अरविन्द तिवारी
वाराणसी (गंगा प्रकाश)- हमारे देश में संगमों का बड़ा महत्व रहा है। नदियों और धाराओं के संगम से लेकर विचारों-विचारधाराओं , ज्ञान-विज्ञान और समाजों-संस्कृतियों के संगम का हमने जश्न मनाया है। इसलिये काशी तमिल संगमम् अपने आप में विशेष है , अद्वितीय है। एक ओर पूरे भारत को अपने आप में समेटे हमारी सांस्कृतिक राजधानी काशी है , तो दूसरी ओर भारत की प्राचीनता और गौरव का केंद्र हमारा तमिलनाडु और तमिल संस्कृति है। ये संगम भी गंगा यमुना के संगम जितना ही पवित्र है। काशी और तमिलनाडु दोनों शिवमय हैं , दोनों शक्तिमय हैं। एक स्वयं में काशी है , तो तमिलनाडु में दक्षिण काशी है। काशी-कांची के रूप में दोनों की सप्तपुरियों में अपनी महत्ता है।
उक्त बातें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एंफीथिएटर परिसर में काशी – तमिल संगमम का शुभारंभ कर उपस्थित जनसभा को संबोधित करते हुये कही। पीएम मोदी ने हर हर महादेव , वणक्कम काशी और वणक्कम तमिलनाडु बोलकर अपने संबोधन की शुरुआत की। उन्होंने यूपी सरकार , तमिलनाडु सरकार , बीएचयू , आईआईटी मद्रास और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को इस भव्य आयोजन के लिये शुभकामनायें दीं।इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि काशी और तमिलनाडु दोनों संगीत , साहित्य और कला के स्त्रोत हैं। काशी में बनारसी साड़ी मिलेगी तो कांचीपुरम का सिल्क पूरे विश्व में मशहूर है। तमिलनाडु संत तिरुवल्लुवर की पुण्य धरती है। दोनों ही जगह ऊर्जा और ज्ञान के केंद्र हैं। आज भी तमिल विवाह परंपरा में काशी यात्रा का जिक्र होता है। यह तमिलनाडु के दिलों में अविनाशी काशी के प्रति प्रेम है। यही एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना है जो प्राचीन काल से अब तक अनवरत बरकरार है। उन्होंने कहा कि काशी और तमिलनाडु दोनों ही संस्कृति और सभ्यता के कालातीत केंद्र हैं। दोनों क्षेत्र संस्कृत और तमिल जैसी विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं के केंद्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा कि काशी और तमिलनाडु का प्राचीन काल से संबंध हैं। इसका प्रमाण काशी की गलियों में मिलेगा , यहां आपको तमिल संस्कृति के मंदिर मिलेंगे। हरिश्चंद्र घाट और केदार घाट पर दो सौ से ज्यादा वर्ष पुराना मंदिर है।पीएम मोदी ने कहा कि हमें आजादी के बाद हजारों वर्षों की परंपरा और इस विरासत को मजबूत करना था , इस देश का एकता सूत्र बनाना था। लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिये बहुत प्रयास नहीं किये गये। काशी तमिल संगमम इस संकल्प के लिये एक प्लेटफॉर्म बनेगा और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिये ऊर्जा देगा। उन्होंने कहा कि हमारे पास दुनियां की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है और आज तक ये भाषा उतनी ही लोकप्रिय है। ये हम 130 करोड़ देशवासियों की ज़िम्मेदारी है कि हमें तमिल की इस विरासत को बचाना और उसे समृद्ध भी करना है। हमें अपनी संस्कृति , अध्यात्म का भी विकास करना है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्तर और दक्षिण की संस्कृति को एकाकार करने वाले काशी-तमिल संगमम का शुभारंभ करने बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचे। लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी आगवानी की। यहां से प्रधानमंत्री मोदी हेलीकॉप्टर से बीएचयू हेलीपैड तक गये। जहां आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री ने काशी से तमिलनाडु के अटूट रिश्तों पर आयोजित प्रदर्शनी व मेले का शुभारंभ किया। समारोह में प्रधानमंत्री व तमिलनाडु से आये अतिथियों का नादस्वरम से स्वागत किय़ा गया।काशी तमिल संगमम के मंच पर जैसे ही पीएम मोदी पहुंचे वैसे ही पूरा एंफीथिएटर मैदान वणक्कम-वणक्कम की आवाज से गूंज उठा। स्वागत भाषण पश्चात प्रधानमंत्री तमिल भाषा में लिखी गई धार्मिक पुस्तक तिरुक्कुरल व काशी-तमिल संस्कृति पर लिखी पुस्तकों का विमोचन किया। इस भव्य कार्यक्रम में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री डॉ. एल मुरुगन , मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , सांसद इलैयाराजा , केंद्रीय शिक्षा धर्मेंद्र प्रधान , राज्यपाल आनंदीबेन पटेल सहित कई गणमान्य हस्तियां मौजूद थे। इस दौरान पीएम ने तमिलनाडु के प्रमुख मठ मंदिरों के अधीनम (महंत) को सम्मानित किया और तमिल प्रतिनिधिमंडल में शामिल छात्रों से संवाद भी किया। प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर एयरपोर्ट से लेकर बीएचयू तक चप्पे चप्पे चप्पे पर पुलिस फोर्स की तैनाती की गई थी।बताते चलें बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में आयोजित काशी तमिल संगमम में तमिलनाडु की संस्कृति से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मुख्यतः मीनाक्षी चितरंजन का भरतनाट्यम , तमिलनाडु का फोक म्यूजिक , इरुला व अन्य ट्राइबल नृत्य , विल्लुपाट्ट एक प्राचीन संगीतमय कथा-कथन , पौराणिक ऐतिहासिक ड्रामा , शिव पुराण , रामायण और महाभारत पर आधारित कठपुतली शो आदि देखने को मिलेंगे। जो ये दर्शायेंगे कि काशी और तमिलनाडु की भाषा , खान-पान , रहन सहन भले ही अलग हो , लेकिन अभिव्यक्ति का तरीका और इसकी आत्मा एक ही है। इसमें शामिल होने के लिये तमिलनाडु के विभिन्न जनपदों से बारह अलग-अलग समूहों में लगभग 2500 से अधिक अतिथियों के वाराणसी आने की संभावना जताई जा रही है। जिनमे छात्रों का दल 19 से 20 नवंबर , हस्तशिल्पियों का दल 22 और 23 नवंबर , साहित्यकारों का दल 23 व 24 नवंबर , अध्यात्म जगत से जुड़े लोगों का दल 26 से 27 नवंबर , व्यवसाय जगत से जुड़े लोगों का दल 30 नवंबर से 01 दिसंबर , शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों का दल 02 से 03 दिसंबर , हेरिटेज से जुड़े लोगों का दल 04 व 05 दिसम्बर , नवउद्यमियों का दल 07 व 08 दिसम्बर को , प्रोफेशनल्स का दल 08 व 09 दिसंबर को , मंदिर के पुजारियों , महंतों और अर्चकों का दल 10 व 11 दिसम्बर को , ग्रामीण-कृषकों का दल 13 व 14 दिसम्बर को , संस्कृतिकर्मियों का दल 15 व 16 दिसम्बर को काशी तमिल संगमम में शामिल होगा। भ्रमण के दूसरे दिन इन सब ग्रुप के तीन घंटे के विषय संबंधित कार्यक्रम होंगे। जिसमें से सात कार्यक्रम बीएचयू में , दो कार्यक्रम श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में और तीन कार्यक्रम ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर में आयोजित होंगे।