अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी (गंगा प्रकाश) – हिन्दुओं के सार्वभौम धर्मगुरु एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता , विश्व मानवता के रक्षक पूज्यपाद पुरी शंकराचार्यजी मातृशक्ति की महत्ता की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि परा चितिस्वरूपा भगवती का मूर्तरूप मातृशक्ति है। पञ्च देवों में जहाँ शक्ति को एक स्वतन्त्र देव माना गया है। वहाँ शेष चार देवों के साथ भी ब्रह्माणी , लक्ष्मी , उमा , ऋद्धि – सिद्धि का सन्निवेश अवश्य है। ब्रह्मा , विष्णु , महेश और गणेश के साथ भी शक्ति का सन्निवेश शक्ति का अनुपम महत्त्व सिद्ध करता है। सूर्य के साथ शक्तिरूप से प्रभा , संज्ञा , रात्रि (राज्ञी) , बड़वा और छाया का , शिव के साथ शक्तिरूप से सती या उमा का , विष्णु के साथ शक्तिरूप से भू , श्री और नीला का तथा गणेश के साथ शक्तिरूप से सिद्धि और बुद्धि का सुयोग एवम् संयोग हिन्दु संस्कृति में मातृशक्ति की महिमा को द्योतित करने वाला है। इतना ही नहीं , हिरण्य गर्भात्मक सूर्य , विष्णु , शिव और गणपति की अभिव्यक्ति में भी शक्ति का सन्निवेश अवश्य है। शाक्तागम के अनुसार सृष्टि परा चिति स्वरूपा शक्ति का विलास है। श्रीब्रह्माजी के श्रीविग्रह का मनु शतरूपा रूप दो विभाग , श्रीकृष्ण और शिव का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप , पत्नी का अर्द्धाङ्गिनी नाम , कन्या तथा सधवा नारी का पूजन और विधवाओं का सम्मान हिन्दु संस्कृति में मातृशक्ति की अद्भुत महत्ता को द्योतित करनेवाला है। मनुस्मृति में वर्णित है कि जिस कुल में वस्त्र , आभूषण और मधुर वचनादि के द्वारा स्त्रियों की पूजा – प्रतिष्ठा होती है , उस कुल पर देवता प्रसन्न होते हैं। किन्तु जिस कुल में इनकी पूजा प्रतिष्ठा नहीं होती है , उस कुल में सब कर्म निष्फल होते हैं। महाभारत – उद्योग पर्व के अनुसार स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी कही गयी हैं। ये अत्यन्त सौभाग्य शालिनी , आदर के योग्य , पवित्र तथा घर की शोभा हैं , अतः इनकी विशेष रूप से रक्षा करनी चाहिये। गर्भ धारण में समर्थ स्त्रियों का जीवन विशेष रूप से संयत तथा सुरक्षित रहे , यह आवश्यक है। कारण यह है कि सन्तान पर पिता की अपेक्षा गर्भ धारण में समर्थ माता का अधिक प्रभाव सुनिश्चित है। माता भूमि तथा पिता बीज सदृश है। दोनों के संयत तथा सुसंस्कृत रहने पर सन्तान का शीलनिधि तथा स्वस्थ होना स्वाभाविक है। प्रजापति कश्यप के श्रोत्रिय तथा संयत होने पर भी पतिव्रता दिति का असमय में उन्हें स्पर्श करने के लिये विवश करने के कारण कालकोप के वशीभूत दितिगर्भ समुद्भूत हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का आतंकवादी होना सुनिश्चित था। हिरण्यकशिपु के आतंकी होने पर भी उसकी धर्मपत्नी पतिव्रता कयाधु के संयत होने के कारण भक्त शिरोमणि प्रह्लाद (प्रह्लाद) का प्रादुर्भाव हुआ। व्यासजी का दर्शन कर नेत्र मूँद लेने के कारण राजरानी ने नेत्रविहीन धृतराष्ट्र को उत्पन्न किया। व्यासजी का दर्शन कर पाण्डुवर्णा होने के कारण राजदारा ने पाण्डु संज्ञक पाण्डुरङ्ग के पुत्र को जन्म दिया। कुपित गान्धारी के द्वारा प्रताड़ित गर्भगत पिण्ड के निपात से दुष्ट दुर्योधनादि की उत्पत्ति हुई। अतः देवियों के शील तथा स्वास्थ्य की रक्षा के सनातन मनोवैज्ञानिक प्रकल्पों को संकीर्णता की संज्ञा देना अनभिज्ञता और अदूरदर्शिता की पराकाष्ठा है। दौड़ने , तैरने आदि से उनके गर्भाशय में गर्भाधान की क्षमता विलुप्त हो जाती है।
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