CGNEWS:“सुशासन तिहार बना औपचारिकता का खेल: मुनादी भूली, जनता छूटी – कोपरा नगर पंचायत में प्रशासनिक लापरवाही पर फूटा जनआक्रोश”
फिंगेश्वर/गरियाबंद(गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा जनकल्याण की मंशा से शुरू की गई महत्वाकांक्षी योजना ‘सुशासन तिहार’ उस समय हास्यास्पद बन गई जब फिंगेश्वर विकासखंड के नवगठित कोपरा नगर पंचायत में आयोजित समाधान शिविर में आम जनता ही नदारद रही। कारण – प्रशासन की घोर लापरवाही, सूचना तंत्र की विफलता और नगर पंचायत की निष्क्रियता।
शिविर का आयोजन तो पूरे तामझाम से किया गया, मंच पर अधिकारी विराजमान हुए, औपचारिक भाषण दिए गए, पर जिनके लिए यह आयोजन था – आम नागरिक – वे पूरे आयोजन से ही अंजान रहे। कोपरा के नागरिकों में इस बात को लेकर तीव्र रोष है कि पहले वे ग्राम पंचायत की कार्यप्रणाली से परेशान थे, अब नगर पंचायत बनने के बाद हालात और भी बदतर हो गए हैं।
आयोजन स्थल में बदलाव, मुनादी नदारद
नगर पंचायत कोपरा में होने वाला यह समाधान शिविर पहले नगर पंचायत कार्यालय परिसर में प्रस्तावित था। लेकिन अंतिम समय पर एसडीएम राजिम विशाल महाराणा द्वारा इसका स्थान बदलकर हाईस्कूल परिसर कर दिया गया। यहां तक तो बात समझ में आती है, पर सबसे बड़ी चूक यह रही कि इस स्थान परिवर्तन की जानकारी आम जनता तक पहुंचाई ही नहीं गई।
नगर पंचायत के सीएमओ श्यामलाल वर्मा ने संवाददाताओं से बातचीत में स्वीकार किया कि मुनादी में देरी हुई और मौसम खराब होने के कारण सूचना का संप्रेषण समय पर नहीं हो सका। लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि शासन की इतनी बड़ी योजना का प्रचार-प्रसार ही न हो, तो फिर उद्देश्य कैसे सिद्ध होगा?
जनता के लिए शिविर, जनता ही गायब
यह शिविर आम नागरिकों की समस्याओं को सुनने और उनका मौके पर समाधान करने के लिए था। लेकिन सूचना के अभाव में बड़ी संख्या में नागरिक आयोजन की तारीख और स्थान से ही अनभिज्ञ रहे। शिविर में नगर पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, पार्षद, तहसीलदार और एसडीएम की उपस्थिति तो रही, लेकिन जन भागीदारी लगभग शून्य रही।
जनता का सीधा सवाल है कि क्या यह आयोजन केवल दस्तावेजों में टिक लगाने और फोटो खिंचवाने भर के लिए किया गया था? अगर ऐसा है तो यह शासन की योजनाओं के साथ एक क्रूर मजाक है।
1498 आवेदन, सिर्फ फारवर्डिंग – समाधान कहां?
शिविर में ऑनलाइन और ऑफलाइन मिलाकर कुल 1498 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें प्रधानमंत्री आवास योजना, पट्टा वितरण, आधार सुधार, जल-नल कनेक्शन, पेंशन, राशन कार्ड और सड़क जैसे मुद्दे प्रमुख रहे।
लेकिन इन आवेदनों का हाल यह है कि उन्हें सिर्फ संबंधित विभागों को फारवर्ड कर देना ही समाधान मान लिया गया है। न तो कोई फॉलोअप है, न ही किसी को बताया गया कि उनका आवेदन अब किस स्तर पर है।
कई नागरिक अब भी भटक रहे हैं, न तो उन्हें समाधान मिला, न जवाब। जबकि सरकारी रिकॉर्ड में दिखाया जा रहा है कि सभी आवेदनों का समाधान हो गया है।
नगरीय प्रशासन की कार्यशैली पर उठे सवाल
नगरवासियों का कहना है कि कोपरा ग्राम पंचायत के समय जितनी समस्याएं थीं, नगर पंचायत बनने के बाद वे और भी बढ़ गई हैं। पहले योजनाएं कम थीं, पर पंचायत में कुछ पारदर्शिता थी, अब योजनाएं तो कई हैं, लेकिन लाभ केवल दस्तावेजों में सिमटकर रह गया है।
शासन की योजनाओं के प्रति लोगों में अविश्वास और आक्रोश लगातार बढ़ रहा है। नागरिकों का कहना है कि यदि यही सुशासन है, तो इससे तो अव्यवस्था ही बेहतर थी।
राज्य शासन की साख को धक्का
छत्तीसगढ़ सरकार ने सुशासन तिहार की परिकल्पना इस उद्देश्य से की थी कि जनता की शिकायतों का त्वरित और पारदर्शी समाधान हो। इसके माध्यम से शासन और जनता के बीच विश्वास का पुल बने।
लेकिन कोपरा नगर पंचायत के आयोजन ने इस योजना को औपचारिकता का तमाशा बना दिया। जनता की सहभागिता के बिना, सूचना के अभाव में और समाधान के नाम पर सिर्फ कागजी फारवर्डिंग से शासन की जनकल्याणकारी मंशा को गहरी चोट पहुंची है।
निष्कर्ष:
नगरवासियों की आवाज़ स्पष्ट है – “अब हमें भाषण नहीं, समाधान चाहिए।” यदि शासन चाहता है कि उसकी योजनाओं पर जनता विश्वास करे, तो उसे निचले स्तर पर प्रशासन की कार्यशैली में पारदर्शिता, जवाबदेही और तत्परता सुनिश्चित करनी होगी। वरना ऐसी योजनाएं सिर्फ फोटो खिंचवाने और रिपोर्ट बनाने की खानापूरी बनकर रह जाएंगी।