CGNEWS: “वेतन नहीं तो काम नहीं!” — गरियाबंद में बिजली विभाग के ठेका कर्मचारियों का फूटा आक्रोश, कामकाज ठप
गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में इन दिनों बिजली विभाग के ठेका कर्मचारियों ने ‘आर या पार’ की लड़ाई का बिगुल बजा दिया है। वेतन नहीं मिलने से नाराज़ ठेका श्रमिकों ने 17 मई से कामकाज पूरी तरह बंद कर दिया है, जिससे जिलेभर में बिजली संबंधी कार्यों पर गंभीर असर पड़ा है।
कौन हैं ये कर्मचारी और क्यों हुए मजबूर?
ये ठेका श्रमिक छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (CSPDCL) के अधीन महासमुंद सर्कल के अंतर्गत गरियाबंद संभाग में कार्यरत हैं। इनकी नियुक्ति ठेकेदार विश्राम राम साहू के माध्यम से की गई थी। इन कर्मचारियों का आरोप है कि उन्हें लगातार दो महीने से वेतन नहीं दिया गया है। इतना ही नहीं, हर महीने वेतन से ₹1800 से ₹1900 तक की रहस्यमयी कटौती की जा रही है, लेकिन किसी को यह नहीं बताया गया कि यह पैसा आखिर जाता कहां है।
न तय वेतन, न पेसलिप, न जवाबदेही
सरकारी मानकों के अनुसार, अकुशल श्रमिक का मासिक वेतन ₹9967 होना चाहिए, लेकिन इन मजदूरों को महज ₹8400 तक ही भुगतान किया जा रहा है — वह भी बेहद अनियमित रूप से। न तो पेसलिप दी जाती है, न ही समय पर बैंक ट्रांसफर होता है। कई श्रमिकों का कहना है कि वेतन कभी 10 तारीख को, कभी 20 को और कभी पूरे महीने बाद मिलता है — और वह भी अधूरा।
“बिजली जलाने वाले मजदूरों के घर में अंधेरा क्यों?”
एक कर्मचारी ने भावुक होकर कहा, “हम वही हैं जो बारिश में भीगकर तार जोड़ते हैं, गर्मी में ट्रांसफार्मर ठीक करते हैं, लेकिन हमारे बच्चों के स्कूल की फीस नहीं भर पा रहे। बिजली सबको चाहिए, लेकिन हमें रोटी भी नसीब नहीं।”
आर्थिक संकट में डूबे श्रमिक — परिवारों पर टूटा कहर
बिना वेतन के दो महीने बीत चुके हैं। कई श्रमिकों ने घर की जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लिया है। कुछ ने बताया कि किराया नहीं दे पाने पर मकान मालिकों ने घर खाली करने की धमकी दी है। एक श्रमिक की पत्नी बीमार है, लेकिन दवा के लिए पैसे नहीं। बच्चों की पढ़ाई अधर में लटक गई है।
संगठित हुए मजदूर, सौंपा ज्ञापन
गहरी नाराजगी के बीच ठेका श्रमिकों ने अधीक्षण अभियंता को लिखित ज्ञापन सौंपते हुए स्पष्ट किया कि जब तक बैंक खाते में पूरा वेतन और कटौती की जानकारी नहीं दी जाती, वे दोबारा काम पर नहीं लौटेंगे। यह बहिष्कार अनिश्चितकालीन होगा।
कामकाज ठप — जनता परेशान
इस कार्य बहिष्कार का असर अब ज़मीन पर दिखने लगा है। जिले में लाइन मरम्मत, ट्रांसफार्मर बदली, मीटर रीडिंग, बिल वितरण जैसे कार्य पूरी तरह ठप हैं। कई इलाकों में ट्रिपिंग और फॉल्ट की शिकायतें लंबित हैं। इससे बिजली सेवाएं प्रभावित हो रही हैं, और आम जनता को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
ठेका प्रणाली पर सवाल
यह मामला सिर्फ वेतन का नहीं, बल्कि ठेका प्रथा की विफलता का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। ठेका श्रमिक न तो स्थायी कर्मचारी माने जाते हैं, न ही उन्हें सरकार की ओर से सामाजिक सुरक्षा मिलती है। ठेकेदारों की मनमानी और विभाग की चुप्पी ने इन मजदूरों को शोषण की खाई में धकेल दिया है।
प्रमुख नाम जो हड़ताल में शामिल हैं: कृपाशम्, जागेश्वर, खिलेश्वर, हिंदु कुमार, जैंद राम, प्रभुराम, दुल्लियन कुमार, ऋषि कुमार, पक्कीराम, निरंजन, विष्णु आदि।
प्रशासन चुप, जवाब कहीं नहीं
अब तक न ठेकेदार सामने आया है, न ही बिजली विभाग की ओर से कोई ठोस जवाब मिला है। कर्मचारी यूनियनों ने इस मुद्दे को उठाने की तैयारी शुरू कर दी है। यदि यह बहिष्कार जारी रहा, तो आने वाले दिनों में यह आंदोलन प्रदेश स्तर पर भी फैल सकता है।
क्या कहता है श्रम कानून?
भारतीय श्रम कानूनों के तहत, हर मजदूर को समय पर वेतन, काम के घंटे और कटौती की जानकारी देना अनिवार्य है। लेकिन गरियाबंद के इस मामले में इन सभी नियमों की धज्जियाँ उड़ती दिख रही हैं।
यह सिर्फ मजदूरों की लड़ाई नहीं, बल्कि व्यवस्था से जवाब मांगने का वक्त है। जब पसीना बहाकर काम करने वालों को उनका मेहनताना तक न मिले, तो लोकतंत्र की बुनियाद हिलती है।