CGNEWS: स्कूलों में मीठे पर पहरा! बच्चों की सेहत बचाने मैदान में उतरा शिक्षा बोर्ड, अब हर स्कूल में बनेगा ‘शुगर बोर्ड’
फिंगेश्वर/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। भारत के स्कूली बच्चे अब सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि अपने खाने-पीने की आदतों को लेकर भी स्कैन किए जाएंगे। मीठा खाने के शौक़ीन बच्चों के लिए अब खतरे की घंटी बज चुकी है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने देशभर के अपने सभी संबद्ध स्कूलों को निर्देशित किया है कि वे ‘शुगर बोर्ड’ बनाएं, जो छात्रों में चीनी की खपत पर निगरानी रखने और सही पोषण के प्रति जागरूक करने का काम करेगा।
यह आदेश अचानक नहीं आया। इसकी पृष्ठभूमि में हैं बच्चों में बढ़ते मोटापे, टाइप-2 डायबिटीज, दांतों की समस्याएं और अन्य स्वास्थ्य जटिलताएं, जो सीधे तौर पर अत्यधिक मीठे और जंक फूड के सेवन से जुड़ी हुई हैं।
बदलता ट्रेंड, बिगड़ती सेहत
आज के बच्चे चॉकलेट, बिस्किट, पेस्ट्री, कोल्ड ड्रिंक, चिप्स और अन्य जंक फूड्स की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की थाली से फल, सलाद और पौष्टिक आहार गायब होता जा रहा है, और उसकी जगह ले रहे हैं डिब्बाबंद और मीठे उत्पाद।
CBSE की चिंता इस तथ्य से और बढ़ गई है कि आजकल 10 साल का बच्चा भी टाइप-2 डायबिटीज का मरीज बन रहा है, जो एक दशक पहले तक केवल वयस्कों की बीमारी मानी जाती थी।
खौफनाक आंकड़े जो नींद उड़ा दें
- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 18 साल से कम उम्र के 12 लाख बच्चे डायबिटीज के शिकार हैं।
- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 बताता है कि 5 से 19 वर्ष की उम्र के 25% से अधिक बच्चे मोटापे की चपेट में हैं।
- एक औसत भारतीय बच्चा रोजाना 20 से 25 चम्मच चीनी का सेवन कर रहा है, जबकि WHO की अनुशंसा केवल 6 चम्मच यानी 25 ग्राम प्रतिदिन की है।
- WHO के मुताबिक, दुनिया भर में 5 से 19 वर्ष की उम्र के 34 करोड़ बच्चे मोटापे या अधिक वजन से ग्रस्त हैं।
इन आंकड़ों ने न केवल डॉक्टरों, बल्कि नीति निर्माताओं को भी चिंता में डाल दिया है।
क्या है शुगर बोर्ड का मकसद?
CBSE के अनुसार, हर स्कूल में एक शुगर बोर्ड बनाया जाएगा, जो बच्चों को चीनी से होने वाले नुकसान की जानकारी देगा। यह बोर्ड स्कूल स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएगा, जिसमें शामिल होंगे:
- सप्ताहिक पोषण जागरूकता सेमिनार
- फूड लेबल पढ़ने की ट्रेनिंग
- जंक फूड और मीठे पेय की पहचान व उनके विकल्प
- अभिभावकों के लिए भी विशेष सत्र
CBSE ने स्कूलों को आदेश दिया है कि वे 15 जुलाई 2025 तक इन गतिविधियों की रिपोर्ट और फोटोग्राफ्स अपलोड करें, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर स्कूल इस दिशा में कदम उठा रहा है।
बच्चों की सेहत से कोई समझौता नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की आदतें बचपन में ही बनती हैं, और अगर आज सही दिशा में प्रयास किए गए, तो आने वाली पीढ़ी एक स्वस्थ और सक्षम समाज बना सकती है। बच्चों में मेटाबॉलिक डिसऑर्डर और लाइफस्टाइल डिजीज़ को रोकने के लिए स्कूलों की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है।
छत्तीसगढ़ में भी उठने लगी मांग
छत्तीसगढ़ गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर क्षेत्र के पालकों और शिक्षकों ने CBSE की इस पहल का स्वागत करते हुए राज्य सरकार से भी ऐसी नीति अपनाने की अपील की है। उनका कहना है कि सरकारी और गैर-CBSE स्कूलों में भी बच्चों की सेहत पर ध्यान देना उतना ही जरूरी है, जितना केंद्रीय बोर्ड के स्कूलों में।
वरिष्ठ शिक्षक नीलिमा वर्मा कहती हैं, “हम हर दिन देखते हैं कि बच्चे टिफिन में बिस्किट, नमकीन, कोल्डड्रिंक लेकर आते हैं। उन्हें समझाना मुश्किल होता है, लेकिन अगर स्कूल स्तर पर ही नीति बनी हो तो पालक भी गंभीर होंगे और बच्चा भी।”
विदेशों में पहले ही बैन
गौरतलब है कि अमेरिका, यूरोप और कुछ एशियाई देशों में स्कूल कैंटीन में कोल्डड्रिंक और जंक फूड पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। भारत में भी यह शुरुआत भले देरी से हो रही हो, लेकिन इसे एक बड़ी क्रांति की दस्तक माना जा रहा है।
निष्कर्ष: मीठे पर लगाम, बच्चों का कल बेहतर
CBSE की यह पहल न केवल एक शिक्षा नीति, बल्कि एक स्वास्थ्य नीति के रूप में देखी जा रही है। यदि सभी स्कूल, पालक और बच्चे मिलकर इस दिशा में काम करें, तो आने वाला कल मीठा नहीं, बल्कि स्वस्थ और सशक्त होगा।