छत्तीसगढ़ : पाली जनपद में प्रधानमंत्री आवास योजना में बड़ा घोटाला, हितग्राही की राशि पहुंची दूसरे के खाते में
गिरवी रखी जमीन, अधूरा मकान और प्रशासन की चुप्पी ने उजागर किया सिस्टम की नाकामी
पाली/कोरबा (गंगा प्रकाश)। गरीबों के सिर पर पक्का छत देने की मंशा से शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) अब अफसरशाही और भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। पाली जनपद के कारीछापर गांव में सामने आए मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किस तरह पात्र हितग्राहियों के अधिकारों का गला घोंटकर अधिकारियों और कर्मचारियों ने सरकारी योजनाओं को निजी स्वार्थ का जरिया बना दिया है।
रामनारायण पटेल का मामला: खाते में नहीं आई किश्त, जमीन गिरवी रख बनाया अधूरा मकान
ग्राम पंचायत पोलमी के आश्रित ग्राम कारीछापर निवासी रामनारायण पटेल, जिन्हें वर्ष 2023-24 में पीएम आवास योजना के अंतर्गत ₹25,000 की पहली किश्त जारी की गई थी, ने जैसे-तैसे आवास निर्माण की शुरुआत की। मगर दूसरी और तीसरी किश्त जारी ही नहीं की गई। उल्टा उन्हें लगातार मकान पूरा करने का दबाव बनाया गया।
रामनारायण की पत्नी बिरसिया बाई पटेल ने बताया कि जनपद और ग्राम स्तरीय अधिकारियों के दबाव में उन्होंने अपनी एक जमीन ₹40,000 में गिरवी रख दी और किसी तरह निर्माण कार्य पूरा कराया। लेकिन जब दूसरी-तीसरी किश्त की जानकारी लेनी चाही, तो पता चला कि उनकी राशि किसी “परिचित” के खाते में ट्रांसफर कर दी गई है।
सरकारी रिकॉर्ड में उनके आवास को ‘पूर्ण’ बताया जा चुका है, जबकि वास्तविकता में मकान अधूरा है और उनका पूरा परिवार वहीं जैसे-तैसे जीवन बिता रहा है।
राजेंद्र मरावी: मजदूरी की राशि ही डकार गए
इसी गांव के एक अन्य हितग्राही राजेंद्र मरावी ने बताया कि वर्ष 2016-17 में स्वीकृत पीएम आवास की अंतिम किश्त के रूप में मिलने वाली ₹20,000 मजदूरी राशि को भी रोजगार सहायिका द्वारा हड़प लिया गया। जब उन्होंने जनपद कार्यालय से जानकारी ली, तो मालूम पड़ा कि रकम तो निकाली जा चुकी है।
घोटाले का पैटर्न: किस तरह रचा गया जाल
- फर्जी जियो टैगिंग: अपूर्ण मकान को पूर्ण दिखाकर राशि आहरण
- पात्र की जगह अपात्र: हितग्राही की राशि किसी परिचित के खाते में ट्रांसफर
- मनरेगा कार्ड का दुरुपयोग: किसी और के नाम पर फर्जी मजदूरी भुगतान
- मृत लोगों के नाम पर निकासी: लंबे समय से मृत हितग्राहियों के नाम से पैसा निकालना
- भौतिक सत्यापन की खानापूरी: एसी रूम में बैठकर ‘ऑन पेपर’ मकान पूरे
इन सभी मामलों में पंचायत सचिव, रोजगार सहायिका, आवास मित्र, पंचायत समन्वयक व जनपद अधिकारी की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है।
प्रशासन की चुप्पी: क्यों नहीं हो रही जांच?
अब तक इन मामलों में न कोई जांच, न कोई एफआईआर, और न ही कोई प्रशासनिक जवाब सामने आया है। इससे स्पष्ट है कि स्थानीय प्रशासन की भूमिका भी जांच के घेरे में है। पीड़ित परिवारों ने कई बार शिकायत दर्ज कराई, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला।
जनता का सवाल: क्या ऐसे ही ‘मोदी की गारंटी’ पूरी होगी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘ग़रीबों के लिए पक्का घर’ योजना की ज़मीनी हकीकत अगर यही है, तो न केवल यह योजना विवादों में है, बल्कि शासन-प्रशासन की साख पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है।