गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। सावन का मौसम सेहत के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो इस मौसम में भगवान शिव की पूजा के कारण मांसाहार का सेवन वर्जित है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो इस महीने में मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए। इस महीने रिमझिम बारिश होती रहती है। वातावरण में फंगस, फफूंदी और फंगल इंफेक्शन बढ़ने लगते हैं। खाने-पीने का सामान जल्दी खराब होने लगता है, क्योंकि सूर्य चंद्रमा की रोशनी का अभाव हो जाता है, जिससे खाद्य पदार्थ जल्द संक्रमित हो जाते हैं, जानवर भी हो जाते हैं बीमार वातावरण में कीड़े, मकोड़े की संख्या बढ़ जाती है, कई बीमारियां जैसे डेंगू, चिकनगुनिया होने लगती हैं, जो जानवरों को भी बीमार कर देती हैं। इसलिए मांस सेवन करना सदैव हानिकारक व हिन्दू धर्म मे पाप की श्रेणी में हमेशा रहता है।

स्कंद पुराण के अनुसार मांस खाने वाले इंसानों को मृत्यु लोक क्या किसी भी लोक में सुख नहीं मिलता, दुर्गति पक्की
स्कंद पुराण अनुसार जो मनुष्य मांस खाता है, उसे न तो मृत्यु लोक में सुख मिलता है, और ना ही मृत्यु के बाद दूसरे लोक में, उसकी दुर्गति पक्की हैं, स्कंद पुराण में ये भी बताया गया है कि यदि भूख से किसी प्राणी की मृत्यु भी होने वाली हो तो भी उसे मांस नहीं खाना चाहिए, स्कंद पुराण में ये भी कहा गया है कि भगवान शिव मांस-मदिरा का सेवन करने वालों की पूजा कभी स्वीकार नहीं करते। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि मांसाहारी भोजन राक्षसों के लिए है इंसानों के लिए नहीं।


पण्डित जी से जानिए क्या भगवान मांस खाने वालों की पूजा स्वीकार करते हैं।
पंडित जगन्नाथ पाण्डेय महाराज के अनुसार पूरा श्रावण मास भोलेनाथ की आराधना का पर्व है,श्रावण में भोलेनाथ जी भगवान प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरा करते हैं,इस सबंध में एक बात कहना चाहता हूं कि पूरा जीवन भर मांस मदिरा का सेवन करने वाले लोग भी शिव जी को प्रशन्न करने कावड़ यात्रा लेकर भोलेनाथ का अभिषेक करते है, भोले बाबा तो सर्व ज्ञानी हैं सर्व दृष्टा है, कहने का आशय यह है कि भगवान अनाड़ी नही हैं, सब जानते हैं, इसके अलावा भगवान पशुपतिनाथ शिवजी ही हैं और जीवन भर पशु पक्षियों को मार कर खाने वाले श्रावण मास में आराधना करते है, भोले बाबा क्या कोई भी देवता ऐसी पूजा स्वीकार नही करता।


पण्डित भूपेन्द्र धर दीवान का कहना हैं-सनातन धर्म विशेषकर गीता के अनुसार तो हर आत्मा में परमात्मा का वास है, किसी को मारेंगे तो उस जीव को कष्ट होगा, हमारी थाली किसी की आह से भरी हो या हिंसा से भरी हो सिर्फ अपने जिह्वा इन्द्रिय के सुख के लिए तो ये गीता के अनुसार अधर्म माना गया है, ऐसे लोगो की कोई भी पूजा भगवान स्वीकार नहीं करता, लेकिन जो जीव मानव को खतरा पैदा करे, जैसे मच्छर, बिच्छु कुछ कीट इत्यादि इनकी हिंसा अधर्म नहीं है, कहीं कहीं कुछ मंदिरों में बली प्रथा जो होती है व परम्परा से आयी कह कर करते आ रहे हैं जो कि लोगो ने गलत अवधारणा बना कर करते जा रहे हैं, कहीं वेद पुराण , शिवपुराण व दुर्गासप्तशती में इसका वर्णन नहीं है।


पण्डित राहुल दुबे का कहना है कि – आज इस कलयुग में अधिकतर लोग पशु पक्षियों को खा रहें व एक लोटा जल लेकर पशुपतिनाथ ( भोलेनाथ ) को खुश करने जाते हैं, ऐसे भक्ति को सिर्फ पाखंड ही कहेंगे, क्योकि सभी जीवजन्तु भगवान विश्वनाथ के सन्तान हैं, उनके सन्तान अर्थात जीव जंतुओं को खा कर पशुपतिनाथ ( भोलेनाथ ) का पूजा कर रहें हैं, ये सिर्फ घोर पाखंड हैं, ऐसी भक्ति भगवान कभी स्वीकार नही करता हैं, व ऐसे लोगो की दुर्गति पक्की हैं।

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