा सभी जिलों के कलेक्टर और जनपद सीईओ को इसे सुनिश्चित कराने के निर्देश भी जारी किए जा चुके हैं।
इसके बावजूद पाली जनपद पंचायत में इन निर्देशों की सरेआम अवहेलना हो रही है। हैरानी की बात यह है कि स्थानीय सीईओ इस गंभीर मामले पर मौन साधे हुए हैं। न तो किसी पंचायत सचिव ने आपत्ति दर्ज की है और न ही बीडीओ या सीईओ द्वारा कोई कार्रवाई की गई है। इससे सवाल उठता है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों की यह चुप्पी किसी मिलीभगत की ओर इशारा करती है?
फर्जी हस्ताक्षर, सत्ता का दुरुपयोग और महिलाओं के हक का हनन
गांव की सत्ता व्यवस्था में यह प्रवृत्ति न सिर्फ महिला सशक्तिकरण को ध्वस्त कर रही है, बल्कि यह फर्जीवाड़े, भ्रष्टाचार और साजिशों को भी जन्म दे रही है। जिन महिलाओं को ग्रामीण विकास की रीढ़ बनाकर अधिकार सौंपे गए हैं, वे आज खुद ही अपने अधिकारों से वंचित हो रही हैं। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
क्या कहता है कानून?
- पंचायती राज अधिनियम 1993 की धारा 40 और 44 के तहत पंचायत प्रतिनिधियों के दायित्व तय किए गए हैं।
- फर्जी हस्ताक्षर करना धारा 420, 468 और 471 (भारतीय दंड संहिता) के तहत दंडनीय अपराध है।
- महिला प्रतिनिधियों के अधिकार में हस्तक्षेप करने पर पंचायत सदस्य को अयोग्य भी घोषित किया जा सकता है।
समाधान क्या हो सकता है?
- प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर निगरानी समिति गठित की जाए।
- महिला सरपंचों को अनिवार्य रूप से प्रशासनिक प्रशिक्षण दिया जाए।
- पंचायत सचिवों व बीडीओ को रिपोर्टिंग के लिए बाध्य किया जाए।
- दोषियों पर FIR दर्ज कर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए।
- पंचायत कार्यालय में CCTV लगाए जाएं और कार्यवाहियों की निगरानी हो।
निष्कर्ष:
पाली जनपद की यह स्थिति केवल एक क्षेत्र विशेष की समस्या नहीं है, बल्कि यह देश भर में मौजूद उस गहरे सामाजिक सोच को दर्शाती है, जिसमें महिलाओं को केवल नाम भर का अधिकार दिया जाता है। यदि सरकार और प्रशासन वाकई महिला सशक्तिकरण को धरातल पर उतारना चाहते हैं, तो ऐसे मामलों में त्वरित और सख्त कार्रवाई करना अब आवश्यक हो गया है।
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