ठंड में सुबह 7 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक बस स्टैंड में खड़े रहे खिलाड़ी, दौड़ प्रतियोगिता से चूके
छुरा (गंगा प्रकाश)। सांसद खेल महोत्सव जैसे प्रतिष्ठित आयोजन में अव्यवस्था और लापरवाही की एक गंभीर तस्वीर शनिवार को आदिवासी विकासखंड छुरा में सामने आई, जब चयनित खिलाड़ी छात्र-छात्राओं को समय पर जिला मुख्यालय गरियाबंद नहीं पहुंचाया जा सका। नोडल अधिकारी की घोर लापरवाही के कारण लगभग 40 खिलाड़ी छात्र-छात्राएं अपने खेल का प्रदर्शन किए बिना ही प्रतियोगिता से वंचित रह गए।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, विकासखंड छुरा से चयनित खिलाड़ियों को सांसद खेल महोत्सव में भाग लेने के लिए नोडल अधिकारी एन.सी. साहू द्वारा सुबह 7 बजे छुरा बस स्टैंड में उपस्थित होने के निर्देश दिए गए थे। निर्देशानुसार छात्र-छात्राएं कड़कती ठंड में समय पर बस स्टैंड पहुंच गए, लेकिन वहां न तो बस की कोई व्यवस्था थी और न ही किसी जिम्मेदार अधिकारी की मौजूदगी।
सुबह से दोपहर तक सिर्फ इंतजार
छात्र-छात्राएं सुबह 7 बजे से लेकर दोपहर 12:30 बजे तक बस स्टैंड में ठंड में खड़े होकर इंतजार करते रहे। इस दौरान प्रतियोगिताएं जिला मुख्यालय गरियाबंद में अपने निर्धारित समय पर शुरू हो चुकी थीं। 200 मीटर, 400 मीटर दौड़ एवं गेड़ी दौड़ जैसी महत्वपूर्ण प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले खिलाड़ी समय पर नहीं पहुंच पाए और उनका अवसर समाप्त हो गया।
जब साढ़े बारह बजे आरटीओ कार्यालय द्वारा गरियाबंद से बस की व्यवस्था की गई, तब जाकर खिलाड़ी गरियाबंद के लिए रवाना हुए, लेकिन तब तक प्रतियोगिता का समय निकल चुका था। इसका सीधा नुकसान उन खिलाड़ियों को हुआ, जिन्होंने महीनों अभ्यास कर यह अवसर हासिल किया था।
नोडल अधिकारी रहे नदारद
पूरे घटनाक्रम के दौरान नोडल अधिकारी एन.सी. साहू, जो कि शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल छुरा के प्राचार्य भी हैं, मौके से पूरी तरह नदारद रहे। खिलाड़ियों और उनके परिजनों द्वारा जब उनसे संपर्क करने का प्रयास किया गया तो फोन कॉल रिसीव कर तुरंत काट दिया गया। दूसरी बार कॉल करने पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यह कह दिया गया कि सर किसी प्राइवेट स्कूल की जांच में गए हैं।
बस के संबंध में पूछे जाने पर आरटीओ को जिम्मेदार बताकर पल्ला झाड़ लिया गया। इससे यह साफ होता है कि जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया गया।
छात्रों की पीड़ा
खेल से वंचित छात्रों का कहना है—हम सुबह सात बजे से यहां खड़े थे। बताया गया था कि खेल दस बजे से शुरू होगा, लेकिन बारह बजने तक हमें ले जाने कोई नहीं आया। इतनी मेहनत से चयन हुआ था, लेकिन बिना खेले ही लौटना पड़ा।
एक छात्रा ने बताया कि वह पहली बार जिला स्तर पर दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने वाली थी, लेकिन बस न मिलने से उसका सपना टूट गया।
स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर अभिभावकों और स्थानीय नागरिकों में भारी आक्रोश है। लोगों का कहना है कि सांसद खेल महोत्सव जैसा बड़ा आयोजन बच्चों की प्रतिभा को मंच देने का माध्यम होता है, लेकिन यहां जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही ने पूरे उद्देश्य पर सवाल खड़ा कर दिया है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यदि व्यवस्थाएं ऐसी ही रहीं तो आने वाले समय में खिलाड़ी आगे कैसे बढ़ पाएंगे। यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय है।
आदिवासी समाज ने की निलंबन की मांग
आदिवासी समाज के पदाधिकारियों ने इस मामले को गंभीर लापरवाही बताते हुए नोडल अधिकारी एन.सी. साहू को तत्काल निलंबित करने की मांग की है। समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब इस प्रकार की शिकायत सामने आई हो। वे शैक्षणिक कार्यों की बजाय अक्सर अन्य निजी कार्यों में व्यस्त रहते हैं और अपनी जिम्मेदारियों से बचते नजर आते हैं।
प्रशासन की छवि को पहुंचा नुकसान
इस पूरी घटना से न केवल खिलाड़ियों का मनोबल टूटा है, बल्कि प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। सांसद खेल महोत्सव को लेकर शासन स्तर पर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर व्यवस्थाओं की पोल इस घटना ने खोल दी है।
अब सवाल यह है—
* क्या इस लापरवाही पर कोई कार्रवाई होगी?
* क्या खिलाड़ियों को उनका खोया हुआ अवसर वापस मिल पाएगा?
* और सबसे अहम, क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जाएगी?
कुल मिलाकर, अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा उन मासूम खिलाड़ी छात्रों को भुगतना पड़ा, जिन्होंने सपनों के साथ बस स्टैंड पर घंटों इंतजार किया और बिना खेले ही लौट गए। सांसद खेल महोत्सव का “शानदार प्रबंधन” इस दिन पूरी तरह से जमीन पर गिरता नजर आया।



