फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। पंच मंदिर फिंगेश्वर के पंडित दादु महराज ने बताया की देव पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष चल रहा है जिसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए और उनकी मुक्ति के लिए पिंडदान पूजा अर्चना और तर्पण किए जाते है। पितृ पक्ष में आने वाले अमावस्या का सनातन धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है। आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को पितृ अमावस्या या महालया अमावस्या के नाम से जाना चाहता है। महराज ने बताया की इस दिन विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान किए जाते हैं। वहीं अगर किसी इंसान को अपने किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु की तिथि पता नहीं है तो या किसी कारणवश उसके श्राद्ध के दिन उसकी श्राद्ध नहीं कर पाते क्या कुछ भूल चूक हो जाती हैए तो उसका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जाता है। उनके लिए पिंडदान किए जाते हैं और इस अमावस्या के दिन यह माना जाता है कि पितर धरती लोक से स्वर्ग लोक में चले जाते हैंण् जो 1 साल बाद पितृपक्ष में वापस आते हैं।
कब है सर्व पितृ अमावस्या
पंडित दादु महराज ने बताया कि आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या के नाम से जाना जाता हैण् जिसे हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। इस अमावस्या का आरंभ 1 अक्टूबर को सुबह 9.34 से हो रहा है। जबकि इसका समापन 2 अक्टूबर को सुबह 2.19 पर होगा। सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत व त्यौहार को उदया तिथि के साथ मनाया जाता है इसलिए इस अमावस्या को 2 अक्टूबर के दिन मनाया जाएगा। महराज ने बताया की इसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना की जाती है। उसके लिए पहका कुतुप शुभ मुहूर्त का समय सुबह 11.45 से शुरू होकर दोपहर 12.24 तक रहेगाण् दूसरा रोहिणी शुभ मुहूर्त का समय दोपहर 12.34 से दोपहर 1.34 तक रहेगा वहीं जो लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करना चाहते हैं उनके लिए तर्पण करने का शुभ मुहूर्त 2 अक्टूबर को दोपहर 1.21 से शुरू होकर 3.43 तक रहेगा जो अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजा अर्चना तर्पण पिंडदान और श्राद्ध कर सकते हैं। श्राद्ध और तर्पण करने का सही तरीका.सर्व पितृ अमावस्या के दिन विशेष तौर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान तर्पण और श्राद्ध किए जाते हैं.लेकिन कुछ लोग कहीं धार्मिक स्थल पर जाने की बजाय अपने घर पर भी उनके लिए पूजा अर्चना करते हैं।जो की सनातन धर्म में मान्य किया गया है।