Cgbrekings news: मुंगेली में जिला शिक्षा अधिकारी का विवादित विज्ञापन, सांसद के जन्मदिन पर शासकीय नियमों की अनदेखी
मुंगेली (गंगा प्रकाश)। मुंगेली जिले के जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) सी.के. घृतलहरे एक नई प्रशासनिक बहस के केंद्र में आ गए हैं। भाजपा के एक सांसद के जन्मदिन पर स्थानीय अखबार में दिए गए सरकारी बधाई विज्ञापन ने सरकारी सेवा नियमों की मर्यादा, प्रशासनिक तटस्थता और राजनीतिक हस्तक्षेप पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

विज्ञापन में डीईओ का नाम और पद का उल्लेख
इस बधाई संदेश में न केवल सांसद को शुभकामनाएं दी गईं, बल्कि विज्ञापन पर शिक्षा विभाग के जिला अधिकारी का नाम, पद और कार्यालय भी उल्लेखित था। इस प्रकार की सार्वजनिक बधाई एक निजी कार्य प्रतीत हो सकती है, लेकिन जब वह एक संवैधानिक पदधारी द्वारा और सरकारी पदनाम के साथ दी जाए, तो उसका स्वरूप पूरी तरह से बदल जाता है।
शासकीय सेवा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन?
भारत में सिविल सेवा आचरण नियम स्पष्ट रूप से यह निर्देश देते हैं कि कोई भी शासकीय अधिकारी राजनीतिक दलों या नेताओं के प्रति सार्वजनिक रूप से झुकाव नहीं दर्शा सकता। डीईओ का यह कृत्य न केवल सेवा नियमों की अवहेलना है, बल्कि प्रशासन की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है।
कांग्रेस ने जताई कड़ी आपत्ति
इस पूरे मामले पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “भाजपा नेताओं द्वारा अधिकारियों पर दबाव डालकर उनसे इस प्रकार के ‘राजनीतिक भजन’ करवाना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। यह सिर्फ सेवा नियमों का उल्लंघन नहीं, बल्कि जनता के भरोसे के साथ धोखा है।”
शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता पर असर
शिक्षा विभाग वह स्तंभ है जो समाज को विचारशीलता, विवेक और जागरूकता सिखाने का कार्य करता है। जब विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस प्रकार की राजनीतिक झुकाव वाली गतिविधियों में लिप्त पाए जाएं, तो यह विभाग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता दोनों को आघात पहुंचाता है।
अनदेखी नहीं, जांच जरूरी
विभिन्न सामाजिक संगठनों और शिक्षा क्षेत्र के जानकारों ने शासन से मांग की है कि इस प्रकरण को ‘साधारण भूल’ न मानते हुए इसकी निष्पक्ष जांच कराई जाए। उनका कहना है कि यदि ऐसे उदाहरणों को नजरअंदाज किया गया, तो आने वाले समय में सरकारी तंत्र राजनीतिक प्रचार का मंच बन जाएगा।
निष्कर्ष:
मुंगेली का यह मामला प्रशासनिक तटस्थता और शासकीय सेवा मर्यादा को लेकर एक बड़ा सवाल बनकर उभरा है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि शासन इस पर क्या रुख अपनाता है — क्या यह मामला एक जांच का विषय बनेगा या केवल फाइलों में दबकर रह जाएगा।
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