नेता जनता की पसंद की अन्देखी कर अपनी पसंद थोपकर, कांग्रेस पार्टी को क्यों पहुंचा रहें हैं नुक़सान
गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। जिले की बिंद्रानवागढ़ विधानसभा आदिवासी बहुल सीट को भाजपा का अभेद किला कहा जाता है, लेकिन तारीख उठाकर देखने से पता चलता है कि बिंद्रानवागढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व कांग्रेस, निर्दलीय, कमनिष्ट सभी ने किया है, ये अलग बात है कि क्षेत्र की जनता अपना नेता पार्टियां बदल बदल कर चुनती आ रही हैं। लेकिन 2013 से भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले कोई दमदार प्रत्याशी नहीं होने के चलते लगातार भाजपा जीत दर्ज कर रही हैं, इसका ये मतलब नहीं कि भाजपा के गढ़ की संज्ञा दे दी जाए? जबकि नेता अपनी पसंद नये चेहरों पर दाव खेलकर कांग्रेस पार्टी का नुकसान पहुंचा है,और उनके फैसले पर कोई ऊंगली नहीं उठाएं इसलिए कथकथित भाजपा का गढ़ घोषित कर रहे हैं। जबकि असलियत ये है कि कुछ नेता ये नहीं चाहते हैं कि कोई हमारे समकक्ष खड़ा नहीं हो! ऐसे में टिकट काटकर किनारा कर देना ये राजनीति में बेहतर विकल्प समझा जाता हैं। ऐसी बहुत सी बातें हैं जो क्षेत्र के आम मतदाता से चर्चा करने पर ऐसी बातें निकलकर सामने आ रही हैं, साथ ही कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी जिताऊ प्रत्याशी को छोड़ नये चेहरे पर दाव लगाकर कांग्रेस पार्टी को क्यों नुकसान पहुंचा रहें हैं?
ज्ञात हो कि बिंद्रानवागढ़ विधानसभा आदिवासी बहुल क्षेत्र हैं और ओंकार शाह आदिवासी राजघराने से आते हैं, और आदिवासी समुदाय उन्हें अपना राजा मानते हैं, और राज परिवार ने इस क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। क्षेत्र की जनता आज भी ओंकार शाह को राजा साहब कहकर संबोधित करती हैं। ये अलग बात है कि इतनी बड़ी शख्सियत होने के बाद भी राजा ओंकार शाह खुश मिजाज़, सादगी पसंद और धार्मिक मिजाज़ के इंसान है, जिन्होंने जनता की सेवा को असल राजनीति मानते हैं।

पूर्व विधायक ओंकार शाह ने बिंद्रनवागढ़ में गढ़ी विकास की गाथा
ओंकार शाह के विधायक बनने से पहले गरियाबंद से देवभोग मुख्य मार्ग के किनारे बसे गांव कस्बों के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से दो चार होते आ रहे थे, ऐसे में सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि दूर दराज के गांव के निवासियों को किस प्रस्तिथि में गुजर बसर करते रहें होगें? लेकिन ओंकार शाह के 1993 में पहली बार विधायक बनने के बाद गरियाबंद से देवभोग की प्रमुख सड़क बनाई गई, इसके अलावा बहुत से ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें, पुल पुलियाओं का निर्माण कराया गया, स्वास्थय, शिक्षा, विद्युत के क्षेत्र में भी बहुत कार्य किए, जिससे क्षेत्र में विकास को गति मिली, ऐसी बहुत से क्षेत्र में विकास की गाथा ओंकार शाह ने अपने विधायकी कार्यकाल में गढ़ी, जिससे बिंद्रनवागढ़ क्षेत्र की जनता को आर्थिक व समाजिक रूप से विकास करने में आज मिल का पत्थर साबित हो रहा है, ये वो हकीक़त हैं जिसे कोई नकार नहीं सकता। लेकिन भाजपा विधायकों के कार्यकाल की समीक्षा की जाए तो क्षेत्र में जिस गति से विकास होना चाहिए था वो दिखाई नहीं देता है। वहीं छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा की समीक्षा करें तो बिंद्रानवागढ़ विधानसभा आज भी मूलभुत सुविधाओं के नाम पर सबसे पिछड़ा हुआ है, आज भी दूर दराज के ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओं के अभाव में चलते दो चार होना पड़ रहा हैं। नेताओं ने घोषणाएं तो बहुत की और आज भी कर रहे हैं, लेकिन अपनी घोषणाओं को पूरा करने वाले नेताओं में एक नाम ओंकार शाह हैं। अगर श्री शाह के विधायकी के 10 वर्ष के कार्यकाल और भाजपा विधायको के 20 वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा की जाएंगी तो श्री शाह का कार्यकाल भाजपा के विधायको पर भारी पड़ेंगा।

कूटनीति का शिकार बने श्री शाह
बिंद्रानवागढ़ विधानसभा से ओंकार शाह को क्यों टिकट नहीं दिया गया ? क्षेत्र के आम मतदाताओं के बीच उठ रहे इस सवाल हैं कि समीक्षा करने पर एक ही बात सामने आती हैं, कि सादगी पसंद राजा ओंकार शाह कूटनीति से कोसों दूर रहकर विकास की राजनीति में विश्वास रखते थे, उनके द्वारा करवाए गए विकास कार्यों से आम जनता के बिच बढ़ती लोकप्रियता और लगातार राजनीति में बढ़ाते कद से प्रदेश की राजनीति में दखल रखने वाले कुछ नेता जिनकी अपनी जमीन खिसकने लगी थी, ऐसे में श्री शाह के कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगे, जब इससे बात नहीं बनी तो टिकट काटवाकर ओंकार शाह के राजनैतिक में बढ़ते कद को रोकने का काम किया जिसका नुकसान पार्टी को पहुंचा। क्षेत्र के आम मतदाताओ का मानना है कि श्री शाह को टिकट नहीं देने का मतलब क्षेत्र की जनता को नाराज़ करना है जिसका सीधा लाभ विधनसभा हो या लोकसभा में भाजपा को पहुंचाना है? अगर 2014 के महासमुंद लोकसभा चुनाव जिसमें भाजपा से चंदूलाल साहू और कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी के बिच हुऐ चुनाव की समीक्षा करने पर पता चलता है कि बिन्द्रानवागढ विधानसभा की जनता कांग्रेस से किस कदर नाराज़ थीं। महासमुंद लोकसभा की सात विधानसभा जिसमें से अधिकांस विधानसभा साहू बाहुल्य हैं जिसमें स्वर्गीय अजीत जोगी को बढ़त हासिल थीं लेकिन आदिवासी बाहुल्य बिन्द्रानवागढ विधानसभा से ऐसे पिछड़े कि चंदूलाल साहू के सर जीत का सेहरा सजा। क्या इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी को क्षेत्र की जनता की भावनाओं का सम्मान करने के बजाय 2018 में श्री शाह का टिकट काटकर फिर नये को उतारा दिया, नतीजा विधानसभा और 2019 लोकसभा में बिंद्रानवागढ़ विधानसभा के आम मतदाताओं ने कांग्रेस पार्टी को हार का स्वाद चखाया।
बिंद्रानवागढ़ विधानसभा में राज परिवार और पुजारी परिवार का वर्चस्व दिखता है।
1962 मे बिंद्रानवागढ़ विधानसभा को आदिवासी सीट घोषित होने के बाद से राजमहल और पुजारी परिवार का दबदबा देखने को मिलता है। राज परिवार से ओंकार शाह के पिता स्वर्गीय त्रिलोक शाह 1964 -67 के बीच कांकेर लोकसभा से सांसद थे तब मैनपुर ,देवभोग ब्लाक कांकेंर लोकसभा में आता था। बिंद्रानवागढ़ विधानसभा से 1972 में ओंकार शाह की बड़ी मां रानी स्वर्गीय पार्वती शाह देवी निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की थीं। 1977 में जनता पार्टी सेे बलराम पुजारी ने जीत दर्ज की 1980 में बलराम पुजारी दूसरे बार भाजपा विधायक बने 1985 मे कांग्रेस के ईश्वर सिंग पटेल विधायक बने, 1990 मे बलराम पुजारी भाजपा 1993 में ओंकार शाह कांग्रेस 1998 में चरण सिंह मांझी भाजपा 2003 में ओंकार शाह कांग्रेस 2008 में डमरूधर पुजारी भाजपा 2013 में कांग्रेस ने नया चेहरा जनक ध्रुव को उम्मीदवार घोषित किया लेकिन आम मतदाता ने नकार दिया, और भाजपा से गोवर्धन मांझी ने जीत दर्ज की, 2018 में फिर कांग्रेस ने युवा नये चेहरा संजय नेताम को उतारा उसे भी आम मतदाता ने नकार दिया और भाजपा के डमरूधर पुजारी जीत गए। अब 2023 में देखना है कि मोहब्बत की दुकान में राजनैतिक रूप से कुंठित लोगों का दखल बंद कर कांग्रेस पार्टी जिताऊ प्रत्याशी को मैदान में उतरती हैं, या नये चेहरे पर दाव लगाकर बिन्द्रानवागढ विधनसभा सीट भाजपा को तोहफ़े में देकर भाजपा का गढ़ की संज्ञा देना चाहेंगी?