रायपुर (गंगा प्रकाश)। दुनियाँ का सबसे पहला इंजीनियर , देवशिल्पी , वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिवस के मौके पर आज देश भर में विश्वकर्मा पूजा धूमधाम से मनाया जायेगा। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि इन्होंने ही ब्रह्माजी के साथ मिलकर इस सृष्टि का निर्माण किया था। श्रमिक समुदाय से जुड़े लोगों के लिये यह दिन बेहद खास होता है। आज के दिन उद्योगों , कंपनियों , दुकानों एवं घरो में मशीनों, औजारों , अस्त्र-शस्त्र सहित विश्वकर्मा की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। सनातन धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने देवी-देवताओं के लिये ना सिर्फ भवनों का निर्माण किया बल्कि समय-समय पर अस्त्र-शस्त्रों का भी सृजन किया था। यही वजह है कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सभी औजारों या उपकरण पर विश्वकर्मा का प्रभाव माना जाता है। इस दिन कारोबारी और व्यवसायी लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें तो व्यापार में तरक्की मिलती है। घर में रखे हुये लोहे के सामान और मशीनों की पूजा करने से वे जल्दी खराब नहीं होते और मशीनें अच्छी चलती हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान मशीनों पर अपनी कृपा बनाये रखते हैं। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यक्ति की शिल्पकला का विकास होता है , जिससे व्यक्ति को अपने काम में सफलता हासिल होती है। शास्त्रों की मान्यता के अनुसार विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से दुर्घटनाओं व आर्थिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। इनकी पूजा से जीवन में कभी भी सुख समृद्धि की कमी नहीं रहती है। कलयुग में भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर व्यक्ति के लिये जरूरी और लाभप्रद बतायी गयी है। कलयुग का संबंध कलपुर्जों से माना जाता है और आज के युग में कलपुर्जे का प्रयोग हर शख्स कर रहा है। लैपटॉप , मोबाइल फोन और टैबलेट भी एक प्रकार की मशीन हैं और इनके बिना आज के युग में रह पाना बहुत मुश्किल है। इसलिये भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना हम सबके लिये बेहद शुभफलदायी मानी जा रही है। विश्वकर्माजी का जन्म कब हुआ , कैसे हुआ ? इस बात को लेकर अलग-अलग कथायें और तथ्य हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार वास्तुकला के आचार्य भगवान विश्वकर्मा वास्तुदेव तथा माता अंगिरसी के पुत्र हैं। वहीं स्कन्द पुराण में बताया जाता है कि धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी के साथ हुआ था। ब्रह्मवादिनी ही विश्वकर्माजी की माँ थी। इसके अलावा वराह पुराण में इस बात का उल्लेख है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा परमेश्वर ने बुद्धि से विचारक विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया था। सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी कर्म सृजनात्मक है जिन कर्मों से जीव का जीवन संचालित होता है , उन सभी के मूल में विश्वकर्मा हैं। अत: उनका पूजन जहां प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक ऊर्जा देता है वहीं कार्य में आने वाली सभी अड़चनों को खत्म करता है। विश्वकर्मा को देवशिल्पी कहा जाता है उन्होंने सतयुग में स्वर्गलोक , त्रेतायुग में सोने की लंका , द्वापर में द्वारिका और कलियुग में भगवान जगन्नाथ , बलभद्र एवं सुभद्रा की विशाल मूर्तियों का निर्माण करने के साथ ही यमपुरी , वरुणपुरी , पांडवपुरी , कुबेरपुरी , शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी , हस्तिनापुर , पुष्पक विमान के साथ-साथ भगवान विष्णु के लिये सुदर्शन चक्र , भगवान शिव के लिये त्रिशूल और यमराज का कालदंड और सोने की लंका का निर्माण किया। पुराणों में जिक्र है कि भगवान शिव ने माता पार्वती के लिये एक महल का निर्माण करने के बार में सोचा और इसकी जिम्मेदारी भगवान विश्वकर्मा को सौंपी , तब उन्होंने सोने का महल बना दिया। इस महल की पूजा के लिये रावण को बुलाया गया , लेकिन रावण महल को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने दक्षिणा के रूप में महल को ही मांग लिया। भगवान शिव उस महल को रावण को सौंपकर खुद कैलाश पर्वत चले गये। महर्षि दधीचि द्वारा दी गई उनकी हड्डियों से ही विश्वकर्माजी ने “बज्र” का निर्माण किया , जो कि देवताओं के राजा इंद्र का प्रमुख हथियार है। ऋग्वेद में 11 ऋचाओं में इनके महत्व का वर्णन किया गया है। एक कथा के अनुसार संसार की रचना के शुरुआत में भगवान विष्णु क्षीरसागर में प्रकट हुये। विष्णुजी के नाभि-कमल से ब्रहाजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी के पुत्र का नाम धर्म रखा गया। धर्म का विवाह संस्कार वस्तु नामक स्त्री से हुआ। धर्म और वस्तु के सात पुत्र हुये , उनके सातवें पुत्र का नाम वास्तु रखा गया। वास्तु शिल्पशास्त्र में निपुण था , वास्तु के पुत्र का नाम विश्वकर्मा था। वास्तुशास्त्र में महारथ होने के कारण विश्वकर्मा को वास्तुशास्त्र का जनक कहा गया। इस तरह भगवान विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ , जो अपने माता पिता की भांति महान शिल्पकार हुये। विश्वकर्माजी ने ही धरती , आकाश , जल सहित पूरे ब्रह्मांड की रचना की। विश्वकर्मा के पांच महान पुत्र: विश्वकर्मा के उनके मनु , मय , त्वष्टा , शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र थे। ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। मनु को लोहे में , मय को लकड़ी में , त्वष्टा को़ कांसे एवं तांबे में , शिल्पी को ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी में महारात हासिल थी।
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